चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले का गुदड़ी बाजार इलाका अपनी कैंचियों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन 22 मई 2008 की रात इस इलाके ने एक ऐसी घटना देखी जिसने सबको चौंका दिया।
उस रात, एक घर से चीखें और गोलियों की आवाजें सुनाई दीं, लेकिन आसपास के लोग इतने डर में थे कि उन्होंने पुलिस को सूचना देने की भी हिम्मत नहीं की।
जब सुबह हुई, तो उस घर से खून की धार बाहर तक बहती हुई नजर आई। यह घर उस समय के प्रमुख मीट कारोबारी इजलाल कुरैशी का था, जिन्होंने अपने घर में तीन लोगों की बेरहमी से हत्या की थी।
मृतक सुनील ढाका, पुनीत गिरी, और सुधीर उज्जवल थे, जिन्हें इजलाल ने बातचीत के लिए बुलाया और फिर उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
इस हत्याकांड का मुख्य कारण इजलाल की गर्लफ्रेंड शीबा थी, जो अक्सर इजलाल को इन तीन लोगों के खिलाफ उकसाती थी। 5 अगस्त 2024 को मेरठ कोर्ट ने इस मामले में इजलाल और शीबा सहित 10 लोगों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। लेकिन दोषियों को सजा दिलाना आसान नहीं था।
अगर इस केस की जांच उस समय के इंस्पेक्टर दुष्यंत कुमार बालियान (डीके बालियान) के हाथ में नहीं होती, तो शायद फैसला कुछ और होता।
इजलाल कुरैशी उस समय वेस्ट यूपी के प्रमुख मीट कारोबारियों में शामिल था और उसके चचेरे भाई हाजी शाहिद अखलाक मेरठ सीट से लोकसभा सांसद थे।
इजलाल के पास राजनीतिक रसूख, बेहिसाब दौलत और बेशुमार ताकत थी, इसलिए किसी की हिम्मत नहीं थी कि वह इसके खिलाफ आवाज उठाए। तीनों शव बागपत में मिले थे, इसलिए मामला वहां दर्ज हुआ, लेकिन बाद में इसे मेरठ की कोतवाली में ट्रांसफर कर दिया गया। केस की गंभीरता को देखते हुए उस समय के एसएसपी आलोक सिंह ने इस केस की जांच सदर बाजार थाने के इंस्पेक्टर डीके बालियान को सौंप दी।
डीके बालियान की पोस्टिंग उस समय बुलंदशहर में थी, लेकिन उन्हें मेरठ में कोतवाली में अटैच कर दिया गया था। डीके बालियान की छवि एक तेज-तर्रार अधिकारी की थी, और उन्होंने सोती गंज इलाके में बढ़ती वाहन चोरी की घटनाओं पर लगाम लगाने का काम किया था।
25 मई को जैसे ही उन्होंने गुदड़ी बाजार इलाके में हत्याकांड की जांच संभाली, उन्हें केस को कमजोर करने के लिए पैसे के ऑफर मिलने लगे। लेकिन बालियान ने इन ऑफरों को ठुकरा दिया और साफ-साफ कह दिया कि वह दोषियों को सजा दिलाकर रहेंगे।
वकीलों के लौट जाने के बाद, डीके बालियान के खिलाफ ट्रांसफर की साजिशें शुरू हो गईं। उनके खिलाफ लखनऊ में रिपोर्ट भेजी गई कि उनकी तैनाती नियमों के खिलाफ है, और कुछ दिनों बाद उनका ट्रांसफर कानपुर कर दिया गया।
हालांकि, मेरठ में इस साजिश की जानकारी फैल गई और लोग बालियान के समर्थन में सड़कों पर उतर आए। तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह ने मामले का संज्ञान लिया और चार दिन के भीतर डीके बालियान का ट्रांसफर रद्द कर दिया। उन्होंने फिर से मेरठ में केस की जांच संभाली।
बालियान ने जांच पूरी कर इजलाल कुरैशी और शीबा सिरोही सहित 14 लोगों के खिलाफ चार्जशीट फाइल की।
आरोपियों ने मुकदमे को प्रभावित करने के लिए 30-35 वकीलों की फौज उतारी, लेकिन कोर्ट ने डीके बालियान की जांच और सबूतों को मान्यता देते हुए दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।
डीके बालियान अब सीओ के पद से रिटायर हो चुके हैं, लेकिन उन्हें संतोष है कि अंततः न्याय मिला और दोषियों को उनके गुनाहों की सजा दी गई।
Author: samachar
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