जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
कहा जाता है कि जब-जब लोगों का मन धार्मिक आस्था से हट जाता है, बुराइयों का साम्राज्य स्थापित हो जाता है, तो समय-समय पर हर युग और काल में मानव समाज के सही मार्गदर्शन के लिये किसी न किसी रूप में ईश्वर का अवश्य अवतार होता है।
इसी प्रकार सन्त गोविन्द साहब का भी अवतार मानवता को सत्य का सन्देश देने के लिए हुआ था। सन्त ने मनुष्यों को अज्ञानता के मार्ग से हटाकर ज्ञान के मार्ग का दर्शन कराया।
इन्हीं महापुरुषों में से एक शांति, सौहार्द एवं सांप्रदायिक एकता के प्रतीक सिद्ध महंत महात्मा गोविन्द साहब जी महराज थे। उनकी समाधि स्थल पर संगमरमर के टुकड़ों से तैयार चांदी की भांति चमकते विशाल मंदिर से सटे भव्य सरोवर के स्वच्छ जल में इठलाती रंग-बिरंगी मछलियां आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं।
श्री गोविंद साहब प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करके भागीरथी के तट पर 6 वर्ष तक बनारस मे विशेष विद्या प्राप्ति की। वर्षों तक संस्कृत शिक्षा प्राप्त कर लेने के बाद यह अपने पिता के घर आ गए और अपनी योग्यता के अनुसार भगवत कथा समय-समय पर कहने लगे।
जलालपुर क्षेत्र में भागवत कथाकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए। उनके मुख्य श्रोता में श्री पलटू साहब उनकी भागवत कथा उपस्थिति अनिवार्य रूप से होती थी। पलटू साहब इनकी भागवत कथा किसी भी परिस्थिति में छोड़ना नहीं चाहते थे। कथा कहते सुनते एक लघु काल खंड भी व्यतीत हो गया।
कथा सुनने का कोई ठोस लाभ ना देख कर पलटू साहब ने कथा सुनना बंद कर दिया। जब अपनी कथा में श्री गोविंद साहब पलटू साहब की अनुपस्थिति देखकर चिंतित होने लगे। उनको मन ही मन में लगा कि श्री पलटू साहब कथा सुनने क्यों नहीं आ रहे।
कई बार बुलाने के बाद पलटू साहब पुनः कथा में शामिल हुए और उनकी कथा में अरूचि का सीधे कारण पूछा तो उन्होंने उत्तर दिया कि इस रचित कथा में कुछ होने वाला नहीं है। क्योंकि जिसके लिए कथा है उसके लिए भी प्रयत्न होना चाहिए। ईश्वर खोज के लिए अब हम लोगों को उपाय करना चाहिए।
श्री गोविंद साहब के मन इस पर गहरा असर पड़ा और उन्होंने कहा कि अच्छा हम दोनों ही इसके लिए एक साथ प्रयत्न करेंगे। जिसको पहले सफलता मिलेगी वह गुरु होगा।
इस पर श्री पलटू साहब ने कहा कि वैसे तो आप मेरे पुरोहित और गुरु दोनों हैं और मैं आपका यजमान और शिष्य हूँ , आपको पहले इसमें सफलता मिल गई तो कोई बड़ा परिवर्तन मेरे और आपके सम्बन्ध में नहीं आएगा।
दोनों ही खोज के लिए अपने-अपने घर से एक साथ निकल पड़े श्री पलटू साहब अयोध्या के लिए प्रस्थान किए जबकि गोविंद साहब में श्री जगन्नाथ पुरी के लिए।
गोविंद साहब उत्तर पूर्व की दिशा की तरफ बढ़ने लगे पदयात्रा करते हुए। शंकर की नगरी बनारस पहुंचे बनारस में एक स्थान पर श्री गुलाब साहब एवं भीखा साहब की भजन भक्ति तथा संतों के बीच गाया जा रहा था।
उस समय श्री गुलाब साहब और श्री भीखा साहब जी की साधना और प्रभाव का प्रसार प्रदेश तक हो गया था। यह दोनों गुरु शिष्य सिद्ध संतों में प्रमुख श्री संत माने जाते थे।
गोविंद साहब ने इन दोनों संतों का पता जानने की चेष्टा की। लोगों ने दोनों संतों की साधना स्थली का नाम भुड़कुड़ा बताया । गोविंद साहब भुड़कुड़ा पहुंच गये। गोविंद साहब ने गुलाब साहब से शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा जाहिर की तो श्री गुलाब साहब ने क्षत्रीय होने के कारण ब्राह्मण कुल को शिक्षा देने के लिए मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि ब्राह्मण कुल में आप पैदा हैं मैं क्षत्रीय कुल का हूं मैं आपको शिक्षा नहीं दे सकता हूं। सद्गुरु श्री गुलाब साहब पान खाते थे उन्होने पान खाकर जमीन पर थूक दिया।
गोविंद साहब ने अपना जातीय गौरव का परित्याग करके प्रसाद के रूप में उसको ग्रहण कर लिया। इसके बावजूद भी श्री गुलाब साहब ने उन शिक्षा नहीं दी और उन्होंने उनसे कहा कि तुम यह कार्य गलत किया तुम्हें यह नहीं करना चाहिए था तुम घर से निकले थे जगन्नाथपुरी के लिए निकले हो पहले तुम वहां जाओ वहां शिक्षा दीक्षा प्राप्त करो वहां से लौटने के बाद फिर इच्छा की बात करना जगन्नाथ पुरी की यात्रा करने के बाद दोबारा लौटने पर भुडकुडा पर गुलाब साहब की गद्दी पर भीखा साहब विराजमान थे।
आजमगढ़ के सीमावर्ती गांव अहिरौली में स्थित सिद्ध संत महात्मा गोविन्द साहब का धाम लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां संत के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। गोविंद दशमी के अवसर पर यहां भव्य मेला आयोजित होता है, जिसका शुभारंभ 12 दिसंबर को होगा।
एक महीने तक चलने वाले इस मेले की तैयारियां जोरों पर हैं। दुकानों की सजावट शुरू हो चुकी है और प्रशासन भी व्यवस्था को सुचारू बनाने में जुटा हुआ है।
गोविन्द साहब की समाधि पर श्रद्धालु खिचड़ी और चादर चढ़ाकर सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। मान्यता है कि जब भी लोगों का धार्मिक विश्वास कमजोर पड़ता है और बुराइयों का प्रकोप बढ़ता है, तब समय-समय पर ईश्वर किसी न किसी रूप में अवतार लेकर मानवता को सही मार्ग पर ले आता है।
महात्मा गोविन्द साहब का अवतार भी सत्य और ज्ञान का सन्देश देने के लिए हुआ था। उन्होंने अज्ञानता के मार्ग से हटाकर ज्ञान की ओर मार्गदर्शन किया।
महात्मा गोविन्द साहब शांति, सौहार्द और सांप्रदायिक एकता के प्रतीक थे। उनकी समाधि स्थल पर एक विशाल मंदिर और भव्य सरोवर है, जहां के स्वच्छ जल में रंग-बिरंगी मछलियां आकर्षण का केंद्र हैं।
मान्यता है कि गोविन्द साहब के ध्यान मात्र से बलिया के व्यापारी की माल से लदी नाव समुद्र में डूबने से बच गई थी।
गोविन्द साहब का जन्म 1725 ई. में हुआ था। उनका बचपन का नाम गोविन्दधर द्विवेदी था और वे संस्कृत के महान पंडित बने।
उन्होंने जाति-पाति और छुआछूत से परे होकर समाज में एकता और प्रेम का संदेश दिया। आज भी श्रद्धालु समाधि पर चादर, खिचड़ी, गन्ना चढ़ाते हैं और गोविन्द सरोवर में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं।
यहां के मेले में चादर, खिचड़ी, गन्ना और स्नान एकता और समरसता के प्रतीक हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."