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November 2, 2024 10:54 am

यूक्रेन रुस युद्ध ; सामने बम धमाके और आंखों में नींद की जगह मौत सो रही

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अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

कितना भयानक होता है युद्ध का छिड़ जाना। युद्ध लफ्ज़ से ही सिहरन पैदा होती है, युद्ध होते हैं, और फिर युद्ध विराम भी। मगर जब तक विराम लगते हैं, तब तक युद्ध इतनी तबाही कर चुके होते हैं कि नस्लें उन युद्धों के अंजाम भुगतती हैं। 

अभी खबरें आने लगी हैं कि रूस के राष्ट्रपति युद्ध विराम पर सोच सकते हैं, अगर यूक्रेन की सेना यूक्रेन के राष्ट्रपति को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ले।

इन सभी हालातों को देखते हुए मुझे याद आ रहे हैं, दुख, सपनों, उम्मीदों के फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश, जिन्होंने कहा था, ‘युद्ध तो खत्म हो जाएगा। नेता फिर हाथ मिलाएंगे। बूढ़ी महिला अपने शहीद हुए बेटे का इंतजार करती रहेगी। वो लड़की अपने प्यार करने वाले पति का इंतजार करेगी। और वो बच्चे अपने वीर पिता का इंतजार करेंगे। मुझे नहीं मालूम की हमारी मातृभूमि का सौदा किसने किया, लेकिन मैंने देखा है कि इसकी कीमत किसने चुकाई।’

कीमत पता नहीं किसे किसे चुकानी पड़ती है। अब यही देखिए ना कि भारतीय स्टूडेंट्स उम्मीदें लेकर गए थे यूक्रेन कि मेडिकल की पढ़ाई करेंगे और डॉक्टर बनेंगे। मगर इस तरह यूक्रेन में फंसे हैं, जैसे युद्ध उनसे पढ़ाई की दक्षिणा मांग रहा है। इन स्टूडेंट्स के परिवार वाले घर पर परेशान हैं।

अक्टूबर 2019 में मोनिका और आंचल दोनों बहनें एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए यूक्रेन की Ternopil National Medical University गई हैं। उनका परिवार यूपी में अस्तौली गांव में रहता है। दोनों बहनें थर्ड ईयर स्टूडेंट हैं। दोनों अपने सपनों को उड़ान देने गई हैं, मगर अब परिवार उनकी चिंता में है। उनके पिता बिजेंद्र से जब हमने उनकी बेटियों के बारे में पूछा तो क्या बोले पढ़िए –

बिटियाओं से मैं पूरी रात संपर्क में रहा हूं। बेटी थोड़ी दहशत में है। डर है, क्योंकि वहां से फ्लाइट जाती हैं। शोर शराबा ज्यादा होता है। अलर्ट कर देते हैं। कभी कह देते हैं बंकरों में जाओ। इस तरह से। मार्केट वगैरा बंद है।

फिलहाल वे बंकरों में छिपे हैं?

हां बंकरों में छिपे हुए हैं। फ्लैट है उसका। फ्लैट में भी हैं। बंकरों में जगह नहीं मिल पाई थी। बड़ी दिक्कत हो रही थी। फिर वापिस फ्लैट में ही आ गए।

अब जब भी जंग की बात होती है, तो मुझे वो सीरियाई बच्चा एलन कुर्दी याद आ जाता है, जिसकी लाश भूमध्यसागर के तट पर औंधे मुंह पड़ी मिली थी। वो एक तस्वीर ही काफी है युद्ध से हुई तबाही का मंज़र पेश करने के लिए। लोग घर से बेघर होते हैं। माओं की गोद सूनी होती है। बीवियां बेवा होती हैं। ना सिर पर छत बाकी रहती है, ना सोने को बिस्तर। हद ये कि आंखों में नींद नहीं मौत सोती है। सामने बम धमाके । धुआं गुबार। यूक्रेन और रूस की जंग से भी ऐसी कुछ खबरें आ रही हैं, जहां लोगों के सिर पर मौत का तांडव है। युद्ध और तबाही के बीच यूक्रेन के आम नगरिक डरे-सहमें हुए हैं। इन्हीं के बीच फंसे हैं भारतीय स्टूडेंट्स भी, जो वहां मुसीबत में हैं, और घर पर उनके परिवार वाले उनकी सलामती की दुआ कर रहे हैं। हमने उनसे बात करके वहां के हालात जानें, जिन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

मेडिकल की पढ़ाई के लिए गए भारतीय स्टूडेंट्स से फोन पर बात हुई है, तो कुछ ने सोशल मीडिया से वहां के भयावह हालात बयां किए हैं। भारतीय स्टूडेंट्स कितने घबराये हुए और कितने खौफ़ज़दा हैं उस डर को लफ्ज़ों में बता पाना मुश्किल होता है। क्योंकि डर वो क्रिया है जो चेहरे पर नुमाया होती है। यूपी में हापुड़ ज़िले के फैसल और बनारस के कमल सिंह यूक्रेन में ही फंसे हैं। उन्होंने हाथ जोड़ते हुए विडियो बनाया है कि हमें यहां से प्लीज़ निकाल लीजिए। फैसल और कमल सिंह से आप खुद सुनिए वो भारत सरकार से क्या कह रहे हैं?

मेरा नाम फैसल है। मैं यूपी में हापुड़ जिले से हूं। हम अभी इवानो फ्रेंकिस में फंसे हुए हैं। यहां मार्शल लॉ लग चुका है, पूरे यूक्रेन में। और ये मेरा फ्रेंड है।

मैं कमल सिंह हूं। और मैं उत्तर प्रदेश बनारस से हूं। यहां पर स्थिति बहुत खराब होती जा रही है। जल्द से जल्द प्रबंध किया जाए। यहां से निकालने की कोशिश की जाए, क्योंकि यहां स्थिति खराब होती जा रही है। यहां बहुत अटैक हुए हैं। यहां हर जगह धुआं धुआं हैं।

हम लोगों से जस्ट बगल में दो मिनट दूर पर गवर्मेंट हॉस्टल है हम लोगों का। वहां बम गिरा है। तीन बम गिरे हुए हैं। स्थिति बहुत खराब है। यहां पर सब लोग डर के सामान खरीद रहे हैं। सामान मिल भी नहीं रहा है। सब खत्म हो गया है। बहुत शॉर्टेज हो रही है। बहुत स्थिति खराब है। हमें निकालने का जल्द से जल्द प्रबंध किया जाए।

ग्रेटर नोएडा के देवटा गांव के रहने वाले तनुज भाटी भी यूक्रेन में फंसे हैं, उनसे हमने फोन पर बात कर वहां के हालात जाने। तनुज भाटी ने क्या बताया सुनें।

अभी सिचुएशन बहुत खराब है यहां का। पर फिर भी हॉस्टल में हैं हम सब लोग। वेट कर रहे हैं कि इंडियन गवर्नमेंट क्या करती है हम लोगों के लिए। हम लोग भी परेशान हैं। खाना पानी ये सब भी प्रॉब्लम है। शॉर्टेज हो रहा है। क्विक रेस्पॉन्स आए इंडिया से तो हम लोगों को सहायता मिलेगी। बहुत बड़ी सहायता, जिससे हम लोगों का भला होगा।

गाजियाबाद में लोनी के रहने वाले शिवम ठाकुर भी एमबीबीएस करने यूक्रेन गए हुए हैं। उन्होंने यूक्रेन का हाल बताते हुए वहां से विडियो बनाकर भेजा, जिसमें दुख, डर, बेचैनी और एक उम्मीद, सब साफ झलक रहा है। खुद सुनिए शिवम ठाकुर को।

मैं यूक्रेन में एमबीबीएस करने आया था, लेकिन यहां का मंज़र बिल्कुल बदल गया है। यहां दहशत का मंजर है। यहां मैं फंस चुका हूं। मेरा परिवार बहुत परेशान हैं। मेरे परिचित मुझसे दूर हैं। यहां पर कोई भी मदद नहीं मिल रही है। यहां हम फंसे हुए हैं। कृपया आप सभी से गुहार कर रहा हूं कि मुझे इंडिया जल्द से जल्द बुलाया जाए। मेरे पास इतनी सुविधा नहीं है कि मैं सरकार से बात कर सकूं। आप इंडियन भाइयों से मेरी ये अपील है कि सरकार से अपील करें।

इतने खौफनाक हालात सुनकर परिवार को अपने बच्चों की चिंता है। उनकी रातें भी जागकर ही गुजर रही हैं। बस दुआ है कि बच्चे सलामत हों, और साथ खैरियत के अपने वतन लौट आएं। मगर सवाल यही है कि अगर युद्ध विराम नहीं होता है, तो कैसे आएंगे ये भारतीय स्टूडेंट्स। कैसे की जाएगी उनकी सुरक्षा?

यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों में श्रीगंगानगर की अनूपगढ की बेटी रिजुल भी शामिल है। रिजुल ने बताया कि उसके साथ लगभग 100 स्टूडेंट रुबिजनी शहर में युद्ध की भीषण परिस्थितियों में फंसे हुए हैं। रिजुल की मां प्रियंका ने बताया कि वह वहां मेडिकल के चौथे वर्ष की छात्रा है। फिलहाल वह परिवार के संपर्क में है और परिजनों से लगातार बात कर रही है। उसके पिता अजय सारस्वत ने इसकी जानकारी दी। इस समय यूक्रेन में हालात बदतर हैं जिससे काफी परेशानी बढ़ गयी है। डॉक्टर बनने गए बच्चों के सपने धूमिल होने लगे हैं।

कभी नहीं भूलेगा यह मंजर

यूक्रेन के डिनप्रो शहर के मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे मनोज यादव ने बताया कि उनका शहर डानबास से सटा है। ये वही दो इलाके हैं, जिन्हें रूस ने स्वतंत्र देश की मान्यता दी है। ऐसे में जब रूस ने सैन्य कार्रवाई की तो हालत बद से बदतर हो गए। मनोज ने ट्विटर पर भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई है। उन्होंने एक वीडियो भी शेयर किया, जिसमें पार्किंग में धड़धड़ाते हुए घुस रहा रूसी टैंक कारों को कुचलते हुए बढ़ रहा है। मनोज ने कहा कि ऐसा भयानक मंजर कभी नहीं भूलेगा। यह भी लिखा कि फ्लाइटें निरस्त होने से मुश्किलें और बढ़ गई हैं। बताया कि दूतावास के बाहर भारतीय छात्रों का हुजूम उमड़ रहा है, पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। मनोज ने लिखा डिनप्रो में काफी भारतीय छात्र हैं, जो सहमे हुए हैं।

एयरपोर्ट बंद होने से टली वापसी

यूक्रेन में फंसी गोमतीनगर के विकासखंड निवासी एमबीबीएस तृतीय वर्ष की छात्रा ऋषिका घोष की मां रुपाली घोष ने बताया बेटी से हर घंटे मोबाइल पर बात हो रही है। वह बहुत डरी हुई है। उसकी वापसी का 25 तारीख का टिकट था, लेकिन हमले के बाद एयरपोर्ट बंद हो जाने से अभी लौटना संभव नहीं है। ऋषिका के पिता अशोक कुमार व्यापारी हैं। उन्होंने भारत सरकार से छात्रों को सुरक्षित वापस लाने की मांग की है।

एटीएम से पैसे तक नहीं निकल रहे

गोंडा का विश्व मोहन सिंह यूक्रेन में विनिशिया के कॉलेज से एमबीबीएस तृतीय वर्ष का छात्र है। पिता राघवेंद्र प्रताप सिंह किसान हैं। उन्होंने बताया कि परिवार को बेटे की चिंता लगी हुई है। फोन पर उसने बताया कि एटीएम से पैसे नहीं निकल रहे हैं। इससे सामान लेने में दिक्कत हो रही है। राघवेंद्र ने बताया कि दो मार्च को विश्व मोहन की वापसी की फ्लाइट थी, लेकिन इससे पहले ही हालात बिगड़ गए। 

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."