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November 23, 2024 1:23 am

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“हम पड़ाव को समझे मंज़िल, लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल, वर्त्तमान के मोहजाल में- आने वाला कल न भुलाएँ”

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अनिल अनूप की खास रिपोर्ट

…जी हां, ऊपर की पंक्ति अपने आप में एक संपूर्ण किताब है, एक ऐसी व्याख्या है जिसे समझने में या तो क्षण ना लगे या फिर कई जन्मों तक ना समझ पाएं। इन पंक्तियों के रचयिता हैं हरफनमौला स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई जी। आइए आज कुछ जानते हैं उनके बारे में ऐसी बातें जो आम लोग बहुत कम जानते हैं।

भारत रत्न अटल बिहारी प्रखर वक्ता तो थे ही, उनकी हाजिर जवाबी भी किसी से कम नहीं थी। किसी भी बात का इतना बेबाकी से जवाब देते थे कि पूछने वाला शख्स भी अवाक रह जाता था। ऐसा ही एक किस्सा पाकिस्तान में बन गया था, जब एक महिला पत्रकार ने अटलजी के सामने भरी सभा में शादी का प्रस्ताव रख दिया था।

जब दहेज में माग लिया पाकिस्तान

बात 16 मार्च 1999 की है, जब प्रधानमंत्री रहते हुए अटलजी ने पाकिस्तान के साथ मधुर संबंध बनाने की पहल की थी। दोनों देशों के बीच बस अमृतस से लाहौर के बीच बस सेवा शुरू की गई थी। इसी बस में वे खुद बैठकर लाहौपर तक गए थे। वहां उनका जोरदार स्वागत हुआ। जब वहां के गवर्नर हाउस में भाषण दे रहे थे, तब पाकिस्तान की एक महिला पत्रकार के सवाल पर वहां सन्नाटा छा गया। महिला पत्रकार ने अचानक पूछ लिया था कि अब तक आपने शादी क्यों नहीं की। मैं आपसे शादी करना चाहती हूं, लेकिन एक शर्त है कि आप मुंह दिखाई में मुझे कश्मीर देंगे। इसके बाद अटलजी को हंसी आ गई। बेबाकी और हाजिर जवाबी के लिए मशहूर अटलजी ने कहा कि मैं भी शादी के लिए तैयार हूं, लेकिन मेरी भी एक शर्त है, मुझे दहेज में पूरा पाकिस्तान चाहिए। अटलजी के इस हाजिर जवाबी से वहां पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा था। इस किस्से की आज भी चर्चा कर लोग ठहाका लगाया करते है।

अच्छे पत्रकार थे

अटलजी एक अच्छे पत्रकार भी थे। अटलजी स्वदेश अखबार में लखनऊ के संपादक भी हुआ करते थे। उन्हीं दिनों में कानपुर में उनकी बहन का विवाह होने वाला था। तैयारी चल रही थी। तभी नानाजी देशमुख अटलजी ने अटलजी से कहा था कि तुम्हारी बहन की शादी है और तुम यहां हो, जरूर आइएगा। अटलजी ने कहा कि विवाह से ज्यादा जरूरी तो समाचार पत्र है। शादी तो मेरे बगैर जाए भी हो जाएगी। इसके बाद नानाजी देशमुख चुपचाप कानपुर चले गए। वहां पहले से मौजूद दीनदयाल उपाध्याय को यह बात कही। यह बात सुनकर उपाध्याय तुरंत कार में बैठे और लखनऊ पहुंच गए और अटलजी से बोले- यह जो गाड़ी खड़ी है, उसमें तत्काल बैठ जाओ। अटलजी ने पूछा कि क्या हुआ, तो उपाध्याय बोले- जाओ बहन के विवाह कार्यक्रम में पहुंचे और मुझे कोई तर्क मत देना। इसके बाद अटलजी अपनी बहन की शादी में पहुंच गए थे।

पार्टी की हार के बावजूद देखने गए फिल्म

अटलजी को फिल्मों का बहुत शौक था। इसी से जुड़ा यह किस्सा है। एक बार दिल्ली में उपचुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। लालकृष्ण आडवाणी इस हार से विचलित थे। अटलजी भी शांत बैठे थे। अचानक अटलजी उठे और आडवाणीजी से बोले, चलों फिल्म देखने चलते है। इस पर आडवाणी ने कहा कि यहां पार्टी की हार हो गई और आप फिल्म देखने को कह रहे हैं। अटलजी बोले हार-जीत तो चलती रहती है, हार को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए। इसके बाद दोनों फिल्म देखने गए और दिल्ली के पहाड़गंज स्थित एक थिएटर में राजकपूर की फिल्म देखी।

कंचे खेलने में माहिर थे

अटलजी के करीब मित्र बताते हैं कि वे बचपन में काफी नटखट थे। वे कंचे खेलने के शौकीन थे। जब वे ग्वालियर में रहते थे तब बचपन में अपने बाल मित्रों के साथ अक्सर कंचे खेलते थे। इसके अलावा उन्हें गुजिया और ग्वालियर का चिवड़ा भी बेहद पसंद था। प्रधानमंत्री रहते जब भी वे ग्वालियर जाते थे, तो ढेर सारा चिवड़ा लेकर ही जाते थे।

शिक्षक के घर हुआ था जन्म

एक स्कूल टीचर के घर में जन्मे अटल जी की प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर में ही हुई। यहां के विक्टोरिया कॉलेज से उनकी पढ़ाई हुई, जिसे आज लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है। ग्वालियर में पढ़ाई के दौरान चालीस के दशक की शुरुआत में अटलजी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। इसके बाद उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भी जाना पड़ा।

उस वक्त हिन्दू माहौल था और वाजपेयी की कविता हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन…हिन्दू मेरा परिचय, यहीं से मशहूर हो गई थी।

पत्रकारिता से कैरियर शुरू किया

वाजपेयी ने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद पत्रकारिता में कैरियर शुरू किया। अटलजी को अपने पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी से कविता विरासत में मिली थी। इस कवि, पत्रकार के सादगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब 1977-78 में वे विदेश मंत्री बने तो ग्वालियर आने के बाद वे भाजपा के संगठन महामंत्री के साथ साइकिल से सर्राफा बाजार निकल पड़े थे, लेकिन 1984 में वाजपेयीजी इसी सीट से चुनाव हार गए थे। फिर भी राजनीति की तेड़ी-मेढी राहों पर वे आगे बढ़ते रहे।

भोपाल से है गहरा नाता

अटलजी का भोपाल से गहरा नाता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी की भतीजी रेखा शुक्ला और उनका परिवार अभी भी भोपाल में है। जब तक अटल बिहारी चलते-फिरते थे, तो वे अक्सर अपनी भतीजी के घर आ जाते थे। बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि अटल बिहारी भोपाल यात्रा के दौरान अपनी भतीजी रेखा के घर ठहरते थे। वहीं भोजन करते थे और सुकून से समय गुजारते थे। वह खाने के भी शौकीन थे इसलिए वह खासतौर से भतीजी के यहां अपनी पसंद का भोजन भी बनवाते थे। यही वह समय था जब वे खाली वक्त में कविताएं और भाषण भी रेखा के घर में ही बैठकर लिखते थे।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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