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November 1, 2024 3:57 pm

कविता ; यह धूपभरा तन !

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राजीव कुमार झा

धरती पर यह नयी ऋतु
जीवन की गति है ,
आगे बहती एक नदी है !
यौवन की वह पावन धारा ,
अरी सुंदरी !
किसने तुम्हें पुकारा !
बीत गया वह चंचल बचपन !
मृदु रागों से आज भरा मन !
अरी वसंती !
यह धूप भरा तन ,
दुपहरी में तुम्हें पुकारे
नीलगगन !
इस सुंदर मौसम की छाया ! किसने मन के आँगन में उसे बुलाया !
गोरे गालों पर प्रेम की सुरभित लाली !
तुम हँसती हो
ज्यों सोने सी
गेहूं की बाली !
होली के हँसी मजाक में
कितनी सुंदर लगती
गंदी गाली !
गलियों में रंगों की बौछारें .
खूब बजाओ ताली !
यमुनातट पर घूम रहा
वृंदावन का वनमाली !
जीवन में परिवर्तन आता , आकाश वसंत में
धूप से जब भर जाता ,
अरी प्रिया !
कोई अकेला
जीवन का गीत सुनाता !
सागर का नदिया से
गहरा नाता ,
बरसात में बादल
उड़ता आता !
धरती का सूना आँचल
खुशियों से भर जाता !
जंगल में आकर
झील किनारे
कोई मौज मनाता !
रिमझिम बारिश में
संग तुम्हें भी पाता !
अब कितनी रूपवती हो !
मीठे जल से पगी हुई हो !
बहती अब जलधार
सुनाई देते
नवजीवन के राग
मिट्टी के कण कण में
अरी सुंदरी !
उल्लास भरा है
कितना हर्षित करता
यह यौवन
रंगबिरंगी छटा बिखेरती
इस रश्मिलोक की रानी हो !
तुम परिवर्तन की
नयी कहानी हो !
लाल – लाल होंठ मधुर भाव तुम्हारा !
नारियल सा सुंदर उरोज
किसके मन को भाया !
जीवन का जल
आंखों में भर आया !
चांद तुम्हें देखने आया !
यह पहाड़ का पिछवाड़ा ,
किसने तुमको यहां बुलाया !
कितनी सुंदर कमर तुम्हारी !
यह सुंदर पीली साड़ी
तुम अब बेहद सुंदर नारी !
अरी प्रिया !
मन के मोदक से
अब किसके नितंब भरे हैं !
गजगामिनी !
आज बसंत आया !
सूरज ने सबके जीवन में
धनधान्य लुटाया !
अब पिया का घर तुम्हें भाया !
किसने कंगन पहनाया !
उसने आज फिर
तुम्हें बाग में बुलाया !
अरी चमेली !
तुम रास्ते में अब बैठी कहां अकेली !
झुरमुट में आकर !
हँसती सखियाँ और सहेली !

इंदुपुर, पोस्ट – बड़हिया, जिला – लखीसराय, बिहार, पिन 811302
samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."