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November 1, 2024 5:02 pm

क्या हुआ ऐसा कि एक साथ 15 पुलिसकर्मियों पर मुकदमा और विभागीय जांच की गिरी गाज? 

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जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट

आजमगढ़। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सत्यवीर सिंह ने अहरौला पुलिस को महत्वपूर्ण निर्देश देते हुए पवई थाने के तत्कालीन थानाध्यक्ष समेत 15 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच का आदेश दिया है। 

यह निर्णय एक गंभीर मामले पर आधारित है, जिसमें वादी पक्ष ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने उनके पति और उनके साथी को फर्जी तरीके से गिरफ्तार किया।

मामले की शुरुआत तब हुई जब गीता, जो अहरौला थाना क्षेत्र की निवासी हैं, ने अदालत में एक वाद दाखिल किया। उन्होंने बताया कि उनके पति, इंद्रजीत यादव और संचित यादव, फुलवरिया में बीयर की दुकान पर सेल्समैन के रूप में कार्यरत हैं। 

गीता के अनुसार, होली के दौरान पुलिस ने उनके पति से अवैध धन की मांग की, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इसके बाद, पवई थानाध्यक्ष संजय कुमार और उनके सहयोगियों ने मिलकर 7 मार्च 2020 को उनके घर पर छापेमारी की।

पुलिसकर्मियों ने गीता के पति और संचित यादव को स्कार्पियो गाड़ी में बैठा लिया और खुद गाड़ी चलाते हुए उन्हें पवई थाने ले गए। 

पुलिस ने दावा किया कि उन्होंने स्कार्पियो से शराब और गांजा बरामद किया और बाद में इंद्रजीत और संचित को गिरफ्तार कर लिया। गीता ने यह भी बताया कि उनके पति और संचित यादव को 4 जून 2020 को उच्च न्यायालय द्वारा जमानत मिली थी।

इसके अतिरिक्त, गीता ने 29 मई 2020 को न्यायालय में आवेदन दिया था कि उनके वाहन को छोड़ दिया जाए, जिसके बाद न्यायालय ने 26 जून 2020 को आदेश जारी किया कि वाहन उन्हें सौंपा जाए। हालांकि, थानाध्यक्ष संजय कुमार ने इस आदेश का पालन नहीं किया, जिसके कारण गीता को फिर से न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

इस मामले में सुनवाई के बाद, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अहरौला थानाध्यक्ष को आदेश दिया कि पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए और इसकी विवेचना की जाए।

अधिकारी एसपी ग्रामीण चिराग जैन ने भी इस मामले की पुष्टि की और कहा कि 26 सितंबर 2024 को उन्हें सीजीएम आजमगढ़ से आदेश प्राप्त हुआ था, जिसमें तत्कालीन थानाध्यक्ष और अन्य 15 पुलिसकर्मियों के खिलाफ वैध कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने आश्वासन दिया कि मामले की जांच की जाएगी और जो भी तथ्य सामने आएंगे, उसके आधार पर कार्रवाई की जाएगी।

इस प्रकार, यह मामला न केवल पुलिस के आचरण पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका की भूमिका किस प्रकार से नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में महत्वपूर्ण होती है।

यह कदम पुलिस की कार्रवाई में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."