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November 1, 2024 2:56 pm

कल्याण कला मंच की संगोष्ठी : कलमकारों ने सांस्कृतिक समर्पण का दिया संदेश

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सुरेंद्र मिन्हास की रिपोर्ट

बिलासपुर में कल्याण कला मंच के कला कलमकारों की मासिक संगोष्ठी का आयोजन बड़े हर्षोल्लास के साथ ज़िला बिलासपुर की मां नैना देवी की पंचायत मज़ारी में किया गया। इस अवसर पर लोक संस्कृति के संरक्षण के महत्व को रेखांकित किया गया।

संगोष्ठी की अध्यक्षता एस.आर. आज़ाद ने की, जबकि सह-अध्यक्षता रविन्द्र भट्टा ने संभाली।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथियों के रूप में ग्राम पंचायत मज़ारी के उप प्रधान सरदार दीदार सिंह, पूर्व प्रधान कुलदीप सिंह दियोल, बी.डी.सी. सदस्य मनु देवी, सरदार स्वर्ण सिंह प्रधान गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और हिम्मत सिंह सचिव गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी उपस्थित रहे।

संगोष्ठी में विभिन्न लेखकों और कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। चंद्रशेखर पंत ने पत्रवाचन किया, जबकि अमरनाथ धीमान ने भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा, “जब-जब इन आंखों से आंसू बहे इस व्याकुल दिल को तसल्ली देने आना।”

रविंद्र चंदेल कमल ने अपनी कविता में अहंकार के नाश की बात की, “बीती रात अहंकार जला, रावण जला या अहंकार जला,” जो सभी को भावनात्मक रूप से छू गई। एस.आर. आज़ाद ने भी अपनी कविता में पीड़ा को व्यक्त किया, “कितनी केडी लगुरी ओ लगुरिया री पीड़ बुरी।”

रविंद्र भट्टा ने नशे की समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, “अच्छा तो यह है कि नशे की दुनिया के विपक्ष में लिखो कुछ दोहे।” भाग सिंह ने शराब की बुराई पर ध्यान दिया, जबकि वनजोत कौर ने सांस्कृतिक स्वामी की महिमा का वर्णन किया।

मनु देवी ने अपने शब्दों में खुशी का इज़हार करते हुए कहा, “दिल में बहुत खुशी है, एक नई उमंग जगी है।” तृप्ता कौर मुसाफिर ने सफर को जीवन के संदर्भ में दर्शाते हुए गाया, “आईं वे मुसाफरा, सफर जिंदगानी दा निभाई।”

परमजीत सिंह कहलूरी ने मोहब्बत और ग़म के अनुभव साझा किए। राकेश मन्हास ने अपने शब्दों में सतनाम का महत्व बताया, जबकि श्याम सहगल ने प्रेम और त्याग की भावनाओं को उजागर किया।

भगत सिंह ने संस्कृति के संरक्षण और हस्तांतरण के महत्व को रेखांकित किया, और कुमारी शिवानी ने झांसी की रानी की महत्ता को बखान किया। शिवनाथ सहगल और आशा कुमारी ने अपने विचारों में जीवन की सच्चाईयों का बखान किया।

सीता जसवाल ने धरती मां की सुंदरता का उल्लेख किया, और तेजराम सहगल ने जीवन की जटिलताओं पर विचार व्यक्त किए। राकेश मन्हास ने अपनी स्थिति का जिक्र करते हुए अपनी चिंता को साझा किया।

इस संगोष्ठी का आयोजन स्थानीय जनता के लिए विशेष रहा, जिन्होंने कला-कलमकारों की रचनाओं का भरपूर आनंद लिया। अंत में मंच के संयोजक अमरनाथ धीमान ने सभी उपस्थित व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया और लोक संस्कृति के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।

इस संगोष्ठी ने न केवल स्थानीय संस्कृति को समर्पित किया, बल्कि कलमकारों की आवाज को भी मजबूती प्रदान की, जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने की दिशा में कार्यरत हैं।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."