ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में स्थित मामा-भांजा रेस्टोरेंट के संचालक मुबीन अहमद पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि वह अपने रेस्टोरेंट को शाकाहारी बताकर मांसाहारी भोजन परोस रहा था।
इस घटना ने इलाके में हिंदू संगठनों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया, जिसके बाद पुलिस ने मौके पर पहुंचकर खाने के नमूने लिए। हिंदू संगठनों ने इसके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, और पुलिस मामले की जांच में जुटी है।
मुबीन अहमद, जो खुद को हिंदू बताकर ग्राहकों को धोखा दे रहा था, माथे पर टीका लगाकर शाकाहारी भोजन का दावा करता था, जबकि हकीकत में मांसाहारी व्यंजन परोसे जा रहे थे।
किदवई नगर स्थित इस रेस्टोरेंट के बारे में स्थानीय लोगों ने सूचना दी थी कि यह एक शाकाहारी भोजनालय के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, लेकिन वहां मांसाहारी भोजन भी उपलब्ध है।
इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर क्यों कोई व्यक्ति अपनी असली पहचान छिपाकर लोगों को धोखा देने का प्रयास करता है? जो ग्राहक शाकाहारी भोजन के नाम पर वहां आते हैं, उनके साथ यह विश्वासघात क्यों किया जा रहा है?
सरकार की ओर से हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह आदेश जारी किया था कि सभी होटल, ढाबा, और रेस्टोरेंट के बोर्ड पर मालिक का नाम और शाकाहारी या मांसाहारी भोजन का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। इसके बावजूद, कुछ लोग अब भी इस निर्देश का उल्लंघन कर रहे हैं और ग्राहकों के साथ धोखा कर रहे हैं।
इस मामले में एक और चिंताजनक पहलू यह है कि कुछ राजनेता इस धोखाधड़ी को धार्मिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि असल मुद्दा ग्राहकों के विश्वास और सुरक्षा का है।
यह सवाल भी उठता है कि अगर किसी हिंदू व्यक्ति ने फर्जी नाम से दुकान खोलकर मुस्लिम ग्राहकों को सूअर का मांस परोसा होता, तो क्या तब भी नेताओं और अदालतों का यही रवैया होता? यह सोचने की बात है कि ऐसे मामलों को धर्म से जोड़ने की प्रवृत्ति आम लोगों के अधिकारों और विश्वासों पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।
इस घटना को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से देखना सही नहीं है। यह सीधे तौर पर उपभोक्ता संरक्षण और विश्वास का मामला है, और ऐसे मामलों में सरकार और न्यायपालिका को उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। धोखाधड़ी चाहे किसी भी रूप में हो, वह निंदनीय है और इसके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."