Explore

Search
Close this search box.

Search

November 22, 2024 6:37 am

लेटेस्ट न्यूज़

पुलिस के शीर्ष अधिकारियों के साथ एक बैठक ही तो की… इतने सवाल क्यों उठने लगे? 

16 पाठकों ने अब तक पढा

मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट

दिल्ली में 28 जुलाई को बीजेपी की मुख्यमंत्री परिषद की बैठक के दौरान एक वीडियो वायरल हुआ, जिसने पार्टी के अंदर की राजनीतिक स्थिति को लेकर चर्चाओं को जन्म दिया। 

वीडियो में गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के स्वागत के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अभिवादन की स्थिति को देखा जा सकता है। 

जब पीएम नरेंद्र मोदी ग्रुप फोटो के लिए आए, तो सभी मुख्यमंत्री हाथ जोड़कर नमस्कार करते दिखाई दिए, लेकिन योगी आदित्यनाथ ऐसा करते हुए नजर नहीं आए। इससे यह संदेश मिला कि बीजेपी में कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

इस वायरल वीडियो को लेकर कई लोगों ने यह भी कहा कि संभवतः योगी ने नमस्कार किया था, लेकिन वह वीडियो में कैद नहीं हो सका। यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी वही वीडियो साझा किया, जिससे पार्टी के अंदर की दूरी और अंतर्द्वंद्व की चर्चाएं तेज हो गईं। 

केशव प्रसाद मौर्य की पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक

इसी बीच, केशव प्रसाद मौर्य ने यूपी के पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की और बैठक की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं। मौर्य ने बताया कि इस बैठक में उन्होंने कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार और साइबर क्राइम के मुद्दों पर चर्चा की और सुधारात्मक कदम उठाने के निर्देश दिए। 

केशव मौर्य के पास वर्तमान में ग्रामीण विकास, फूड प्रोसेसिंग, मनोरंजन कर और लोक उपक्रम जैसे विभाग हैं। पहले कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ के समय मौर्य को पीडब्ल्यूडी विभाग दिया गया था, लेकिन 2022 के चुनाव में मिली जीत के बाद उन्हें बड़े विभाग नहीं सौंपे गए। 

यह भी एक कारण माना जा रहा है कि केशव मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच खटास हो सकती है।

मौर्य की हाल की बैठक इस ओर इशारा करती है कि वह प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, जो अक्सर योगी आदित्यनाथ द्वारा संभाले गए गृह विभाग के अंतर्गत आता है। 

यह स्थिति राजनीतिक समीक्षकों के लिए एक नया मुद्दा बन गई है, जो बीजेपी के अंदर की राजनीतिक समीकरणों को समझने में मदद कर सकती है।

केशव प्रसाद मौर्य की बैठक पर सवाल और राजनीतिक संकेत

केशव प्रसाद मौर्य की हाल की पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक को राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। 

सोशल मीडिया पर इस बैठक को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। पत्रकार उमर राशिद ने इस बैठक को महत्वपूर्ण बताया है, क्योंकि पुलिस का विभाग गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है, जिसे योगी आदित्यनाथ संभालते हैं। 

समाजवादी पार्टी के नेता आईपी सिंह ने भी सवाल उठाते हुए कहा कि केशव मौर्य को राज्य के शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक करने का अधिकार नहीं है, और यह भी आरोप लगाया कि यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की स्थिति कमजोर हो गई है और बीजेपी ने अराजकता फैलाई है।

हालांकि, केशव प्रसाद मौर्य के इतिहास पर नजर डालें तो वह पहले भी यूपी पुलिस अधिकारियों के साथ बैठकें कर चुके हैं। 

31 जनवरी 2024, 7 और 11 अगस्त 2023 को भी उन्होंने पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की तस्वीरें साझा की थीं। इन बैठकों में उन्होंने कानून-व्यवस्था के सुधार की बात की थी और सभी व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के निर्देश दिए थे।

केशव प्रसाद मौर्य की टिप्पणियां और पार्टी में हलचल

29 जुलाई को किए गए ट्वीट में केशव ने बढ़ते हुए भ्रष्टाचार की बात की, जो योगी आदित्यनाथ की आलोचना करने वाले कई नेताओं और विधायकों का भी विषय रहा है। 

आलोचक विधायकों का कहना है कि यूपी में अफसरशाही बढ़ गई है, नेताओं की बात नहीं सुनी जाती और अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

केशव प्रसाद मौर्य ने 29 जुलाई को एक कार्यक्रम में मीडिया और सोशल मीडिया की रिपोर्टिंग पर टिप्पणी की। 

उन्होंने कहा कि मीडिया और सोशल मीडिया में जो कुछ भी दिखाया जाता है, उससे प्रभावित नहीं होना चाहिए। मौर्य ने यह भी कहा कि चुनाव पार्टी लड़ती है और पार्टी ही जीतती है, न कि सरकार के बल पर। 

2014 और 2017 के चुनावों का हवाला देते हुए उन्होंने पार्टी की ताकत और आत्मविश्वास पर जोर दिया और 2024 में की गई चूक को भूलकर 2027 में ऐतिहासिक विजय की ओर ध्यान देने की बात कही।

मौर्य ने 14 जुलाई को बीजेपी की एक बैठक में भी संगठन को सरकार से बड़ा बताया था, जिसे योगी आदित्यनाथ ने अति आत्मविश्वास की वजह से हार का कारण माना था। 

अब केशव ने भी अति आत्मविश्वास की बात को दोहराया और कहा कि चुनाव पार्टी लड़ती है, और इस पर ध्यान देना जरूरी है। 

इन सबके बीच, मौर्य और योगी आदित्यनाथ एक कार्यक्रम में साथ नहीं दिखाई दिए, जो उनके बीच संभावित दूरी को और स्पष्ट करता है।

यूपी बीजेपी में हलचल के कारण

यूपी बीजेपी में हाल के दिनों में हलचल बढ़ी है, खासकर लोकसभा चुनाव 2024 में पार्टी के कमजोर प्रदर्शन के बाद। 2019 में उत्तर प्रदेश की 80 में से 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2024 में केवल 33 सीटों पर सिमट गई। 

इस हार के कारण बीजेपी को अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं हो पाया और उसे एनडीए के सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ा। इस स्थिति ने बीजेपी के अंदर गहरी बहस शुरू कर दी है कि इस हार के लिए कौन ज़िम्मेदार है।

एक पक्ष यह मानता है कि योगी आदित्यनाथ और उनके प्रशासन ने चुनावी मोर्चे पर ठीक से सहयोग नहीं किया, जिससे हार की स्थिति उत्पन्न हुई।

वहीं, दूसरे पक्ष का कहना है कि टिकट वितरण में योगी आदित्यनाथ की कोई भूमिका नहीं थी, इसलिए हार का जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है।

इन अटकलों के बीच, 14 जुलाई को केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के अलग-अलग बयानों ने स्थिति को और जटिल बना दिया। 

यूपी में जल्द ही 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं, जो पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती हैं। केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के ओबीसी चेहरे के रूप में जाने जाते हैं, जबकि योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता न केवल यूपी में बल्कि अन्य राज्यों में भी है। इस परिप्रेक्ष्य में, जानकार यूपी में बीजेपी के लिए मुश्किल हालात की ओर इशारा कर रहे हैं।

केशव प्रसाद मौर्य की राजनीतिक भूमिका

शशिकांत पांडे, जो बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के विभाग प्रमुख रहे हैं, ने द प्रिंट से कहा कि ताजा घटनाक्रम दर्शाते हैं कि अगले छह महीनों में यूपी बीजेपी में बड़े फेरबदल देखने को मिल सकते हैं। 

मौर्य मौकों का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, और पार्टी को राज्य में तेजी से कदम उठाने होंगे क्योंकि 2027 में चुनाव होने हैं और चुनाव के करीब मुख्यमंत्री बदलने जैसे कदम नहीं उठाए जा सकते।

केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण क्यों हैं? मौर्य शुरुआती दिनों में आरएसएस और वीएचपी से जुड़े रहे हैं और वे आरएसएस-बीजेपी का ओबीसी चेहरा हैं। 

बीजेपी की रणनीति में ग़ैर-यादव ओबीसी समुदाय को साधना शामिल है, जिसमें मौर्य की भूमिका प्रमुख रही है। मौर्य का दावा है कि उन्होंने बचपन में चाय और अख़बार बेचा था, और उनकी ओबीसी पहचान को बीजेपी प्रमुखता से उजागर करती है।

केशव मौर्य ने गोरक्षा अभियान में भी सक्रिय भूमिका निभाई और राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल रहे। वे बीजेपी के क्षेत्रीय समन्वयक, पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ और किसान मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे हैं। 

उन्होंने यूपी में चार बार विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 2012 में जीत हासिल की। 2014 में फूलपुर लोकसभा सीट से ऐतिहासिक जीत हासिल की, जिससे बीजेपी की पहली बार जीत दर्ज हुई। 

2017 में उन्हें यूपी में बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया, जिसका उद्देश्य ग़ैर-यादव ओबीसी वोटरों को आकर्षित करना था। 

मौर्य की जाति, जैसे मौर्य, मोराओ, कुशवाहा, शाक्य, कोइरी, काछी और सैनी, यूपी की कुल आबादी में 8.5 प्रतिशत शामिल है, जो उन्हें क्षेत्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण बनाती है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़