दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
अमरोहा, मायादेवी… नाम का अर्थ है दौलत की देवी लेकिन, हम जिस मायादेवी की बात कर रहे हैं, उसके नाम का अर्थ उसकी जिंदगी से बिल्कुल जुदा था। वह इतनी गरीब थी कि इलाज के लिए अस्पतालों की दर-दर भटकती रही और हर जगह से उसे सिर्फ दुत्कार मिली। 15 दिन तक वह अपनी गरीबी और मौत से लड़ती रही और आखिरकार दोनों ही उस पर भारी पड़ गए। अपने चार बच्चों को छोड़ वह दुनिया से विदा हो गई। उन चार अनाथों के पास इतना भी सामर्थ्य नहीं था कि वे अपनी मांं का अंतिम संस्कार कर सकें। तब चंदा इकट्ठा किया गया, जिससे मायादेवी का अंतिम संस्कार हो सका। इस पूरेे घटनाक्रम का जिसे भी पता चला उसकी आंखों से आंसू बह निकले। ऐसी घटनाएं गरीबों के लिए मुफ्त इलाज के दावे करने वाली सरकारों पर भी सवाल खड़ा करती हैं।
दरअसल, गजरौला के मुहल्ला आंबेडकर नगर निवासी मायादेवी के पति प्रकाश चार माह पहले मौत हो चुकी थी। उस वक्त मायादेवी पांच माह की गर्भवती थीं। पति ठेला लगाकर परिवार चलाते थे। उनके न रहने पर आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। 15 मार्च को माया देवी को प्रसव पीड़ा होने पर मुहल्लेवासियों ने चंदा करके सीएचसी के सामने कमलेश देवी अस्पताल में भर्ती कराया। यहां खून की कमी होने के कारण प्रसव के दौरान शिशु मृत अवस्था में पैदा हुआ। दो-तीन दिन यहां भर्ती रखा लेकिन, पैसा खत्म होने पर मायके वाले डिस्चार्ज कराकर घर ले गए।
19 मार्च को घर पर हालत बिगड़ने पर स्वजन व मुहल्लेवासी पुनः कमलेश देवी अस्पताल ले गए थे। वहां उन्होंने गलत उपचार का आरोप लगाते हुए दोबारा इलाज के लिए कहा लेकिन, चिकित्सक न होने पर वहां से सीएचसी भेज दिया। सीएचसी प्रशासन ने हालत नाजुक देखकर मुरादाबाद के लिए रेफर कर दिया। एक दिन वहां पर भर्ती रखा लेकिन, हालत ज्यादा बिगड़ने की बात कहकर वहां से भी निकाल दिया। मुरादाबाद से मायके वाले तीसरी बार फिर मायादेवी को कमलेश देवी अस्पताल लेकर आए और जमकर हंगामा किया। मगर, न तो इलाज के लिए भर्ती किया और न ही आर्थिक मदद हो पाई।
मायके वालों ने इधर-उधर से उधार लेकर व चंदा जुटाकर माया देवी को मेरठ के नागर अस्पताल में भर्ती कराया। गुरुवार को फिर पैसे खत्म होने पर वहां से भी घर भेज दिया। तब माया देवी को लेकर मायके वाले फिर ग़जरौला सीएचसी पहुंचे। यहां से अमरोहा जिला अस्पताल भेजा और वहां से मेरठ मेडिकल कालेज के लिए रेफर कर दिया। गुरुवार रात करीब 11 बजे मायादेवी की सांसें थम गईं। समय रहते यदि बेहतर इलाज मिल पाता तो शायद जान बच जाती।
मायादेवी की स्थिति वाकई दयनीय थी। पति की बीमारी से हुई मौत से दो साल पहले कोरोना ने बेटी को छीन लिया था। पीएम आवास योजना से छत मिली। मगर, इसके अलावा उसे कोई योजना का लाभ नहीं मिला। न तो गरीबी रेखा का राशन कार्ड है और न ही आयुष्मान। आज उसके पास आयुष्मान कार्ड होता तो वह यूं दर-दर की ठोकरें खाने के बाद मौत की नींद न सोती।
मां-बाप को खो चुके चार बच्चों के सामने अब बड़ा संकट खड़ा हो गया है। मां-बाप की मौत के बाद नानी बुधिया ने बताया कि चार बच्चों में सबसे बड़ा 11 साल का बेटा विकास, उससे छोटा विनीत, फिर छोटी बेटी सोना और सबसे छोटा विवेक है। अब उनके पालन पोषण की चिंता सता रही है। मैं अब उनके साथ रहूंगी लेकिन, मदद की जरूरत है। क्योंकि आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक है।
Author: samachar
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