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December 12, 2024 10:30 pm

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मोदी और अमित शाह की ‘मजबूरी’ हैं योगी या ‘मजबूती’? तथ्यात्मक विश्लेषण

36 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

साल 2021 के अंत में यूपी विधानसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत हो चुकी थी, और अटकलें थीं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच अनबन चल रही है। इसी दौरान 21 नवंबर 2021 को दो तस्वीरें सामने आईं, जिसमें एक में मोदी योगी से कुछ कहते दिख रहे थे और दूसरी में मोदी योगी के कंधे पर हाथ रखे हुए थे। योगी आदित्यनाथ के सोशल मीडिया अकाउंट्स से इन तस्वीरों को साझा करते हुए लिखा गया- “हम निकल पड़े हैं प्रण करके, अपना तन-मन अर्पण करके, जिद है एक सूर्य उगाना है, अंबर से ऊंचा जाना है…”

अगले ढाई साल में योगी आदित्यनाथ फिर से यूपी के मुख्यमंत्री बन गए और नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री। लेकिन ‘अंबर से ऊंचा जाने’ और ‘नया सूर्य उगाने’ की बात महज एक कवि की कल्पना बनकर रह गई। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 312 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2022 में 255 सीटों पर सिमट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2024 में 33 सीटों तक सीमित रह गई।

बीजेपी के इस सियासी ढलान के बीच योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के ताज़ा बयानों ने हालात को और बिगाड़ा है। सवाल उठ रहा है कि 2024 चुनाव के बाद क्या नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी के सामने योगी आदित्यनाथ मजबूती बन गए हैं या मजबूरी? योगी आदित्यनाथ के सामने क्या चुनौतियां हैं या वह खुद किसी के लिए चुनौती हैं?

योगी आदित्यनाथ : विरोध से बीजेपी का स्टार प्रचारक बनने तक

नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद, संभवतः योगी आदित्यनाथ ही हैं, जिन्होंने बीते चुनावों में कई राज्यों में जाकर प्रचार किया है। बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में योगी आदित्यनाथ का नाम हमेशा शुरुआती स्थान पर होता है। मगर बीजेपी में योगी की यह जगह बगावत से शुरू हुई थी।

कुछ साल पहले, काला चश्मा और टाइट कपड़े पहनने वाले अजय सिंह बिष्ट यानी योगी आदित्यनाथ के कॉलेज के दिनों में, उनके जीजा चाहते थे कि वह एक वामपंथी पार्टी की स्टूडेंट विंग से जुड़ें, लेकिन अजय ने एबीवीपी का चयन किया। जब एबीवीपी ने अजय को उम्मीदवार नहीं बनाया, तो उन्होंने विरोध के रूप में निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। यह उनकी चुनावी राजनीति की पहली और इकलौती हार थी।

26 साल की उम्र में पहली बार सांसद बनने से लेकर दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बनने तक, योगी आदित्यनाथ ने खुद कभी चुनाव नहीं हारा है। पार्टी के भीतर उनकी बात ना सुने जाने का असर चुनावी नतीजों पर भी पड़ा है। जानकारों के मुताबिक, योगी का बीजेपी में रहते हुए पार्टी नेताओं से टकराव रहा है। वह अपने समर्थकों के लिए टिकट मांगते थे और कई बार बागी उम्मीदवारों का समर्थन भी किया। लेकिन समय के साथ उनका रुख नरम हुआ।

वर्तमान टकराव

योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के बड़े नेताओं के बीच का टकराव 2024 लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद फिर से उभर आया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मई 2024 में कहा था कि अगर बीजेपी यह चुनाव जीत गई तो दो महीने के अंदर यूपी का मुख्यमंत्री बदल देंगे और योगी आदित्यनाथ की राजनीति खत्म कर देंगे। हालांकि, जानकारों का कहना है कि यूपी उपचुनाव तक ऐसा होने की कोई संभावना नहीं है और बीजेपी इतना बड़ा खतरा नहीं उठाएगी।

योगी से नाराज़ यूपी के लोग

बीजेपी की सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) की नेता और एनडीए सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल ने भी योगी आदित्यनाथ से अपनी शिकायतें सार्वजनिक की हैं। उन्होंने कहा था कि सरकार अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े लोगों को रोजगार देने में भेदभाव कर रही है। 

योगी आदित्यनाथ की राजनीति में बुलडोजर की खास अहमियत है, और चुनाव प्रचार के दौरान उनकी रैलियों में बुलडोजर भी खड़े किए गए थे। इसी पर निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद ने भी 16 जुलाई को कहा था कि अगर बुलडोजर बेघर और गरीब लोगों के खिलाफ इस्तेमाल होगा, तो ये लोग एकजुट होकर हमें चुनाव में हरा देंगे। 

जानकारों का कहना है कि दिल्ली से इशारे के बिना ये सब संभव नहीं है और ये योगी के खिलाफ जमीन तैयार की जा रही है। 

योगी आदित्यनाथ की चुनौती केवल विपक्ष से नहीं है, बल्कि उनके अपने विधायक, नेता और सहयोगी भी उनके खिलाफ नज़र आ रहे हैं। इन सबके बीच, योगी आदित्यनाथ को अपनी पार्टी के भीतर और बाहर दोनों से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

योगी के विधायकों और नेताओं का ‘दर्द’

योगी सरकार में मंत्री-नेता और अधिकारियों के बीच के तनाव को समझने के लिए एक घटना काफी है। एक मंत्री ने अधिकारियों के साथ बैठक की, जहां एक शहर के मेयर ने शिकायत की कि ऑनलाइन जुड़े अधिकारियों ने अपना कैमरा तक नहीं खोला है और कोई अनुशासन नहीं है। इस पर मंत्री ने कहा कि आप अपना काम बताइए, काम हो जाएगा, अधिकारियों को छोड़ दीजिए।

यह घटना अकेली नहीं है। लोकसभा चुनावी नतीजे आने के बाद कई खबरें सामने आईं, जहां बीजेपी नेताओं ने कहा कि अधिकारियों की चल रही है और पार्टी कार्यकर्ताओं को परेशान किया जा रहा है। बीबीसी ने इसी बात को समझने के लिए योगी सरकार के दो विधायकों से बात की।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक बीजेपी विधायक ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि प्रदेश बीजेपी में आपसी मतभेद पिछली लोकसभा चुनावों के टिकट बंटवारे के समय ही सामने आ गए थे जब योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय नेतृत्व के बीच उम्मीदवारों पर एकमत होने पर अनिश्चितता बनी रही थी।

यूपी में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच दरार आने की बात पर दो बार से पार्टी टिकट पर चुनाव जीतने वाले एक वरिष्ठ विधायक ने बताया कि पिछले तीन-चार सालों में विधायकों में असंतोष बढ़ा है क्योंकि नौकरशाही को ज्यादा तरजीह दी जा रही है। मिसाल के तौर पर अपने चुनाव क्षेत्र में भी विधायकों को अधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, तब भी आम लोगों के काम पूरे नहीं होते।

क्या योगी ने अधिकारियों को ज्यादा छूट दी है?

यूपी सरकार में एक अधिकारी ने बताया कि पहले की सरकारों में कोई विधायक, सांसद शिकायत लेकर लखनऊ पहुंच जाता था तो ट्रांसफर जल्दी हो जाते थे। मगर योगी सरकार में ऐसा नहीं है। अब अगर कोई विधायक अड़ंगा डाल रहा है तो बीडीओ को अधिकार है कि वो अपना काम करे। अगर कोई शिकायत भी हुई और मामला गंभीर नहीं हुआ तो कार्रवाई नहीं की जाएगी।

योगी आदित्यनाथ को चुनौतियां मिल रही हैं, तो वो ऐसा कर क्यों रहे हैं? यूपी प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि योगी जी को काम होते दिखने से मतलब है। अधिकारी बिजी दिखना चाहिए, चीज़ें आंकड़ों में चाहिए, काम करते हुए तस्वीरें भेजिए, वीडियो कॉलिंग करिए।

योगी और अधिकारियों के रिश्ते

कानपुर में आठ पुलिसवालों को मारने वाले विकास दुबे का एनकाउंटर हो, 2020 में हाथरस गैंगरेप-मर्डर केस में जिलाधिकारी को हटाने की मांग या फिर कुंभ मेले के दौरान हेलिकॉप्टर से फूल बरसाते यूपी पुलिस के बड़े अधिकारी। योगी और अधिकारियों के रिश्ते को आप ऐसे कई वाकयों से समझ सकते हैं।

शांतनु गुप्ता, जो ‘द मॉन्क हू ट्रांसफोर्म्ड उत्तर प्रदेश’ किताब के लेखक हैं, कहते हैं कि जो सख्त प्रशासक होता है, उसके इर्द-गिर्द ये छवि बनती है। सुधार लाना मुश्किल होता है। अफसरशाही को काम करने का मौका मिलता है और उन पर निगरानी रखी जाती है।

मोदी मॉडल को अपना रहे हैं योगी?

एस जयशंकर, आरके सिंह, हरदीप पुरी, अश्विनी वैष्णव, अर्जुन मेघवाल जैसे कई बड़े नाम हैं जो पहले वरिष्ठ अधिकारी थे और बाद में मोदी कैबिनेट में जगह बना सके। अधिकारियों पर निर्भर रहने वाला मॉडल गुजरात में बतौर सीएम नरेंद्र मोदी ने भी अपनाया था।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर डॉ पंकज कुमार ने कहा कि मोदी जब सीएम बने तो उन्होंने मंत्रियों पर निर्भर रहने से अच्छा समझा कि दो-चार अपने चुने अधिकारियों के जरिए प्रशासन चलाएं। वहीं से ये नौकरशाही केंद्रित राजनीतिक व्यवस्था चली।

अधिकारी बनाम कार्यकर्ता टकराव

डॉ पंकज कुमार कहते हैं कि ऐसी व्यवस्था में अफसर बेलगाम हो जाते हैं और कार्यकर्ता हाशिए पर चला जाता है। इन चुनावों में बीजेपी का जो कार्यकर्ता घर बैठा, उसके पीछे बड़ा कारण यही है कि अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगी और कार्यकर्ता को एक रोटी खाने को नहीं मिली।

वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी कहते हैं कि रिश्वतखोरी बढ़ी है और हर रिश्वतखोर कहता है कि योगी जी का डंडा चल रहा है, इसलिए भाव बढ़ गए हैं। यूपी बीजेपी के कई नेता कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की बातें कह चुके हैं।

मोदी और शाह फिर वो रुख क्यों नहीं अपना रहे जो अतीत में अपना चुके हैं? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है, लेकिन यह साफ है कि योगी आदित्यनाथ की रणनीति और उनके प्रशासनिक तरीके ने पार्टी में और बाहर दोनों जगह चुनौती खड़ी कर दी है।

योगी को हटाना बीजेपी के लिए आसान क्यों नहीं है?

बीते कुछ सालों में बीजेपी ने विभिन्न राज्यों में अपने बड़े चेहरों को चुनाव से पहले या चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद से हटाया है। जैसे:

मध्य प्रदेश : शिवराज सिंह चौहान

हरियाणा : मनोहर लाल खट्टर

उत्तराखंड : त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत

गुजरात : विजय रुपाणी

त्रिपुरा : बिप्लब देब

इन बदलावों के दौरान बीजेपी नेतृत्व कभी इस ख़ौफ़ में नहीं दिखी कि पार्टी टूट सकती है। यही कारण है कि बीजेपी ने उन नेताओं को भी मुख्यमंत्री बना दिया, जिनके नाम का किसी को अंदाज़ा भी नहीं था।

यूपी के मामले में क्या है ख़ास?

लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मामले में ऐसा नहीं होता। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण वजहें हैं:

योगी की मजबूरी और मज़बूती

प्रोफ़ेसर डॉ. पंकज कुमार के अनुसार, “योगी आदित्यनाथ बीजेपी की मजबूरी भी हैं और मज़बूती भी। आप योगी को हटाएंगे तो वो चुप नहीं बैठेंगे और बीजेपी का ही नुकसान करेंगे।” योगी की फायर ब्रांड हिंदू नेता की छवि ने उन्हें एक शक्तिशाली नेता बना दिया है, जिसे हटाना आसान नहीं है।

नाथ संप्रदाय का प्रभाव

योगी आदित्यनाथ नाथ संप्रदाय के महंत हैं, जो पूरे देश में फैला हुआ है। इस संप्रदाय का व्यापक प्रभाव है और बीजेपी इसकी उपयोगिता को समझती है। गोरखपुर मंदिर के महंत होने के नाते योगी का निजी आधार भी मजबूत है।

जातिगत समीकरण

योगी आदित्यनाथ ठाकुर जाति से आते हैं और उनकी लोकप्रियता उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश के ठाकुरों में बढ़ चुकी है। उत्तर भारत में ठाकुरों की संख्या ठीक-ठाक है और इसे खोने का डर बीजेपी को है।

धार्मिक प्रभाव

योगी के पास राजनीतिक प्रभाव के अलावा धार्मिक प्रभाव भी है। बीजेपी ने दूसरे राज्यों में योगी का इस्तेमाल किया है और उनकी मांग पूर्वोत्तर से भी आई थी। यह भी एक बड़ा कारण है कि योगी को हटाना आसान नहीं है।

मोदी-शाह और बीजेपी के सामने चुनौतियां

बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि योगी का कद बढ़ने की संभावनाएं हैं और पार्टी को कमजोर होने से बचाना है। मोदी और शाह की अगुआई वाली बीजेपी के सामने कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं-

पार्टी की कमज़ोरी

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने स्पष्ट किया है कि बीजेपी का कमजोर होना दिख रहा है। पार्टी के कमजोर होने पर जिसकी लोकप्रियता ज्यादा होगी, वो भी नीचे आ जाएगी। 

मोदी-शाह की चुनौती

प्रोफ़ेसर पंकज कुमार के अनुसार, “योगी आदित्यनाथ मोदी के लिए उतनी बड़ी चुनौती नहीं हैं, जितनी शाह के लिए हैं।” मोदी को अब अपना वारिस तैयार करना है, जबकि अमित शाह की अपील और जाति के मामले में कोई बढ़त नहीं है।

संघ से दूरी और करीब

बीते सालों में कई बार कहा गया कि मोदी ने संघ से दूरी बरतनी शुरू की है। प्रोफ़ेसर पंकज कुमार कहते हैं, “अमित शाह को मोदी से माइनस कर दें तो उनका अपना कोई आभामंडल नहीं है, पर योगी का है।”

लोकसभा चुनाव में बीजेपी अकेले बहुमत हासिल नहीं कर सकी है। यह नतीजा तब आया है जब बीजेपी 400 पार के नारे के साथ मैदान में उतरी थी।

विपक्ष की मजबूती

सपा का मजबूत होना, चंद्रशेखर आज़ाद का जीतना और राहुल गांधी का ग्राफ एकदम से बढ़ना बीजेपी के लिए चुनौतियां हैं। 

बंगाल और असम की स्थिति

बीजेपी के लिए बंगाल खिसक चुका है, असम खिसक रहा है, यूपी में दिक्कत है और महाराष्ट्र में लोगों का झुकाव उद्धव ठाकरे की तरफ चला गया है।

हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति

हरियाणा में कांग्रेस ही फायदा उठाएगी, जिससे बीजेपी के लिए और भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

बीजेपी की उलझन

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने कई इतिहास रचे हैं, लेकिन लगातार 10 साल की सत्ता के बाद अब पार्टी के सामने कई चुनौतियां हैं। 

योगी की चुनौती

वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी के अनुसार, “बीजेपी को अकेले बहुमत ना मिलने से मोदी कमजोर हुए हैं।” योगी की आकांक्षा पीएम बनने की है या मोदी के बाद नंबर दो बनने की है। अगर योगी को लगातार उभरने दिया तो वो आगे चुनौती बनेंगे।

संगठन और सरकार की स्थिति

बीजेपी के वरिष्ठ पत्रकारों ने बताया कि केशव प्रसाद मौर्य को हटाना अब आसान नहीं है। योगी को भी अपनी छवि के साथ तालमेल बिठाना होगा। 

योगी के लिए आगे क्या?

शांतनु गुप्ता के अनुसार, “मुझे नहीं लगता कि इतने लोकप्रिय नेता को हटाकर बीजेपी आत्मघाती कदम उठाएगी। हो सकता है कुछ फेरबदल कर दिया जाए।” 

अगस्त 2024 में यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो सकते हैं। इन चुनावों के नतीजे योगी की स्थिति पर निर्भर करेंगे।

अमित शाह की रणनीति

प्रोफेसर पंकज कुमार के अनुसार, “अमित शाह भी ताक में हैं कि कैसे योगी को हटाया जाए। उनको सही मौका नहीं मिल पा रहा।”

यूपी में सत्ता परिवर्तन

वरिष्ठ पत्रकार सुमन गुप्ता के अनुसार, “योगी आदित्यनाथ से ज्यादा बीजेपी के लिए चुनौती है कि क्या वो सीएम बदलने के लिए हिम्मत जुटा पा रही है। यूपी में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है, ऐसा कुछ नहीं होगा।”

योगी को हटाना बीजेपी के लिए आसान नहीं है क्योंकि योगी की मजबूरी, मज़बूती, जातिगत समीकरण, धार्मिक प्रभाव और विपक्ष की मजबूती जैसे कई कारण हैं। बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि योगी का कद बढ़ने की संभावनाएं हैं और पार्टी को भी कमज़ोर होने से बचाना है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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