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November 2, 2024 9:09 am

यात्री हो चला : साहसिक यात्राओं से पाठकों को जोड़ते रोमांचक वृत्तांत

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 प्रमोद दीक्षित मलय

हिंदी साहित्य की लेखन विधाओं में यात्रा वृत्तांत की अपनी एक अलग पहचान एवं आकर्षण है। इस विधा के अंतर्गत लेखक द्वारा की गई विभिन्न यात्राओं के अनछुए अनचीन्हे पहुलुओं की चर्चा तो की ही जाती है, साथ ही यात्रा के दौरान मिलने वाले व्यक्तियों, पशु-पक्षियों, नदियों, वनस्पतियों, बसाहटों का भी रोमांचक वर्णन होता है। लोक परम्परा, खान-पान, पहनावा, भाषा बोली और स्थान विशेष के इतिहास-भूगोल की जानकारी परक धारा भी प्रवाहित होती है। आरम्भिक यात्रा वृत्तांत लेखक श्रंखला में राहुल सांकृत्यायन का नाम सर्वोपरि है। इस श्रंखला में एक नया नाम जुड़ा है युवा पर्यटन लेखक भागवत सांवरिया का। भागवत सांवरिया छत्तीसगढ़ में शिक्षक हैं जो अपने बाल शिक्षा हितैषी चिंतन एवं नवाचारों के लिए जाने जाते हैं। नित नवीन जानकारियों को जुटाने और ज्ञान निर्माण के लिए वह लगातार अपने परिवेश को जानने-समझने में जुटे रहते हैं। कुछ नया जानने-सीखने की यह जिद उन्हें यात्राओं से जोड़ती है और छुट्टियां पड़ते ही वह यात्राओं पर निकल पड़ते हैं। वह कहते हैं, “यात्रा क्या है… यात्रा है खुद का दूसरों में ढूंढ़ना, लोगों को उनकी वास्तविकता में जानने-समझने की यात्रा। यात्रा उन स्थानों की जिनके बारे में बहुत सी किंवदंतियां सुनी और पढ़ी हैं। यात्रा उन किंवदंतियों से उनका सच जानने की।”
भागवत सांवरिया ने अपने सद्य: प्रकाशित यात्रा वृत्तांत पुस्तक ‘यात्री हो चला’ के द्वारा यात्रा साहित्य लेखन जगत में सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। 80 पृष्ठों की इस पुस्तक में लेखक ने बस्तर, उत्तराखंड और बेलापानी की अपनी यात्राओं से पाठकों को जोड़ते हुए लोक संस्कृति, रीति-रिवाज, प्रकृति के विविध रंगों, दुर्गम स्थानों एवं घटनाओं का रोमांचक वर्णन किया है जो पाठक को अंत तक बांधे रखता है। लेखक छत्तीसगढ़ से ताल्लुक रखते हैं तो स्वाभाविक है बस्तर और बस्तर की प्रकृति एवं लोक जीवन उन्हें अपनी ओर खींचेगा ही। बस्तर क्षेत्र की यात्राओं को ‘रहस्यों की धरती-बस्तर’ शीर्षक अंतर्गत पांच अध्यायों में बांटकर पाठकों को बस्तर के सौंदर्य से परिचित कराया है जिन्हें दंतेवाड़ा, ढोलकल, जगदलपुर, कुटुमसर गुफा तथा तीरथगढ़ और चित्रकोट जलप्रपात नाम दिये गये हैं। दंतेवाड़ा यात्रा में रायपुर से बस की यात्रा, बस में बिखरी गंदगी, रायपुर के मित्रों के मिलन प्रसंग, स्थानीय राज परिवार की कुल देवी मां दंतेश्वरी, संखिनी-डंखिनी नदियों के संगम और भैरव बाबा मंदिर आदि के दरस-परस का रोचक वर्णन पाठक के सामने चित्र उपस्थित कर देता है। ढोलकर यात्रा में जंगल के बीच पगडंडी से होकर ढोलकल पहाड़ी की खड़ी चढ़ाई के उपरांत 3000 फीट की ऊंची चोटी पर स्थित प्रथम पूज्य देवता गणेश मंदिर तक पहुंचने का वर्णन है जिसमें स्थानीय गाईड युवक-युवतियों के विनम्र व्यवहार, प्राकृतिक दृश्यों, ताड़ का रस शल्फी पीते लोग, पर्यटकों द्वारा छोड़े प्लास्टिक कचरे को साफ करती एक गाइड युवती और सुनसान जंगल में निर्भय लकड़ी बीनती एक लड़की एवं औरत के साहस के शब्द चित्र उकेरने में लेखक सफल हुए हैं। तो वहीं 60-120 फीट गहरी कुटुमसर गुफा बस्तर के कांकेर राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है जिसे 1950 में भूगोलवेत्ता डां.शंकर तिवारी ने आदिवासियों की मदद से खोजा था। गुफा तक पहुंचने के लिए 60 फीट नीचे संकरे रास्ते से उतरना होता है पर अंदर गुफा खूब चौड़ी है। गुफा के अंदर दीवारों पर पानी के कटाव से सुंदर दर्शनीय कलाकृतियां उभर आई हैं। छत से पानी रिसता रहता है और एकत्र जल में यहां रंग-बिरंगी अंधी मछलियां पाई जाती हैं। तीरथगढ़ के झरने के जल से तन-मन को असीम शांति मिलती है पर बंदरों का डर हमेशा बना रहता है। आगे भारत का नियाग्रा कहे जाने वाले चित्रकोट जलप्रपात की धार जो साठ मीटर ऊंचाई से गिरकर हजारों मोतियों में बदल यात्रियों को भिंगो देती है। यहीं पर बस्तरी आर्ट एवं क्राफ्ट की दूकानों से यात्री स्मृति के रूप में वस्तुएं खरीदते हैं।
उत्तराखंड के चारधाम की यात्रा की शुरुआत हरिद्वार से बड़कोट के दौरान लेखक मानव के लोभ और शासन की अदूरदर्शिता के कारण मरती नदियों के प्रति क्षोभ प्रकट कर कर्तव्य निर्वहन की बात करता है। पहाड़ों के सीढ़ीदार खेत, काम करती हुई महिलाएं, फौज में भर्ती के लिए दौड़ का अभ्यास करते युवाओं, रास्तों पर खच्चरों की फैली बदबूदार लीद,पालकी वालों से संवाद और बीच-बीच होती बारिश से बचते यमुनोत्री पहुंचने और गर्म कुंड में स्नान कर थकान से मुक्त होने की कहानी पाठक को फिल्म सी लगती है। आगे गंगोत्री यात्रा का आरंभ 30 रुपये प्रति बाल्टी बिक रहे गर्म पानी को छोड़कर सीधे घाट पर ठंडे जल स्नान और आलू के परांठे के नाश्ते से होती है। धराली गांव के लकड़ियों से बने मकान ध्यान खींचते हैं, उसके पहले आर्मी का एक कैम्प भी है। गंगा माता मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद आगे 250 किमी दूर केदारनाथ धाम की कठिन चढ़ाई और आस्था की परीक्षा का था। यहां पैदल, पालकी, घोड़ा, हेलीकॉप्टर से जाया जा सकता है पर यात्रा का वास्तविक आनंद पैदल जाने में ही है। पहाड की चोटियों पर बिछी बर्फ का सम्मोहन यात्रियों को अंदर से शक्ति देता है। बद्रीनाथ धाम यात्रा के दौरान भारत के आखिरी गांव मानागांव, औली स्कीइंग ट्रैक, तप्तकुंड में स्नान, शंकुधारी वृक्षों और घाटियों का वर्णन कर लेखक ने मानो पाठक को घर बैठे चारधाम करा दिये। पुस्तक में शामिल अंतिम यात्रा वृत्तांत बेलापानी और वहां के बैगा जनजाति के जीवन पर केंद्रित है जो पाठकों को बैगा जनजाति के रहन-सहन, लोकगीत एवं करमा नृत्य, वैवाहिक रीतियों एवं दैनंदिन जीवन पर गहराई से विवेचन किया है। विकास के सूरज द्वारा वहां के अंधेरे को न चीर पाने की कसक भी दिखती है। वास्तव में यात्रा स्वयं को जानने का माध्यम बन जाती है।
यात्राएं व्यक्ति की संवेदना, सहनशीलता एवं सहकारिता का विस्तार करते हुए उसके व्यक्तित्व को गढ़ती हैं। इसलिए यात्रा उपरांत व्यक्ति लगभग बदल जाता है। यह पुस्तक पढ़ते हुए पाठक भी लेखक के साथ यात्रा करने लगता है, यही पुस्तक की सफलता है। उल्लेखनीय है कि लेखक की ये यात्राएं वर्ष 2017 एवं 18 में की गयी हैं। इसलिए पाठक बिल्कुल नवीनतम जानकारियों एवं बदलावों से रूबरू होते हैं। पुस्तक पठनीय है। छपाई आकर्षक है। कागज गुणवत्तायुक्त सफेद रंग में जिसमें मुद्रण आंखों को रुचिकर लगता है। बाईंडिंग बहुत बढ़िया है। यात्रा के चित्रों ने पुस्तक को अधिक उपादेय बना दिया है। कहीं कहीं वर्तनी की त्रुटियां खीर में कंकड़ की मानिंद चुभती हैं, पुस्तक के अंत में तीन पृष्ठ बिना छपाई कोरे छोड़ देना समझ से परे है। मुखपृष्ठ पर हिमाच्छादित पहाड़ी चोटी और लेखक का शैडो चित्र आकर्षक बन पड़ा है। अमेजन पर उपलब्ध पुस्तक ‘यात्री हो चला’ साहित्यप्रेमियों के बीच समादृत, खासकर यात्रा में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए गाइड का काम करेगी, ऐसा विश्वास है।
पुस्तक – यात्री हो चला, लेखक – भागवत सांवरिया, प्रकाशक – नोशन प्रेस, पृष्ठ – 80 , मूल्य – 110/-
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समीक्षक शिक्षक एवं शैक्षिक संवाद मंच के संस्थापक हैं। बांदा, (उ.प्र.)।
samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."