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30 March 2025 9:50 pm

‘बला की चमक उस के चेहरे पे थी, मुझे क्या खबर थी कि मर जाएगा’….हादसे के जख्मों पर मुआवजे का मरहम

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विनीता प्रियदर्शी की रिपोर्ट

शनिवार की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मातम की स्याह चादर फैल गई। जहां लोग अपने अपनों के साथ खुशियों का सफर तय करने निकले थे, वहीं कुछ की मंजिल मौत बन गई। प्लेटफार्म नंबर 13 और 14 पर अचानक मची भगदड़ ने 18 जिंदगियों को हमेशा के लिए खामोश कर दिया, जबकि कई घायल जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। प्रयागराज जा रही दो ट्रेनों के रद्द होने की अफवाह ने हजारों लोगों के बीच अफरा-तफरी मचा दी, और कुछ ही पलों में हंसी-खुशी की तस्वीरें दर्द में बदल गईं।

बिछड़ी जिंदगियां, रोते-बिलखते परिवार

रेलवे स्टेशन पर बिखरे हुए सामान, टूटी हुई चप्पलें, खून से सने कपड़े और चारों ओर गूंजती चीख-पुकार… यह मंजर देख किसी का भी कलेजा कांप उठे। कोई अपने पिता को खोज रहा था, तो कोई अपने बच्चे की तलाश में पागल सा हो गया था। कोई किसी की टूटी घड़ी देखकर पहचान करने की कोशिश कर रहा था, तो किसी को बस उम्मीद थी कि उनका अपना सही-सलामत होगा। लेकिन नियति ने किसी के अरमान छीन लिए, किसी के सपनों को बिखेर दिया।

मातम में बदली खुशियों की यात्रा

प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत के साथ ही श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा था। सभी अपनी आस्था लिए संगम में डुबकी लगाने को बेताब थे। लेकिन इस धार्मिक यात्रा में कुछ की जिंदगी छूट गई, और उनके परिवारों के लिए यह सफर दर्द का सबसे बड़ा सबब बन गया।

व्यवस्था के सवालों के बीच सुर्खियों में इंसानी लाशें

हर बार की तरह हादसे के बाद सरकार ने जांच के आदेश दे दिए, रेलवे ने मुआवजे का ऐलान कर दिया, लेकिन क्या यह उन परिवारों के आंसू पोंछ पाएगा जिन्होंने अपनों को खो दिया? क्या कुछ लाख रुपये उस मां के कलेजे के दर्द को कम कर सकते हैं जिसने अपने इकलौते बेटे को खो दिया? कब तक व्यवस्थाएं सिर्फ मुआवजे के नाम पर आमजन की भावनाओं से खेलती रहेंगी?

कब मिलेगी सुरक्षा?

भीड़ नियंत्रण के लिए ठोस कदम क्यों नहीं उठाए जाते? क्यों हर बार हादसों के बाद ही सरकार जागती है? आखिर कब तक आम लोगों की जिंदगी यूं ही रेलवे प्लेटफार्मों और सड़कों पर बिखरती रहेगी? यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि एक चेतावनी है, जो यह बताती है कि अगर व्यवस्था नहीं बदली गई, तो अगली बार फिर कोई अपना खो देगा।

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