Explore

Search
Close this search box.

Search

November 22, 2024 11:17 pm

लेटेस्ट न्यूज़

लगातार रेल हादसों की गवाह बनी ये पटरियां… . वादे जो सरकार भूल गई

21 पाठकों ने अब तक पढा

मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट

रेल हादसों पर विराम लगाने के दावे तो खूब बढ़-चढ़ कर किए जाते हैं, पर हकीकत यह है कि इनमें लगातार बढ़ोतरी ही देखी जा रही है। पिछले एक वर्ष में कई गंभीर रेल दुर्घटनाएं मामूली सावधानियां न बरती जा सकने की वजह से हो गईं। अभी मुंबई से हावड़ा जा रही गाड़ी के अठारह डिब्बे झारखंड के चक्रधरपुर में इसलिए पटरी से उतर गए कि चालक को अचानक ब्रेक लगाना पड़ा। वह गाड़ी जिस रास्ते से आ रही थी, वहां पहले ही एक मालगाड़ी पटरी से उतर चुकी थी। अब रेल मकमा इस बात की जांच कर रहा है कि मुंबई-हावड़ा मेल के चालक को मालगाड़ी पलटने के बारे में सूचना दी गई थी या नहीं।

गनीमत है कि इस हादसे में बहुत बड़ा नुकसान नहीं हुआ। दो लोगों की मौत और आठ लोगों के घायल होने की सूचना है। अठारह बोगियों के पटरी से उतरने का मतलब है कि यह हादसा और बड़ा हो सकता था। पिछले वर्ष ओड़ीशा के बालासोर में तीन गाड़ियों के टकराने से हुए हादसे के वक्त से गाड़ियों के चालन में सुरक्षा उपायों को चुस्त बनाने पर जोर दिया जा रहा था। मगर उसके बाद भी एक के बाद एक कई बड़े हादसे हो गए। पिछले एक महीने में ही तीन बड़े हादसे हो गए।

रेल हादसों की वजहें किसी से छिपी नहीं हैं। हर बार यह संकल्प दोहराया जाता है कि जल्दी ही हर गाड़ी में टक्कररोधी उपकरण लगा लिए जाएंगे, जिससे हादसों पर रोक लग सकेगी। मगर लगातार हो रहे हादसों की प्रकृति को देखते हुए यह दावा नहीं किया जा सकता कि अकेले टक्कररोधी उपकरण से इस समस्या पर पूरी तरह अंकुश लग पाएगा।

रेलवे का दावा है कि अनेक मार्गों पर कंप्यूटरीकृत संचालन प्रणाली लगा दी गई है। पटरियां बदलने और संकेतक आदि के लिए आधुनिक उपकरण लगा दिए गए हैं। मगर देखा गया है कि इनके ठीक से काम न करने या इनका संचालन ठीक से न किए जाने के कारण ही अक्सर हादसे हो जाते हैं। आखिरकार आधुनिक उपकरणों का संचालन भी मानवीय रूप से किया जाता है। एक तरफ तो हम तेज रफ्तार और सुविधाजनक गाड़ियां चला कर हवाई सेवाओं पर बढ़ते बोझ को कम करने का दावा करते हैं, दूसरी तरफ पटरियों और संचालन प्रणाली पर अपेक्षित ध्यान नहीं दे पाते।

यह भी छिपी बात नहीं है कि रेल सेवाओं में बेहतरी के दावों के बीच इस पर अपेक्षित खर्च नहीं हो पाता। रेल की ज्यादातर पटरियां पुरानी हो चुकी हैं, उन पर गाड़ियों का बोझ लगातार बढ़ते जाने की वजह से वे खतरनाक साबित होती हैं। उन्हीं पटरियों पर तेज रफ्तार गाड़ियां भी चलाने की कोशिश की जा रही है। विचित्र यह है कि मौजूदा रेल मंत्री के कार्यकाल में लगातार हादसों के बावजूद उनकी सेहत पर मानो कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

देश के करोड़ों लोग आज भी रेलों पर ही निर्भर हैं। माल ढुलाई का बड़ा हिस्सा रेलों से होता है। ऐसे में रेल मार्गों को सुरक्षित और भरोसेमंद बनाने की अपेक्षा स्वाभाविक है। मगर निजी कंपनियों को जिम्मेदारी सौंप कर सरकार स्टेशनों के सौंदर्यीकरण पर ही जोर देती अधिक नजर आती है।

पटरियों और रेल संचालन के आधुनिकीकरण को लेकर उतनी गंभीर नहीं है। इसी की वजह से न केवल रेलवे को हर वर्ष बड़ी संपत्ति का नुकसाना उठाना पड़ता, बल्कि बहुत सारे परिवारों को जीवन भर की पीड़ा झेलनी पड़ जाती है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़