संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट- नगर पंचायत मानिकपुर के पूर्व अध्यक्ष नत्थू कोल ने वन विभाग के अधिकारियों के ऊपर कोल आदिवासियों के उत्पीड़न का बड़ा आरोप लगाया है वहीं सरकार की जन कल्याणकारी योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में मजदूरों को समय से मजदूरी ना मिलने बड़े पैमाने पर हो रहे पलायन की बात कही है l
नगर पंचायत मानिकपुर के पूर्व अध्यक्ष नत्थू कोल कांग्रेस पार्टी के पूर्व में जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं l
पूर्व अध्यक्ष ने बीजेपी सरकार की सराहना करते हुए कहा कि जब से प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी है तब से काफी हद तक पलायन भी रुका है l
वहीं पूर्व अध्यक्ष ने चित्रकूट वन प्रभाग के पांचों रेंज के रेंज अफसरों व वन कर्मियों के ऊपर कोल आदिवासियों के उत्पीड़न का भी आरोप लगाया है उनका कहना है कि वन विभाग के कर्मचारी भ्रष्टाचार करने के लिए स्वयं जंगलों में आग लगा देते हैं और उसी का बहाना लेकर कोल आदिवासियों को पकड़ कर उनके ऊपर जुर्माना करते हैं जबकि यह लोग हर वर्ष करोड़ों रुपए का प्लांटेशन कागजों पर तैयार कर बड़े पैमाने पर सरकारी धन का बंदरबांट करते हैं उसी को छुपाने के लिए आग का सहारा लेते है वही नत्थू कोल ने यह भी कहा कि जब से भाजपा सरकार बनी है तब कोल आदिवासियों का काफी हद तक उत्पीड़न रुका है l
वन प्रभाग चित्रकूट के जंगलों में गर्मी का मौसम आते ही चारो तरफ से जंगलों में आग लगने की खबर मिलती रहती हैं जिसमें आग पर काबू पाने के लिए शासन प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है पूर्व अध्यक्ष द्वारा वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों पर लगाए गए आरोप काफी हद तक सही साबित होते दिखाई दे रहे हैं वन विभाग द्वारा कागजों में कार्य दिखाकर करोड़ों रुपए का भुगतान कर सरकारी धन का गबन किया जाता है जिसकी जांच कराई जानी आवश्यक है l
मानिकपुर के पठारी क्षेत्र व बरगढ़ क्षेत्र में कोल आदिवासियों की दुर्दशा देखते ही बनती हैं जहां पर रोजगार नहीं होने के चलते यह गरीब ग्रामीणों पलायन को मजबूर हैं कुछ ग्रामीण गरीबी में भूख से तंग आकर पलायन को मजबूर हैं व कुछ ग्रामीण वन कर्मियों के शोषण व उत्पीड़न का शिकार होकर पलायन कर रहे हैं l
अब देखना यह है कि नगर पंचायत मानिकपुर के पूर्व अध्यक्ष नत्थू कोल द्वारा लगाए गए आरोप कहां तक सही है l
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."