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November 22, 2024 2:04 am

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चालीस कलाकारों की बहुरंगी प्रस्तुतियों ने मोहा शहरवासियों का मन

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सुरेंद्र मिन्हास की रिपोर्ट

बिलासपुर, हिमाचल। कल्याण कला मंच के बैनर तले आयोजित एक कला संगोष्ठी में शहर के करीब चालीस कलाकारों ने अपनी बहुरंगी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

इस कार्यक्रम में शिक्षाविद मस्त राम वर्मा और नरिंद्र दत्त शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जबकि सुरेंद्र मिन्हास ने अध्यक्षता की। कार्यक्रम का संचालन मंच की महासचिव तृप्ता कौर मुसाफिर ने किया।

कार्यक्रम की शुरुआत नरिंद्र शर्मा द्वारा गाए गीत “उड़ी जाया उड़ी जाया कालेआ कागा” से हुई, जिसने दर्शकों का मन मोह लिया। इसके बाद राम पाल डोगरा ने “टेसू इक उम्दा कलाकार थे” की प्रस्तुति दी।

भंजवानी की बेटी कुमारी आशा ने “ना जाने कैसा दिन था वाह” गाया, जिससे श्रोताओं ने खूब सराहना की। मंच के प्रबंधक चंद्र शेखर पंत ने कहा, “साहित्य ने विज्ञान को आवश्यकता की जननी माना है,” और अमरनाथ धीमान ने “इतरती बलखाती सी अल्हड़ जवानी” कविता प्रस्तुत की।

जीत राम सुमन ने “किने बगाडे गभरु महारे कुण घुमदा अज्ज गली पुछाड़े” गाकर कार्यक्रम को और मनोरंजक बना दिया।

युवा कलाकार दिव्या मेहता ने “लग जा गले फिर हसीन रात हो ना हो” गाया, जिससे पूरे माहौल में शांति और सुकून की अनुभूति हुई। डियारा के रविंद्र नाथ भट्टा ने “आंखों की बचपन की भरी शरारत फूलों में किरणों में” सुनाकर दर्शकों का दिल जीत लिया।

सुख राम आज़ाद ने “हम बुत परस्त से बन गये जबसे चाहा है तुम्हें हमने” की प्रस्तुति दी। इसी क्रम में, रौडा के शिव पाल गर्ग ने “अभी तो छोड़ी है उसने शराब” गाया और दनोह के रविंद्र शर्मा ने “बादल तेरा दिन है पार ना पाया” सुनाकर तालियाँ बटोरीं।

इसके बाद, सहकारी बैंक के प्रबंधक नरेंदर कुमार ने “माये नी मेरिये शिमले दी राहें चम्बा कितनाक दूर” गीत प्रस्तुत किया। श्रीमती सुमन चड्ढा ने “पढ़ी लिखी करी घरा ई रहणा” गाया, और हबीब खान ने “झिल्ला रा नजारा शेहर बड़ा प्यारा” सुनाकर लोगों को भावुक कर दिया। दनोह की सीता जसवाल ने “दुनिया में भारत आज फिर विश्व गुरु कहलाता है” पर आधारित कविता सुनाई।

डियारा के हुसैन अली ने “मैं कतरा हो कर भी समुद्र से जंग लेता हूं” सुनाया, और तेज राम सहगल ने “सुंदर पांडाल सजाया हमने विराजो गजराज” प्रस्तुत किया।

श्याम सुंदर ने “आ भी जा आ भी जा जिंद मेरिये” गाया और रौडा की गायत्री कपिल ने “बिना जुर्म ही सजा पा रहे हैं” पर गहराई से विचार प्रस्तुत किया।

शिव नाथ सहगल ने “हम थे जिनके सहारे वो हुए ना हमारे” सुनाया। ओंकार कपिल ने “काले बाबा को होता था प्रथम निमंत्रण आते तो अन्नपूर्णा बरसती” कहकर श्रोताओं को हंसाया।

लखनपुर की कौशल्या शर्मा ने “क्यों टूट रहे परिवार क्यों बिखर रहे रिश्ते” पर भावनात्मक रूप से विचार व्यक्त किया। राकेश मन्हास ने पंचम स्वर में “उंगलियाँ गैरत मंदों पर ना उठाया कर” गाकर सभी को प्रभावित किया।

भंजवानी की युवा गीतकारा कुमारी पूजा ने “रब जो चाहे वही तो होना है, आदमी खिलौना है” प्रस्तुत किया, जिससे उन्हें खूब तालियाँ मिलीं।

कार्यक्रम के अंतिम पड़ाव में कर्मवीर कंडेरा ने “मेरे पिताजी मेरे लिए अहसास थे, हर छोटे-बड़े के लिए खास थे” सुनाया।

मंच संचालन कर रही तृप्ता कौर मुसाफिर ने “कद्दू कहे मैं गोल मटोल मुझ में है खजाना अनमोल” सुनाया, जिससे श्रोताओं में हंसी की लहर दौड़ गई। मंच के प्रधान सुरेंद्र मिन्हास ने पहाड़ी किसान की व्यथा “जे खेत्ता नी जाओ न्याणे स्याणे, नी पेडुए पौणे सेर क दाणे” प्रस्तुत की।

मुख्य अतिथि नरेंद्र शर्मा ने “डुब्बी गए घर बार आई गया पानी चल मेरी जिंदे” गाकर समापन की ओर बढ़ाया। अंत में, मस्त राम वर्मा ने मंच की समाजोपयोगी गतिविधियों की सराहना करते हुए 1100 रुपये प्रोत्साहन स्वरूप प्रदान किए।

संगोष्ठी के समापन से पूर्व संयोजक अमरनाथ धीमान ने सभी उपस्थित विद्वानों का आभार प्रकट किया। इसके बाद सभी ने कहलूरी धाम का आनंद लिया।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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