अब्दुल मोबीन सिद्दीकी की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश का जेवर इलाका, जो कभी एक साधारण गांव हुआ करता था, आज देशभर में चर्चा का केंद्र है। यहां देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट निर्माणाधीन है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना ने जेवर को राष्ट्रीय पटल पर पहचान दी है, लेकिन इसके साथ ही यहां के किसानों की ज़िंदगी में एक गहरा बदलाव आया है। विकास के इस सफर में किसानों ने अपनी जमीनें खोईं और बदले में करोड़ों का मुआवजा पाया। सवाल यह है कि क्या यह मुआवजा उनकी तकलीफों का मरहम बन सका, या फिर उनके जीवन में नई चुनौतियां लेकर आया?
किसानों की बदलती जिंदगियां
जब भी किसानों को करोड़ों रुपये मुआवजा मिलने की बात होती है, तो आम लोगों के दिमाग में एक समृद्ध जीवन की तस्वीर उभरती है। महंगी गाड़ियां, आलीशान मकान, और आरामदायक जीवन। लेकिन जेवर के किसानों की सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है।
नोएडा से यमुना एक्सप्रेस-वे होते हुए जब जेवर की सीमा में दाखिल होते हैं, तो एयरपोर्ट निर्माण का प्रभाव स्पष्ट दिखता है। बड़ी-बड़ी मशीनें, मजदूरों की टोलियां, और निर्माण स्थल की दीवारें उस बदलाव की कहानी कहती हैं, जिसने इस गांव की सूरत और सीरत दोनों को बदल दिया। लेकिन इन दीवारों के पीछे किसानों के दिलों में उम्मीदें टूट चुकी हैं, और गुस्सा उबाल पर है।
“पैसा तो मिला, लेकिन खेत चले गए”
रनहेरा गांव की चौपाल पर किसानों का एक समूह धरने पर बैठा था। इन्हीं में से एक देवराज सिंह ने बताया, “किसानी का जीवन सबसे अच्छा होता है। बच्चों को पढ़ा-लिखा रहे थे, घर का खर्च भी चल रहा था। लेकिन एयरपोर्ट ने सब छीन लिया। खेत चले गए और रोजगार भी।”
उनकी बातें सुनकर बुजुर्ग किसान सर्वोत्तम सिंह ने जोड़ा, “हमारी 13 बीघा जमीन गई। बदले में 2 करोड़ रुपये मिले। बेटियों की शादी की, कर्ज चुकाया, और पैसा खत्म हो गया। अब न खेत हैं, न कमाई का जरिया। मकान बनाने तक के लिए पैसा नहीं बचा।”
मुआवजा: वरदान या उलझन?
सरकार ने एयरपोर्ट निर्माण के लिए किसानों को करोड़ों रुपये का मुआवजा दिया। लेकिन जिन किसानों ने अपनी जिंदगी में कभी इतनी बड़ी रकम नहीं देखी थी, उनके लिए यह स्थिति चुनौती बन गई। कई किसानों ने यह पैसा गाड़ियां और प्लॉट खरीदने में लगाया, लेकिन अनजान योजनाओं और धोखाधड़ी का शिकार हो गए।
एक युवा राहुल ने बताया, “करीब 35% किसान बर्बाद हो गए हैं। प्लॉट खरीदे, लेकिन प्राधिकरण ने उन्हें अवैध घोषित कर दिया। खेती की जमीन लेने पर भी धोखा हुआ।”
वादे अधूरे, भविष्य अनिश्चित
किसानों का दर्द यहीं खत्म नहीं होता। सरकार ने वादा किया था कि हर घर से एक व्यक्ति को नौकरी मिलेगी। इसके लिए मुआवजे से 5 लाख रुपये काटे भी गए, लेकिन आज तक किसी को नौकरी नहीं मिली। विजय नामक ग्रामीण ने गुस्से में कहा, “हमारी जमीनें ले लीं और बदले में उम्मीदें दीं। अब गांव छोड़ने की नौबत आ गई है।”
संस्कृति और विरासत का अंत
कई किसान इस बदलाव को अपनी संस्कृति और पहचान के खत्म होने के रूप में देखते हैं। धर्मबीर सिंह ने बताया, “मुआवजे से खरीदी गई जमीन और प्लॉट बेटे ने अपने नाम करा लिए। अब बुढ़ापे में रोटी तक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।”
गांव की गलियों में खाली पड़े घर और पानी में डूबे मकान इस बात का सबूत हैं कि यह बदलाव किसानों के जीवन पर कैसा असर डाल रहा है।
विकास की असली कीमत
जेवर एयरपोर्ट परियोजना ने देश को एक नई पहचान दी है, लेकिन इसके लिए किसानों ने अपनी जड़ें खो दीं। मुआवजे से आर्थिक लाभ मिला, लेकिन यह लाभ अस्थायी साबित हुआ। किसानों ने अपनी जमीन, अपनी संस्कृति और अपनी स्थिरता खोई।
यह कहानी केवल जमीन खोने की नहीं है, बल्कि एक संघर्ष और बलिदान की है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या विकास की कीमत इतनी बड़ी होनी चाहिए कि इसके पीछे हजारों लोगों का भविष्य अंधकार में चला जाए।