मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
अब तो रेल हादसे जैसे आए दिन की बात हो गए हैं। पिछले दो महीने में शायद ही कोई हफ्ता बीता हो, जब कहीं न कहीं कोई बड़ी रेल दुर्घटना न हुई हो। शुक्रवार और शनिवार की दरम्यानी रात को साबरमती एक्सप्रेस के बाईस डिब्बे पटरी से उतर गए। गनीमत है, उसमें कोई हताहत नहीं हुआ।
हादसा कानपुर के पास रात के करीब ढाई बजे हुआ, जब गाड़ी में ज्यादातर लोग सो रहे थे। ट्रेन चालक का कहना है कि इंजन किसी भारी चीज से टकराया, वह जब तक गाड़ी रोकता, डिब्बे पटरी से उतर चुके थे।
तस्वीरों में साफ दिखा कि इंजन के आगे सुरक्षा के लिए लगा लोहे का हिस्सा टूट गया था
तस्वीरों में साफ देखा जा रहा है कि इंजन के आगे जानवरों आदि से सुरक्षा के लिए लगा लोहे का हिस्सा टकरा कर टूट चुका है। समझना मुश्किल है कि इतना भारी पत्थर रेल की पटरियों पर आया कैसे। अगर कोई पहाड़ी इलाका होता, तो माना जा सकता था कि ऊपर से खिसक कर पत्थर वहां आ गया होगा।
खैर, सच्चाई तो जांच के बाद पता चलेगी, पर असल सवाल जस का तस बना हुआ है कि आखिर रेल सुरक्षा को लेकर कब मुसाफिरों में भरोसा बन सकेगा।
वर्षों से ट्रेनों में टक्कररोधी उपकरण लगाने और पटरियों को अधिक सुगम बनाने की योजना पर काम चल रहा है।
वर्तमान सरकार ने कवच नामक उपकरण विकसित किया, जिसे लगाने के बाद गाड़ियों में हादसों की आशंका शून्य होने का दावा किया जाता रहा है। मगर अभी तक यह प्रणाली कुछ ही जगहों पर लग पाई है।
ट्रेनों के संचालन को कंप्यूटरीकृत करने पर जोर है, बहुत सारे रास्तों पर यह काम भी करता है। मगर कई हादसों में देखा जा चुका है कि सिग्नल प्रणाली ठीक से काम न करने की वजह से गाड़ियां आपस में टकरा गईं, तो कहीं किसी गाड़ी को गलत पटरी पर रवाना कर दिया गया। एक ही पटरी पर दो विपरित दिशाओं से गाड़ियों के आने के भी उदाहरण हैं।
गाड़ियों के पटरी से उतरने की वजहें छिपी नहीं हैं। यात्रियों का दबाव कम करने के मकसद से हर वर्ष कुछ नई गाड़ियां चला दी जाती हैं। त्योहारों के वक्त विशेष गाड़ियां भी चलाई जाती हैं। फिर, माल ढुलाई के लिए रेल यातायात पर दबाव लगातार बढ़ता गया है। मगर पटरियों की क्षमता का आकलन ठीक से नहीं किया जाता। देश की ज्यादातर पटरियां अपनी क्षमता से अधिक भार वहन कर रही हैं। ऐसे में दबाव पड़ने से उनमें टूटन स्वाभाविक है।
पिछले वर्षों में रेलवे स्टेशनों को चमकाने पर जोर तो खूब दिया गया। इसमें निजी कंपनियों को भी शरीक किया गया। रेल भाड़े में बढ़ोतरी की गई, वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली छूट समाप्त कर दी गई। इस तरह रेलवे का मुनाफा बढ़ाने का हर प्रयास किया गया। मगर रेल सुरक्षा के मामले में स्थिति दयनीय बनी हुई है। अब भी रेलों में महिलाओं के साथ दुष्कर्म, चोरी और लूट जैसी घटनाएं रुक नहीं पाई हैं। रेलों के समय पर न पहुंचने को तो जैसे लोगों ने सहज स्वीकार कर लिया है।
मगर मुसाफिरों को जब यही भरोसा न हो कि वे जिस गाड़ी में बैठे हैं, वह सही-सलामत अपने गंतव्य तक पहुंच जाएगी, तो रेलवे के लिए इससे बड़ी विफलता क्या हो सकती है।
इस सबकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। विचित्र है कि तेज रफ्तार ट्रेनें चला कर दुनिया से होड़ करने का दम भरा जाता है, मगर मौजूदा गाड़ियों की सुरक्षा का कोई व्यावहारिक उपाय तलाशने की कोशिश नहीं होती।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."