केवल के पनगोत्रा
पिछले दिनों 9 फरवरी 2022 को राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने दिवालिया या कर्ज में डूबने के कारण आत्महत्या करने वाले लोगों की जानकारी दी थी। इसके अलावा उन्होंने बेरोजगारी के चलते होने वाली मौतों पर भी सदन को जानकारी दी। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि 2018 से 2020 के बीच 16,000 से अधिक लोगों ने दिवालिया होने या कर्ज में डूबने के कारण आत्महत्या की है।बेरोजगारी के चलते जान गंवाने वाले लोगों के बारे में भी उन्होंने जानकारी सदन के समक्ष रखी थी।इन तीन सालों में बेरोजगारी के चलते 9,140 लोगों ने आत्महत्या की है। इस तरह तीन सालों में बेरोजगारी, कर्ज का बोझ या दिवालिया के चलते 25000 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या कर ली।
विश्व में आत्महत्या के कई कारण हैं और भारत भी इनसे अछूता नहीं है। दिवालियापन या कर्ज, और बेरोजगारी के अलावा दहेज संबंधी मुद्दे, परीक्षा में असफलता, नशीली दवाएं, सामाजिक प्रतिष्ठा में गिरावट, बीमारी, गरीबी आदि हैं। यदि हम उपरोक्त दोनों कारकों (कर्ज-दिवालिया और बेरोजगारी) को जोड़कर देखें तो देश में कर्ज-दिवालियापान के चलते प्रतिवर्ष 5300 से ज्यादा आत्महत्याएं हुई हैं। इसी तरह बेरोजगारी के चलते प्रतिवर्ष 3000 से ज्यादा आत्महत्या की घटनाएं हुई हैं।
2014 में अप्रैल तक जब कांग्रेसनीत गठबंधन की सरकार थी तो देश में दिवालियापन या कर्ज के कारण होने वाली आत्महत्याओं की संख्या 2308 थी। जबकि बेरोजगारी के कारण होने वाली आत्महत्या की घटनाएं 2207 थीं।
प्रतिवर्ष के हिसाब से देखें तो यूपीए के शासनकाल में प्रतिवर्ष कर्ज और बेरोजगारी के कारण होने वाली मौतों की संख्या करीब 4500 बैठती है जबकि भाजपानीत एनडीए के शासन में यह संख्या 8300 से ज्यादा बैठती हैं। हालांकि इसकी वजह करोना महामारी भी हो सकती है मगर अन्यत्र पहलुओं को भी कमतर नहीं आंका जा सकता।
भारत में आत्महत्या करने वालों का प्रतिशत 2018 के मुकाबले 2019 में 3.4 फीसदी बढ़ा है। यह आंकड़ा बता रहा है कि देश में आत्महत्या करने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। ये आंकड़े एनसीआरबी के हैं।
संसद में पेश किए गए आत्महत्या के आंकड़ों से यह पता चलता है कि आर्थिक तरक्क़ी के तमाम दावों के बीच गरीबी, कर्ज और बेरोजगारी देश में एक बड़ी चुनौती बन चुकी है। यह आंकड़े एक प्रकार से सरकार के विकास के उन दावों के विपरीत एक कड़वी सच्चाई पेश करते हैं।
आत्महत्या के परिवारिक, सामाजिक, वैचारिक, संपत्ति विवाद, कैरियर समस्या और अन्य कारणों को यदि छोड़ दें तो लगभग एक दशक पूर्व किसानों की आत्महत्या संबंधी खबरें चिंतित करने वाली थीं। लेकिन 2020 में कारोबार से जुड़े लोगों की आत्महत्या संबंधी खबरें आर्थिक तरक्की के उन तमाम दावों की पोल खोलते हैं। उधर सेंटर फॉर मॉनिट्रिंग इंडियन इकोनॉमी बेरोजगारी के मसले को लेकर सावधान कर रही है।
पंजाब में, जहां अभी विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं, बेरोजगारी एक ज्वलंत मुद्दा है। पंजाब में पांच वर्ष पूर्व भी घर-घर रोजगार पहुंचाने की बात हुई थी, किंतु सी.एम.आई.ई. की सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि मार्च, 2016 को पंजाब में बेरोजगारी दर 2.6 प्रतिशत थी, जो अप्रैल में 1.8 प्रतिशत पर पहुंच, 5 वर्ष के सबसे निचले स्तर पर रही।
जनवरी, 2022 को बेरोजगारी दर 9 प्रतिशत पर पहुंच गई। केंद्रीय सर्वेक्षणानुसार राज्य में बेरोजगारी दर 7.4 प्रतिशत है। पंजाब में हायर सैकेंडरी उत्तीर्ण बेरोजगारी दर 15.8 प्रतिशत, डिप्लोमा सर्टीफिकेट प्राप्त की 16.4 प्रतिशत तथा परास्नातक की दर 14.1 प्रतिशत है।
देश में उच्च शिक्षा प्राप्त युवा होने पर भी देश में स्तरीय रोजगार न मिल पाना वर्तमान की सबसे बड़ी चुनौती है। प्राप्त आंकड़े बताते हैं कि विगत वर्षों के दौरान डिग्रीधारक युवाओं की आवश्यकता के अनुरूप राष्ट्र रोजगार सृजन क्षमता कहीं कम रही। विशेषत: सरकारी नौकरियों के हालात तो आटे में नमक समान हैं। गत 30 वर्षों में पब्लिक सैक्टर में अपेक्षित रोजगार अवसरों में 10 प्रतिशत कमी दर्ज की गई। केंद्र सरकार द्वारा 40 लाख स्वीकृत पदों में लगभग 8.72 लाख पद रिक्त हैं, जिसकी पूर्ति अस्थायी भर्ती के माध्यम से की जाती है। इस संदर्भ में विधानसभा चुनाव 2022 की बात करें तो घोषणापत्रों में बेरोजगारी का मुद्दा विशेष रूप से छाया रहा।
कारोबार, किसानी और बेरोजगारी को लेकर बढ़ता आत्महत्या का ग्राफ देश के आर्थिक विकास पर सवालिया निशान तो लगाता ही है, विकास के दावों पर सत्ता शीर्ष पर आसीन नेताओं को कटघरे में खड़ा भी करता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."