अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
प्रयागराज: कल्पना कीजिए, किसी व्यक्ति को मृत मान लिया जाए, उसकी आत्मा की शांति के लिए विधिवत पूजा-पाठ हो, ब्राह्मणों को भोजन कराया जाए, और फिर वही व्यक्ति अचानक मुस्कुराते हुए वापस लौट आए! कुछ ऐसा ही अविश्वसनीय लेकिन सच घटना घटी प्रयागराज में, जहां 60 वर्षीय खुन्टी गुरु, जिन्हें महाकुंभ की भगदड़ में मरा हुआ समझ लिया गया था, अपनी ही तेहरवीं के दिन लौट आए।
इस अप्रत्याशित घटना ने पूरे इलाके को चौंका दिया। जहां लोग पहले अविश्वास में थे, वहीं गुस्सा और आश्चर्य का दौर भी चला, लेकिन आखिर में यह पल खुशी में बदल गया। मोहल्ले में जैसे ही खुन्टी गुरु की वापसी की खबर फैली, लोगों ने मिठाइयां बांटनी शुरू कर दीं और माहौल जश्न में बदल गया।
कैसे मरे हुए मान लिए गए थे खुन्टी गुरु?
खुन्टी गुरु, जो प्रयागराज के जीरो रोड इलाके में एक छोटे से कमरे में अकेले रहते हैं, हमेशा से एक दिलचस्प और रहस्यमयी शख्सियत रहे हैं। वह अपने मजेदार किस्सों और साधु-संतों के बीच बिताए समय के लिए जाने जाते हैं।
28 जनवरी को मौनी अमावस्या के अवसर पर वह संगम स्नान के लिए निकले थे, लेकिन वापस नहीं लौटे। महाकुंभ में भारी भीड़ और भगदड़ के कारण कई लोग लापता हो गए थे। उनके न मिलने पर परिवार और मोहल्लेवालों ने उन्हें मृत मान लिया। 29 जनवरी से उनकी खोजबीन जारी रही, लेकिन जब कोई सुराग हाथ नहीं लगा, तो 12 फरवरी को उनकी आत्मा की शांति के लिए कर्मकांड और ब्राह्मण भोजन की तैयारी शुरू कर दी गई।
तेहरवीं के दिन लौटे मुस्कुराते हुए खुन्टी गुरु
जिस दिन उनकी तेहरवीं हो रही थी, उसी दिन दोपहर को अचानक ई-रिक्शा से मुस्कुराते हुए उतरते हुए खुन्टी गुरु घर पहुंचे। जैसे ही उन्होंने पूछा, “क्या कर रहे हो भाई?” वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें फटी रह गईं।
कुछ देर के लिए माहौल अजीब बन गया—कुछ लोग गुस्से में थे कि बिना बताए कहां चले गए थे, तो कुछ लोग हैरान थे कि आखिर इतने दिनों तक वे कहां थे? लेकिन कुछ ही देर में माहौल पूरी तरह बदल गया। किसी के घर का सदस्य मृत मान लिए जाने के बाद वापस लौट आए, इससे बड़ी खुशी और क्या हो सकती थी?
खुशी में लोगों ने पूरी-सब्जी और मिठाइयां पूरे मोहल्ले में बांटी। उनका पुनर्जन्म जैसा यह क्षण किसी चमत्कार से कम नहीं था।
इतने दिनों तक कहां थे खुन्टी गुरु?
जब लोगों ने उनसे पूछा कि आखिर इतने दिनों तक वे कहां थे, तो उन्होंने बड़े ही मजेदार अंदाज में जवाब दिया—
“बस कुछ साधुओं के साथ चिलम पी और लंबी नींद लग गई, शायद कुछ दिन के लिए।”
इसके बाद उन्होंने बताया कि जब वह महाकुंभ में स्नान के लिए गए थे, तो अचानक नागा साधुओं के एक दल से उनकी मुलाकात हो गई। वह उनके साथ शिविर में चले गए और वहीं रुक गए। वहाँ के भंडारों का आनंद लिया, साधुओं की सेवा की और मस्त जीवन जीते रहे। समय का पता ही नहीं चला कि कब दिन निकल गए और कब उन्हें घर लौटना था।
खुन्टी गुरु का जीवन और रहन-सहन
खुन्टी गुरु हमेशा से एक अलग तरह की जीवनशैली जीते आए हैं। उनके पिता कन्हैयालाल मिश्रा एक प्रतिष्ठित वकील थे, लेकिन खुन्टी गुरु ने पारंपरिक जीवन को त्यागकर साधुओं और संन्यासियों के साथ समय बिताना शुरू कर दिया। वह किसी भी बंधन में नहीं बंधते। मोहल्ले के लोग उन्हें बहुत पसंद करते हैं, क्योंकि वह हमेशा हंसी-मजाक करते रहते हैं और दिलचस्प कहानियां सुनाते हैं।
जीरो रोड इलाके में उनका एक छोटा सा कमरा है, लेकिन ज्यादातर समय वह पास के शिव मंदिर के आंगन में ही बिताते हैं। वहां के पुजारियों और श्रद्धालुओं से बातें करते-करते वहीं सो जाते हैं। मोहल्ले के दुकानदार उन्हें खाने-पीने और कपड़ों का इंतजाम कर देते हैं, और बदले में उन्हें खुन्टी गुरु की मजेदार गपशप सुनने को मिलती है।
मोहल्ले में खुशी का माहौल
खुन्टी गुरु की वापसी के बाद मोहल्ले में कोई शिकायत नहीं थी, बल्कि लोग बहुत खुश थे कि उनका चहेता गुरु सुरक्षित वापस आ गया। अब लोग उन्हें पहले से भी ज्यादा प्यार और सम्मान दे रहे हैं।
उनकी इस रहस्यमयी यात्रा और चमत्कारी वापसी की कहानी अब पूरे प्रयागराज में चर्चा का विषय बनी हुई है।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की