अनिल अनूप
इस बजट में मनरेगा की राशि 61,000 करोड़ आवंटित की गई है, जबकि पिछले बजट में यह फंड 71,000 करोड़ रुपए था। बजट बढ़ता है या कम किया जाता है?
-अनिल अनूप
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट को ‘आकांक्षाओं वाला’ कहा है। बेशक बजट से देश की अपेक्षाएं और उम्मीदें भी काफी थीं। आम आदमी का सोचना था कि उसके हाथ में पैसा आए, ताकि वह खूब खर्च कर सके। खर्च से मांग बढ़ेगी, जिससे बाज़ार सजेंगे और अंततः अर्थव्यवस्था नए सिरे से जि़ंदा होगी। लेकिन ऐसी आकांक्षाएं अधूरी ही रहीं। औसतन किसान के उदाहरण से ही समझा जा सकता है। उसके लिए बजट में 16 सूत्री कार्य योजना की घोषणा की गई है। चूंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उबारना प्राथमिकता होनी चाहिए थी और किसान बुनियादी तौर पर ग्रामीण है। ग्रामीण क्षेत्र के इर्द-गिर्द ही पूरी अर्थव्यवस्था घूमती है, लेकिन बीते चार साल के दौरान किसान की औसत आय 1580 रुपए के बजाय 1540 रुपए हो गई है। यानी किसान गरीब ही रहा है। तो 2022 में किसान की आमदनी दुगुनी कैसे होगी? कृषि का बजट 2.83 लाख करोड़ रुपए तय किया गया है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दुगुनी के स्तर तक ले जाने में नाकाफी साबित होगा।
किसान सम्मान राशि की हकीकत यह है कि करोड़ों किसानों को पहली ही किश्त मिली है। बजट में 20 लाख किसानों को सौर पंप मुहैया कराने की घोषणा की गई है। सरकार बंजर ज़मीन पर सौर ऊर्जा के प्लांट लगाने में मदद करेगी और ‘अन्नदाता’ को ‘ऊर्जादाता’ भी बनाने की इच्छा रखती है। जल-संकट झेल रहे 100 जिलों के लिए भी योजना बनाई गई है। पिछले बजट में 1500 से अधिक ब्लॉकों के 256 जिलों में जल-संकट दूर करने का लक्ष्य रखा गया था, लिहाजा इस बजट में 100 जिले अतिरिक्त हैं या कुछ और हैं, यह स्पष्ट नहीं है। पेंशन और बीमा के दायरे में 6.11 करोड़ किसानों को रखने की बात कही गई है, लेकिन अहम, बुनियादी सवाल है कि किसान को उसकी फसल का कितना पैसा मिल रहा है? किसान की तमाम फसलें बीमित क्यों नहीं हैं? किसान की फसल की उचित कीमत कौन सुनिश्चित करेगा? प्याज 150 रुपए किलो तक बाज़ार में बिकता है, लेकिन किसान को वही 5-7 रुपए किलो के दाम ही क्यों नसीब होते हैं। बजट में एफसीआई को मिलने वाला अनुदान 1.5 लाख करोड़ से घटा कर 75,000 करोड़ रुपए कर दिया गया है। अब आधा अनुदान के साथ एफसीआई फसल खरीदने के बहाने लगा सकेगा कि उसके पास बजट ही नहीं है। व्यापक तौर पर किसान की फसल की सरकारी खरीद प्रभावित होगी। उर्वरक सबसिडी भी 80,000 करोड़ से घटकर नए वित्त वर्ष में 71,309 करोड़ रुपए हो सकती है। खाद्य सबसिडी में भी ‘खेल’ किया गया है कि जिसे 1.84 लाख करोड़ से घटाकर 1.09 लाख करोड़ रुपए कर दी गई है। इनसे किसान की फसलें प्रभावित होंगी और अंततः खरीद का बोझ उर्वरक कंपनियों या एफसीआई पर पड़ेगा।
देश में करीब 2.5 लाख पंचायतें हैं। 2015 की घोषणा के मुताबिक 2018 तक इनमें ऑप्टिकल फाइबर डालने का काम पूरा हो जाना चाहिए था, लेकिन बजट में इसे एक बार फिर 2020-21 के लिए लक्ष्य रखा गया है। किसान सीधे तौर पर गांव और पंचायतों से जुड़ा है। गांव और पिछड़े इलाकों की बात करें, तो मनरेगा की याद आती है, लेकिन इस बजट में मनरेगा की राशि 61,000 करोड़ आवंटित की गई है, जबकि पिछले बजट में यह फंड 71,000 करोड़ रुपए था। बजट बढ़ता है या कम किया जाता है? यदि 2022 तक किसानों की आमदनी दुगुनी करनी है, तो जीडीपी की विकास दर 12 फीसदी होनी चाहिए। फिलहाल यह 2.8 फीसदी है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री मोदी इसे किसानों और गरीबों को समर्पित बजट कह रहे हैं। उनका अब भी दावा है कि किसानों की आय दुगुनी होगी और ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार बढ़ेगा। रोज़गार का उल्लेख हुआ है, तो बजट में ही कहा गया है कि 2021 तक सरकारी संस्थानों में 2.6 लाख से अधिक नौकरियों का अनुमान है। हकीकत यह है कि फिलहाल देश में एक करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी की जरूरत है। लिहाजा योजनाएं और आधारभूत ढांचे का विस्तार कैसे होगा कि नौकरियां और रोज़गार अधिक से अधिक मिल सकें। खनन, निर्माण, उत्पादन, रियल एस्टेट, ऑटोमोबाइल आदि क्षेत्रों में नौकरियां सबसे ज्यादा होती थीं, लेकिन इन क्षेत्रों में धंधा मंदा है। सेवा क्षेत्र में नए रोज़गार हो सकते हैं, लेकिन सरकार स्पष्ट नहीं है।
Author: samachar
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