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20 December 2024 10:03 am

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संघर्ष की गली से सम्मान की सभा तक – वल्लभ लखे श्री की प्रेरणादायक यात्रा

34 पाठकों ने अब तक पढा

अनिल अनूप की खास प्रस्तुति

भारत की गलियों में एक समय सफाईकर्मी का काम करने वाले माता-पिता शायद ही सोच सकते थे कि उनका बेटा एक दिन शिक्षाविद् बनेगा। लेकिन वल्लभ लखे श्री ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया कि गरीबी और पिछड़ा वर्ग सामाजिक उत्थान में बाधक होते हैं। वल्लभ का जीवन यह सिखाता है कि समर्पण, लगन और अथक प्रयास किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं। आज वे समाज के एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् और दलित समुदाय के प्रेरणास्रोत के रूप में पहचाने जाते हैं।

शुरुआती संघर्ष की कहानी

वल्लभ लखे श्री का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता नगर निगम में सफाईकर्मी थे। रोजाना गलियों में झाड़ू लगाते हुए, कूड़ा उठाते हुए उनका जीवन गुजरता था। समाज की तिरस्कार भरी नजरें, जातिवाद की दीवारें और आर्थिक तंगी के बावजूद, उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाने का सपना देखा।

वल्लभ ने बचपन से ही देखा कि कैसे उनके माता-पिता अपने अधिकारों से वंचित रहे, लेकिन उनके माता-पिता की एक ही ख्वाहिश थी कि उनका बेटा एक दिन सम्मानजनक जीवन जिए। वल्लभ के लिए स्कूल जाना भी आसान नहीं था। कभी किताबों की कमी तो कभी स्कूल तक की दूरी, पर उन्होंने हर कठिनाई को अवसर में बदला।

शिक्षा की राह में संघर्ष

वल्लभ लखे श्री ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी स्कूल में पूरी की। स्कूली जीवन में उन्होंने अनेक बार भेदभाव का सामना किया, लेकिन उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। वे पढ़ाई में अव्वल रहते और सभी प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते। उनकी मेहनत और लगन देखकर शिक्षकों ने भी उनका साथ दिया।

बड़े होकर उन्होंने उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ाया। सीमित संसाधनों के बीच, वल्लभ ने छात्रवृत्ति और अंशकालिक सहयोग के सहारे पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने शिक्षा में स्नातक और फिर स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की। उनकी मेहनत का ही परिणाम था कि उन्होंने शिक्षक पद के लिए चयन परीक्षा उत्तीर्ण की और एक सरकारी स्कूल में शिक्षक बने।

एक शिक्षक के रूप में योगदान

वल्लभ लखे श्री के लिए शिक्षक का पद केवल एक नौकरी नहीं था, बल्कि यह उनके लिए समाज सुधार का माध्यम था। उन्होंने अपने छात्रों को न केवल पढ़ाया, बल्कि उन्हें आत्मसम्मान और सामाजिक जागरूकता के मूल्यों से भी परिचित कराया। उन्होंने दलित बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। वे विशेष रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयासरत रहे।

उनका मानना है कि शिक्षा वह हथियार है, जिससे जातिगत भेदभाव और गरीबी की बेड़ियों को तोड़ा जा सकता है। उन्होंने अपने स्कूल में ‘समान शिक्षा अभियान’ की शुरुआत की, जिससे गरीब और अमीर बच्चों के बीच की खाई को पाटा जा सके।

समाज सुधारक के रूप में पहचान

शिक्षा के क्षेत्र में वल्लभ लखे श्री का योगदान इतना प्रभावशाली था कि उन्हें एक समाज सुधारक के रूप में भी पहचान मिली। वे दलित समुदाय के अधिकारों के लिए आवाज उठाते रहे हैं। उन्होंने कई सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर दलितों के लिए जागरूकता अभियान चलाए। उनकी पहल पर कई गांवों में स्कूल खोले गए और शिक्षा को दलित बस्तियों तक पहुंचाया गया।

वल्लभ लखे श्री का मानना है कि समाज में सुधार तभी संभव है जब सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी समान अवसर मिले। वे अक्सर कहते हैं, “मेरे माता-पिता की झाड़ू ने समाज की गंदगी को दूर किया, और मैं शिक्षा की रोशनी से समाज के अंधकार को मिटाना चाहता हूं।”

एक प्रेरणास्रोत

आज वल्लभ लखे श्री केवल शिक्षक नहीं हैं, वे लाखों दलित बच्चों और युवाओं के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियां क्यों न हों, दृढ़ संकल्प और शिक्षा के माध्यम से हर बाधा को पार किया जा सकता है।

वल्लभ लखे श्री की कहानी उन सभी लोगों को प्रेरित करती है, जो विषम परिस्थितियों में भी अपने सपनों को साकार करने की हिम्मत रखते हैं। यह कहानी बताती है कि गलियों में झाड़ू लगाने वाले माता-पिता का बेटा भी शिक्षाविद् और समाज सुधारक बन सकता है, यदि उसमें लगन, मेहनत और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण हो।

वल्लभ लखे श्री के जीवन का सार यही है

“संघर्ष भरी राहों से ही सफलता के द्वार खुलते हैं, और शिक्षा वह कुंजी है, जो हर बंद दरवाजे को खोल सकती है।” […. अगले शुक्रवार को भी जारी]

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