सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट
भारतीय रिजर्व बैंक की कोशिश है कि खुदरा महंगाई को चार फीसद से नीचे लाकर स्थिर किया जा सके, मगर तमाम कोशिशों के बावजूद इस पर काबू पाना कठिन बना हुआ है।
महंगाई के रुख को देखते हुए ही रिजर्व बैंक रेपो दर में बदलाव का कोई फैसला नहीं कर पा रहा है। काफी समय से बैंक दरें स्थिर बनी हुई हैं, जबकि उद्योग समूह चाहता है कि रेपो दर घटाई जाए।
जून महीने में खुदरा महंगाई 5.08 फीसद दर्ज की गई, जो कि पिछले चार महीने का सबसे ऊंचा स्तर है। मई महीने में महंगाई का रुख कुछ नरम दिखा था, हालांकि रिजर्व बैंक को अंदाजा था कि जून और बरसात के महीनों में खुदरा महंगाई बढ़ेगी।
बारिश के मौसम में स्थिर होने का था अनुमान
रिजर्व बैंक का मानना है कि बरसात के बाद महंगाई उतार पर होगी और तब इसे स्थिर रख पाना संभव होगा। मगर यह दावा कितना सही होगा, कहना मुश्किल है, क्योंकि पहले भी रिजर्व बैंक कई बार कह चुका है कि वह महंगाई को जल्दी ही काबू में ले आएगा। इस बार भी खुदरा महंगाई में बढ़ोतरी खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण हुआ है।
खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर अंकुश नहीं
दैनिक उपभोग की खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी पर अंकुश लगाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार खाद्य महंगाई बढ़ कर 9.36 फीसद पर पहुंच गई है, जो मई महीने में 8.69 फीसद थी। जून महीने में अनाज के दामों में 8.75 फीसद, फलों में 7.15 फीसद, सब्जियों के दामों में 29.32 और दालों की कीमतों में 16.07 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई। जमीनी स्तर पर आम उपभोक्ता को इससे कहीं अधिक बढ़ी हुई कीमतें चुकानी पड़ रही हैं।
बरसात के मौसम में तो कुछ कारण समझ आते हैं कि बाढ़ और बारिश की वजह से माल ढुलाई में बाधा आने की वजह से कई जगहों पर उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती। कई इलाकों में पानी भर जाने से फलों और सब्जियों की फसल चौपट हो जाने के कारण भी उनकी कीमतों में बढ़ोतरी देखी जाती है। मगर जून के महीने में ऐसी स्थिति नहीं होती।
आमतौर पर बाजार में गेहूं और दालों की नई फसल की उपलब्धता रहती है, इसलिए भी इनकी किल्लत का तर्क नहीं रखा जा सकता। रोजी-रोजगार के मोर्चे पर संकट के दौर से गुजर रहे लोगों के सामने अनाज, फल और सब्जियों की बढ़ती कीमतों की कैसी मार पड़ रही होगी, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।
महंगाई पर काबू न पाए जा सकने के पीछे बाजार और विपणन के प्रबंधन में व्यवस्थागत कमजोरियां बड़ा कारण हैं। रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली जिन उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन अपने यहां भरपूर होता है, उन्हें सही ढंग से बाजार तक पहुंचाने की व्यावहारिक व्यवस्था अभी तक नहीं बन पाई है। उनकी जगह पर आयातित वस्तुएं बाजार में जगह बना लेती हैं, नहीं तो कोई कारण नहीं कि अक्सर किसानों को अपनी कच्ची फसलें सड़कों पर फेंकने को मजबूर होना पड़ता है।
किसान मंडियों में महाजनों की मनमानी की शिकायत करते रहते हैं, पर फसलों की खरीद का व्यवस्थित इंतजाम करने पर ध्यान नहीं दिया जाता। पर्याप्त भंडारगृह और शीतगृहों के न होने से भी फसलें बाजार पहुंचने से पहले बर्बाद हो जाती हैं।
जब तक खाद्य वस्तुओं के प्रबंधन पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक केवल बैंक दरों के जरिए महंगाई पर अंकुश लगाना कठिन बना रहेगा।
Author: samachar
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