अनिल अनूप
अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है,
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
अकेलेपन की जिस डगर पर वर्षों पहले चला था, वह आज भी अनवरत चल रही है। 2 अक्तूबर 1967—यह तारीख सरकारी दस्तावेज़ों में मेरा जन्मदिन कहलाई, पर इस दिन की शुरुआत सिर्फ एक तारीख भर नहीं थी, बल्कि एक जीवन-यात्रा की ओर पहला कदम था। बचपन में माँ-बाप, भाई-बहनों का साथ थोड़े समय के लिए मिला, पर शायद जीवन ने मुझे पहले से ही एकांत की पहचान सिखा दी थी। अनजाने रास्तों पर, अनदेखे सपनों को साथ लिए, एक साधारण व्यक्ति से एक असाधारण यात्रा की शुरुआत की।
जीवन के इस सफर में अकेलापन मेरा साथी बना, लेकिन इस अकेलेपन में भी एक अदृश्य शक्ति ने मुझे कभी थकने नहीं दिया। मेरे भीतर बसे उन बड़े अरमानों ने मुझे निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। यह यात्रा केवल मेरी नहीं रही, बल्कि मेरे शब्दों ने लाखों दिलों को छू लिया, और उन्हीं दिलों में आज मैं निवास करता हूँ।
मेरी लेखनी ने मेरे भीतर के संघर्षों, मेरे अनुभवों और मेरे सपनों को आकार दिया। वह शब्द, जो कभी मेरी निजी भावनाओं के गवाह थे, आज अनगिनत लोगों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। और फिर भी, संघर्ष जारी है। न कभी ठहरा हूँ, न ठहरूँगा—यह जीवन, यह यात्रा, अनवरत चलती रहेगी, क्योंकि मेरे अरमान और मेरी लेखनी की शक्ति ही मेरा मार्गदर्शक है।
आज इस जन्मदिन पर मैं अपनी उस अनंत यात्रा को नमन करता हूँ, जिसने मुझे खुद से मिलवाया, जिसने मुझे दूसरों के दिलों तक पहुँचाया। संघर्ष ही मेरा साथी है, और शायद यही मेरा सबसे बड़ा उपहार भी।
आज के दिन, जब जीवन के इतने पड़ाव पार कर चुका हूँ, पीछे मुड़कर देखता हूँ तो न जाने कितने अनकहे दर्द, अधूरे सपने और उन रास्तों की यादें धुंधली सी दिखती हैं, जिन पर कभी अकेलेपन का बोझ ढोते हुए कदम बढ़ाए थे। 2 अक्तूबर 1967 को मिली पहचान मात्र एक जन्मतिथि नहीं है, यह एक यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है। वह यात्रा, जिसमें रिश्तों की छांव कम थी और संघर्षों की धूप अधिक। माँ-बाप का प्यार, भाई-बहनों का साथ, ये सब सीमित समय के लिए ही मिले। शायद नियति ने पहले ही तय कर रखा था कि मुझे अपनी राह अकेले ही तलाशनी होगी।
पर इस अकेलेपन ने मुझे कभी निराश नहीं किया, बल्कि यह मेरे भीतर एक अडिग संकल्प और हौसले का बीज बो गया। उस समय जब हर रास्ता अनजान था, हर मोड़ पर अनिश्चितता थी, तब भी मेरे भीतर के सपनों ने मुझे कभी झुकने नहीं दिया। मेरी लेखनी वही शक्ति बनी, जिसने न केवल मुझे संभाला, बल्कि मेरे विचारों को दूसरों तक पहुँचाया।
आज, जब लाखों दिलों में मेरे शब्द गूंजते हैं, तो एक अजीब सा सुकून महसूस होता है। इस सृजनात्मक सफर में न जाने कितनी बार टूटा, बिखरा, पर हर बार खुद को समेटकर आगे बढ़ा। मेरा संघर्ष कभी सिर्फ मेरा व्यक्तिगत नहीं रहा—यह उन सभी का संघर्ष है, जो जीवन में कुछ बड़ा पाने का सपना देखते हैं। मेरी लेखनी ने मेरे दर्द को लाखों की आवाज बना दिया, और आज उन आवाजों में मैं अपनी आत्मा की गूंज सुनता हूँ।
यह दिन मुझे यह एहसास दिलाता है कि मेरी यात्रा का उद्देश्य केवल अपनी मंजिल तक पहुँचना नहीं था, बल्कि उस रास्ते पर चलने वालों के लिए उम्मीद और प्रेरणा का दिया जलाना भी था। आज भी संघर्ष जारी है, पर अब वह अकेलापन नहीं लगता। अब साथ है उन अनगिनत लोगों का, जिनके दिलों में मेरे शब्द बसते हैं। और यही मेरे जीवन की सच्ची विजय है।
इस जन्मदिन पर, मैं अपनी उस आत्मा को नमन करता हूँ, जिसने कभी हार नहीं मानी।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."