पंडित श्रीराम जीत द्विवेदी
महाभारत के महत्वपूर्ण पात्रों में से एक, भीष्म पितामह को उनकी महानता, पराक्रम और त्याग के लिए जाना जाता है। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, जिसका अर्थ था कि उनकी मृत्यु तब तक नहीं हो सकती थी जब तक वे स्वयं मृत्यु की इच्छा न करें। भीष्म की मृत्यु की कहानी महाभारत के युद्ध का एक प्रमुख और मार्मिक प्रसंग है, जिसमें शिखंडी की भूमिका भी अहम है।
भीष्म और अम्बा की कहानी
भीष्म की मृत्यु का कारण बनने वाली कहानी की शुरुआत अम्बा से होती है, जो शिखंडी के पूर्वजन्म की कथा है। अम्बा काशीराज की पुत्री थी, जिसे भीष्म ने अपनी सौतेली भाइयों के विवाह के लिए हरण किया था। जब अम्बा ने भीष्म को बताया कि वह शाल्व राजा से प्रेम करती है, तो भीष्म ने उसे शाल्व के पास भेज दिया। लेकिन शाल्व ने अम्बा को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि वह पहले भीष्म द्वारा हरण की जा चुकी थी। अपमानित और क्रोधित अम्बा ने भीष्म से विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेने के कारण भीष्म ने उसे अस्वीकार कर दिया। इससे अम्बा ने भीष्म से प्रतिशोध लेने की ठान ली।
अम्बा का पुनर्जन्म और शिखंडी के रूप में वापसी
अम्बा ने भीष्म से प्रतिशोध लेने के लिए कई राजाओं से मदद मांगी, लेकिन कोई भी उसकी सहायता को तैयार नहीं हुआ। तब अम्बा ने भगवान शिव की घोर तपस्या की।
शिव ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि अगले जन्म में वह भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। अम्बा ने शिखंडी के रूप में पुनर्जन्म लिया, जो राजा द्रुपद के पुत्र थे। शिखंडी पुरुष और स्त्री दोनों के तत्वों से बने थे, और इसी कारण भीष्म उन्हें पुरुष नहीं मानते थे। शिखंडी की नियति ही भीष्म की मृत्यु का कारण बनना था।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीष्म की भूमिका
कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीष्म पितामह कौरवों की ओर से सेनापति थे। उनकी वीरता और युद्ध कौशल के सामने कोई भी योद्धा टिक नहीं पाता था। भीष्म प्रतिदिन हजारों सैनिकों को मार गिराते थे, जिससे पांडव सेना निराश हो गई थी। श्रीकृष्ण को ज्ञात था कि भीष्म केवल पुरुषों से ही युद्ध करते हैं और शिखंडी को वे पुरुष नहीं मानते। इसलिए श्रीकृष्ण ने शिखंडी को भीष्म के सामने भेजने की योजना बनाई।
शिखंडी और अर्जुन का भीष्म पर हमला
युद्ध के दौरान शिखंडी ने भीष्म पर तीरों की बौछार कर दी, लेकिन भीष्म ने उन पर शस्त्र नहीं उठाए, क्योंकि वे शिखंडी को पुरुष नहीं मानते थे। शिखंडी के तीर भीष्म को कोई नुकसान नहीं पहुँचा सके।
इसी दौरान अर्जुन, शिखंडी के पीछे छिपकर भीष्म पर वार करने लगे। युद्ध के नियमों के अनुसार, किसी योद्धा पर दो योद्धाओं का एक साथ हमला करना और छुपकर वार करना अनुचित था, लेकिन इन नियमों की अनदेखी कर अर्जुन ने लगातार भीष्म पर तीर चलाए। शिखंडी की आड़ में अर्जुन ने भीष्म पर दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया, जिससे भीष्म का शरीर तीरों से छलनी हो गया।
भीष्म का बाणों की शैया पर लेटना
अर्जुन और शिखंडी के बाणों से घायल होकर भीष्म का शरीर अर्धतः जमीन पर और अर्धतः हवा में लटक गया। अर्जुन ने भीष्म के लिए बाणों की शैया बनाई, जिस पर भीष्म लेट गए। इसके बाद अर्जुन ने भीष्म के सिर को स्थिर रखने के लिए तीन बाणों का सहारा दिया। भीष्म ने मृत्यु को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वे सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें पता था कि उत्तरायण के समय प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भीष्म की अंतिम विदाई
भीष्म 58 दिनों तक बाणों की शैया पर लेटे रहे, अपनी इच्छा मृत्यु के वरदान के कारण वे पीड़ा सहते हुए भी जीवित थे। अंततः सूर्य उत्तरायण के दिन उन्होंने सभी कुल के लोगों से विदा ली और अपनी मां गंगा की गोद में प्राण त्याग दिए। उनकी यह मृत्यु महाभारत के युद्ध का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।
भीष्म की कहानी न केवल उनके महान योद्धा होने का प्रमाण है, बल्कि यह उनके त्याग, प्रतिज्ञा और कर्तव्य के प्रति अडिग रहने की भी मिसाल है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."