मनोज उनियाल की रिपोर्ट
कांगड़ा। घाटी में 117 साल पहले चार अप्रैल को आए भूकंप ने भारी तबाही मचाई थी, लेकिन भूकंप से होने वाली हानियों से लोग आज भी बेखबर हैं । भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील जोन पांच में शामिल कांगड़ा घाटी में अगर भूकंप आया तो तबाही का मंजर भयावह होगा। यह जरूरी नहीं कि इतिहास फिर से खुद को दोहराए, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो धौलाधार पर्वत भी इसके विनाशकारी प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा। भू-गर्भ वैज्ञानिकों का मानना है कि निकट भविष्य में कांगड़ा को विनाशकारी भूकंप का सामना करना पड़ सकता है।
बहुमंजिला भवनों के निर्माण में भूकंपरोधी रोधी तकनीक न अपनाने का खामियाजा भी भूकंप से भुगतना पड़ सकता है । भूकंप में जीवन हानि भवनों के गिरने से उनके मलबे में दबने से होती है, जहां तक भूकंपरोधी तकनीक का सवाल है तो यह तकनीक यहां कारगर साबित हो सकती है। लेकिन निजी भवनों में यह तकनीक अपनाना तो दूर सरकारी भवनों में भी यह तकनीक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। सरकारी तंत्र मॉकड्रिल के जरिए पूर्वाभ्यास में जुटा रहा है, लेकिन भूकंपरोधी रोधी तकनीक अपनाने को लेकर लोगों में जागरूकता लाने के साथ-साथ सख्ती बरतने की जरूरत है। (एचडीएम)
नौ से अधिक तीव्रता पर आएगी भारी तबाही
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर भूकंप की तीव्रता 9 से अधिक रहती है, तो उसमें जान माल की भारी क्षति होती है। रेल पटरियां मुड़ जाती हैं, सड़कें टूट जाती हैं ,पृथ्वी पर अनेक सेंटीमीटर चौड़ी दरारें पड़ जाती हैं, भूमिगत पाइपें टूट जाती हैं, चट्टानें गिरती हैं व कीचड़ बहता है, कई स्थानों पर भू-स्खलन होता है, पानी में विशाल लहरें पैदा होती है, नदियों का मार्ग बदल जाता है ।
लापरवाही पड़ सकती है भारी
गौरतलब है कि आज से 117 साल पहले चार अप्रैल, 1905 को कांगड़ा में आए भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8 मापी गई थी। तब लगभग 19000 लोग मौत का शिकार हुए थे तथा 38 हजार पशु भी इस भूकंप की भेंट चढ़ गए थे। अकेले कांगड़ा नगर में मरने वाले लोगों की संख्या 10257 थी। आज जिस कद्र पिछले 117 सालों में भवनों का निर्माण हुआ है उस हिसाब से अगर भूकंप आया, तो मृतकों की संख्या लाखों तक पहुंच सकती है
Author: samachar
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