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November 1, 2024 4:12 pm

पत्रकार दिलीप सैनी की हत्या : सच्चाई की आवाज दबाने की कोशिशें और पत्रकारों की चुनौती

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 कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट

पत्रकार दिलीप सैनी की दुखद और निर्मम हत्या ने एक बार फिर पूरे पत्रकारिता जगत को झकझोर कर रख दिया है और यह सच्चाई उजागर कर दी है कि आज भी सच बोलने और लिखने वालों की राह में कितनी बड़ी चुनौतियां खड़ी हैं। सत्ता के गलियारों में, खुले मंचों से भले ही “बंटोगे तो कटोगे” जैसी बातें कहने का उद्देश्य कुछ और हो, लेकिन इसका संदेश पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। यह स्पष्ट करता है कि एकता में ही ताकत है, और यदि पत्रकार एकजुट नहीं होते, तो उन्हें ऐसे खतरों का सामना करना पड़ता रहेगा।

फतेहपुर में वरिष्ठ पत्रकार और ANI के जिला संवाददाता दिलीप सैनी की क्रूर हत्या और उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात सामने आती है कि भ्रष्टाचार और अराजकता में लिप्त लोग किस हद तक जाकर सच्चाई उजागर करने वालों से नफरत करते हैं। यह घटना एक चेतावनी है कि ऐसे भ्रष्टाचारी, दलाल और माफिया तत्व कभी नहीं चाहते कि उनके काले कारनामे समाज के सामने आएं। पत्रकार दिलीप सैनी की हत्या ने स्पष्ट किया है कि ऐसे तत्वों के लिए सच लिखने और दिखाने वाले पत्रकार दुश्मन के समान हैं।

यह समय है जब पत्रकारिता से जुड़े लोग अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर एकजुट हों और यह समझें कि पत्रकारिता की सच्ची ताकत एकता में है। क्योंकि माफिया और भ्रष्टाचारी तत्व कभी भी सच दिखाने वाले पत्रकारों के हितैषी नहीं रहे हैं, और न ही रहेंगे। पत्रकारों की हत्या या उन्हें फर्जी मुकदमों में फंसाने जैसी घटनाएं यह साफ दर्शाती हैं कि कई बार शासन-प्रशासन के व्यक्ति, चाहे वे किसी भी विभाग से जुड़े हों, पत्रकारों के शत्रु बन जाते हैं।

दिलीप सैनी की हत्या में एक लेखपाल का हाथ होना यह संकेत देता है कि भ्रष्टाचार सिर्फ बाहरी नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र के अंदर भी व्याप्त है। यह एक चिंताजनक स्थिति है, जिसमें पत्रकारों का संघर्ष उनके जुनून को कमजोर करता दिख रहा है। ऐसे में जरूरी है कि पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग जोर-शोर से उठाई जाए। अगर सरकारें पत्रकारों की सुरक्षा के प्रति गंभीर होतीं तो अब तक पत्रकार सुरक्षा कानून लागू हो चुका होता।

सच्चाई यह है कि अधिकतर पत्रकार अपने पेशे के प्रति ईमानदारी और निष्पक्षता से काम करते हैं, हालांकि पत्रकारिता में ऐसे लोग भी हैं जो अपने फायदे के लिए समझौते कर लेते हैं। फिर भी, सच्चाई उजागर करने वाले पत्रकारों की संख्या बहुत अधिक है और उनकी आवाज को एकजुटता से बुलंद करना आवश्यक है।

आज के दौर में सिर्फ पंचायती राज ही नहीं, बल्कि केंद्र और राज्य सरकारों से जुड़े विभिन्न विभागों की यही सच्चाई है कि यदि कोई पत्रकार उनके काले कारनामों को उजागर करता है, तो उसे जान से मारने या फर्जी मुकदमों में फंसाने तक की धमकी मिलती है। ऐसे समय में, पत्रकारों को वरिष्ठता, कनिष्ठता, बड़े-छोटे के भेदभाव से ऊपर उठकर एकजुटता दिखानी होगी। यह एकता ही इस लड़ाई में पत्रकारों की सबसे बड़ी ताकत बनेगी।

आइए, इस मुश्किल घड़ी में मिलकर खड़े हों, पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को एक आंदोलन में बदलें, और पत्रकार दिलीप सैनी को न्याय दिलाने का संकल्प लें। अपनी लेखनी का सही और पूरा उपयोग करें ताकि शासन-प्रशासन को इस मांग को मानने पर विवश किया जा सके। क्योंकि हमारी कलम की ताकत और प्रभाव ऐसा हथियार है जो किसी भी अन्य हथियार से अधिक प्रभावी है।

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