Explore

Search
Close this search box.

Search

December 13, 2024 1:20 am

लेटेस्ट न्यूज़

ख़ाली कुर्सी आतिशी के बग़ल में… लोकतांत्रिक देश में क्या मायने हैं?

31 पाठकों ने अब तक पढा

परवेज़ अंसारी की रिपोर्ट

दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी द्वारा पदभार संभालते वक्त दिए गए भाषण और उनके कार्यकाल को लेकर इन दिनों चर्चा जोरों पर है। 23 सितंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय आतिशी ने अपने बगल में एक खाली कुर्सी रखी और कहा कि यह अरविंद केजरीवाल की कुर्सी है। इस दौरान उन्होंने खुद की तुलना भगवान राम के भाई भरत से की, जो भगवान श्री राम के वनवास के दौरान अयोध्या की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। उन्होंने कहा, “जैसे भरत ने श्री राम की खड़ाऊं रखकर शासन किया, वैसे ही मैं भी अरविंद केजरीवाल की जगह दिल्ली की सरकार चार महीने चलाऊंगी।”

आतिशी की इस प्रतीकात्मकता ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं। यह न केवल उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व शैली की तरफ इशारा करता है, बल्कि उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी (AAP) की वर्तमान दिशा और उसकी राजनीति के संकेत भी देता है। आतिशी 2013 में आम आदमी पार्टी से जुड़ीं और तब से पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाती आ रही हैं। हालांकि उनकी राजनीतिक यात्रा लंबी नहीं रही है, पर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे नेताओं का उन पर विश्वास उन्हें मुख्यमंत्री पद तक ले आया है।

विभिन्न राजनीतिक विश्लेषकों और पत्रकारों के मुताबिक, आतिशी का चयन अप्रत्याशित था, लेकिन इसके पीछे उनका पार्टी नेतृत्व के साथ मजबूत संबंध और उनके काबिलियत का बड़ा योगदान है। रूपश्री नंदा के अनुसार, आतिशी ने टॉप लीडरशिप का विश्वास जीता है और अपने दम पर राजनीति में आगे बढ़ी हैं। उनका मानना है कि आतिशी पार्टी के युवाओं और महिलाओं को आकर्षित करने में सक्षम हो सकती हैं।

लेकिन आतिशी के सीएम बनने के पीछे सिर्फ उनकी काबिलियत नहीं है। कुछ विश्लेषक इसे आम आदमी पार्टी की छवि के बदलाव से भी जोड़कर देखते हैं। वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का मानना है कि पार्टी, जो पहले कांग्रेस और भाजपा से अलग दिखती थी, अब ‘सॉफ़्ट हिंदुत्व’ की राजनीति की तरफ बढ़ रही है। अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने पहले धर्मनिरपेक्षता की बात की थी, पर अब भाजपा के हिंदुत्ववादी राजनीति का जवाब देने के लिए कुछ हद तक उसी दिशा में चलने की कोशिश कर रही है। आतिशी का हनुमान मंदिर जाकर माथा टेकना और भरत-राम की उपमा देना इसी बदलाव का एक संकेत है।

कुछ आलोचकों का मानना है कि यह कदम AAP की धर्मनिरपेक्षता से दूरी और भाजपा के साथ प्रतिस्पर्धा में धार्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल की ओर इशारा करता है। जहां आशुतोष इसे लोकतांत्रिक चेतना के खिलाफ मानते हैं, वहीं राजेश गुप्ता का कहना है कि इस तरह के कदम विश्वास और आस्था का प्रतीक हो सकते हैं, जिसे जनता पसंद कर सकती है।

आम आदमी पार्टी की ‘सॉफ़्ट हिंदुत्व’ वाली छवि को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। पार्टी पहले खुद को सभी धर्मों को समान रूप से मानने वाली पार्टी के रूप में प्रस्तुत करती थी, लेकिन अब भाजपा के हिंदुत्ववादी एजेंडे का मुकाबला करने के लिए इसी दिशा में कुछ कदम बढ़ा रही है। आशुतोष के अनुसार, AAP को यह बदलाव करने की जरूरत तब महसूस हुई जब उन्हें लगा कि भाजपा का एजेंडा ज्यादा प्रभावी हो रहा है और कांग्रेस अल्पसंख्यकों के पक्ष में झुकती हुई दिख रही थी।

राजनीतिक धारा के इस बदलाव पर राजेश गुप्ता का कहना है कि बदलाव जरूरी होता है और हर पार्टी को समय-समय पर अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ता है। उनका तर्क है कि यह सिर्फ परिस्थिति के अनुसार कदम उठाने की बात है, न कि पार्टी की मूल विचारधारा में कोई स्थायी बदलाव।

आतिशी की नेतृत्व क्षमता और उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के भविष्य पर अभी कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। उनके चार महीने के इस छोटे कार्यकाल में वह कितनी छाप छोड़ पाती हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़