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November 22, 2024 3:37 pm

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माँ के गुनाहों की जेल में भागीदारी कर रहा चार साल का मासूम : कानूनी प्रावधान और सामाजिक प्रभाव

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इरफान अली लारी की रिपोर्ट

देवरिया। चार साल का मासूम बच्चा अब अपनी मां के साथ जिला कारागार में रहने को मजबूर हो गया है। जेल में रहते हुए उसे अपनी मां की ममता तो मिलेगी, लेकिन उसे अपने पिता, दादा-दादी, बुआ और अन्य परिवारजनों के प्यार से वंचित रहना पड़ेगा। 

मां पर चोरी का आरोप है, और इस वजह से बच्चे को भी अपनी मां के साथ जेल में रहना पड़ेगा। 

कानून के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के बच्चे को उसकी मां के साथ ही रहना होता है, चाहे मां जेल में ही क्यों न हो।

तरकुलवा पुलिस ने कुशीनगर जिले की सलीम परवीन को डेढ़ किलो चांदी चोरी करने के आरोप में जेल भेजा है। 

जब परिवार के लोगों ने इस मुश्किल घड़ी में महिला का साथ देने से इंकार कर दिया, तो पुलिस के पास बच्चे को भी मां के साथ जेल में रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा।

कुशीनगर जिले के लाला गुरवलिया गांव की निवासी सलीम परवीन ने 29 जुलाई को पथरदेवा कस्बे के कॉलेज मोड़ पर स्थित हरिशंकर वर्मा की अमन ज्वेलर्स की दुकान से डेढ़ किलो चांदी चोरी की थी। सलीम परवीन की यह हरकत दुकान में लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई थी। 13 अगस्त को, वह महिला बसंतपुर धूसी गांव में बिंदा देवी के घर में चोरी करते हुए रंगे हाथ पकड़ी गई थी।

इस घटना के बाद सलीम परवीन को गिरफ्तार कर लिया गया और उसे जेल भेज दिया गया। चूंकि बच्चा अपनी मां से अलग नहीं हो सकता, इसलिए उसे भी जेल में मां के साथ रहना पड़ेगा, जहां उसका बचपन जेल की सलाखों के पीछे गुजरने वाला है।

इस घटना ने एक गंभीर सामाजिक मुद्दा उजागर किया है—छोटे बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों का संरक्षण, विशेषकर जब उनकी मां जेल में हो। इस घटना के पीछे का सामाजिक और कानूनी परिदृश्य निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

कानूनी प्रावधान और परिवार के अधिकार

भारतीय कानून के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के बच्चों को उनकी मां के साथ ही रखा जाता है, यदि मां जेल में है। यह प्रावधान बच्चे की मानसिक और शारीरिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया गया है, ताकि उसे मां की ममता और देखभाल मिल सके। हालांकि, यह स्थिति बच्चे के सामान्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, क्योंकि वह अपने परिवार के अन्य सदस्यों की देखभाल और प्यार से वंचित रह जाता है।

सामाजिक दृष्टिकोण

सलीम परवीन का मामला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। समाज में इस तरह की घटनाओं के प्रति संवेदनशीलता की कमी होती है। जेल में एक छोटे बच्चे का रहना, उसकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर गंभीर असर डाल सकता है। समाज की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे बच्चों के अधिकारों की रक्षा करें और उनके भविष्य को सुरक्षित बनाने के उपाय करें।

पारिवारिक विघटन

जब परिवार के सदस्य किसी आपराधिक मामले में फंस जाते हैं, तो परिवार का पूरा ढांचा प्रभावित होता है। सलीम परवीन के मामले में, उसके परिवार ने उसे और उसके बच्चे को छोड़ दिया, जिससे बच्चे को न केवल मां के साथ जेल में रहना पड़ा बल्कि परिवार के अन्य सदस्य भी उसकी जिंदगी से हटा दिए गए।

समाज के प्रति जिम्मेदारी

ऐसे मामलों में समाज और सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। जेलों में बच्चों के लिए विशेष प्रावधान और देखभाल की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही, समाज में अपराध और कानूनी मुद्दों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और बच्चों की भलाई के लिए समुचित उपाय करना आवश्यक है।

मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य

जेल के कठोर माहौल में बच्चे की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा एक बड़ा चुनौती है। जेल अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे को उचित देखभाल, शिक्षा, और सामाजिक समर्थन मिले, ताकि उसका विकास सामान्य तरीके से हो सके।

इस पूरे परिदृश्य को समझते हुए, यह आवश्यक है कि कानूनी और सामाजिक ढांचे को सुधारने के प्रयास किए जाएं ताकि बच्चों को ऐसी स्थितियों से बचाया जा सके और उनकी पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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