चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
गाजियाबाद के डासना इलाके में नवरात्रि के अष्टमी के दिन, जब पूरे देश में लोग छोटी बच्चियों को देवी का स्वरूप मानकर उनकी पूजा कर रहे थे, उसी दिन इनायतपुर गांव में एक नवजात बच्ची को झाड़ियों में छोड़ दिया गया।
बच्ची के रोने की आवाज सुनकर वहां से गुजरने वाले लोगों ने उसे देखा और तुरंत पुलिस को सूचित किया। माना जा रहा है कि लोकलाज के डर से किसी मां ने उसे छोड़ दिया।
पुलिस मौके पर पहुंची और बच्ची को सुरक्षित अपने कब्जे में लिया। दिलचस्प बात यह रही कि पुलिस टीम में शामिल चौकी प्रभारी पुष्पेंद्र ने इस बच्ची को देखते ही उसे गोद लेने का फैसला कर लिया।
इस बारे में उन्होंने अपनी पत्नी से बात की, और पत्नी की सहमति मिलने पर बच्ची को अपना लिया। पुष्पेंद्र और उनकी पत्नी कई सालों से संतान की प्रतीक्षा कर रहे थे, और नवरात्रि के इस शुभ अवसर पर बच्ची को पाकर वे बेहद खुश हुए।
हालांकि, कानूनी प्रक्रिया अभी पूरी होनी बाकी है, लेकिन पुष्पेंद्र ने इसके लिए कवायद शुरू कर दी है।
इस घटना ने हमारे समाज में छिपी कई सच्चाइयों को उजागर किया है। एक तरफ, जहां माता-पिता बच्चियों को देवी का रूप मानकर पूजते हैं, वहीं दूसरी ओर, कुछ लोग सामाजिक दबाव और लोकलाज के कारण नवजात बच्चियों को छोड़ देते हैं।
यह विरोधाभास समाज के दोहरे चरित्र को दर्शाता है। साथ ही, इस घटना ने यह भी साबित किया कि मानवता और करुणा आज भी जीवित हैं।
पुलिसकर्मी पुष्पेंद्र और उनकी पत्नी का बच्ची को अपनाना यह संदेश देता है कि हर बच्चा प्यार और देखभाल का हकदार है, चाहे वह किसी भी परिस्थिति में क्यों न पैदा हुआ हो।
Author: samachar
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