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18 January 2025 6:30 pm

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“बेटियों के प्रति निर्ममता: समाज और व्यवस्था की नाकामी” ; बेटे की चाह में तीन दिन की नवजात बेटी से ऐसा सलूक… !

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

21वीं सदी में, जब महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर या उनसे बेहतर साबित हो रही हैं, ऐसे में यह बहुत ही निराशाजनक और दुखद है कि किसी व्यक्ति ने बेटे की चाहत में अपनी नवजात जुड़वां बेटियों की हत्या कर दी। यह घटना एक ओर आधुनिक मूल्यों और सामाजिक समानता की दिशा में उठाए गए कदमों को धक्का पहुंचाती है, तो दूसरी ओर यह दिखाती है कि आज भी कुछ लोग संकीर्ण मानसिकता के साथ जी रहे हैं।

दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 32-वर्षीय नीरज सोलंकी को हरियाणा के रोहतक से गिरफ्तार किया। नीरज पर आरोप है कि उसने अपने बेटे की चाहत में अपनी तीन दिन की जुड़वां बेटियों को मारकर दफना दिया। पुलिस के अनुसार, नीरज गिरफ्तारी से बचने के लिए लगातार अपना ठिकाना और मोबाइल सिम बदल रहा था। इस घटना की जानकारी मिलने के बाद, पुलिस ने शमशान घाट पर बच्चियों के शवों को खोदकर निकाला और पोस्टमार्टम कराया।

यह घटना बताती है कि हमारे समाज में अभी भी कुछ लोग बेटियों को बोझ समझते हैं और उन्हें जीवन का अधिकार भी नहीं देते। यह केवल एक व्यक्ति की मानसिकता का मामला नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की उस पितृसत्तात्मक सोच का परिणाम है, जो बेटियों को बेटे से कमतर मानती है। 

हमारे समाज में लैंगिक समानता की दिशा में काफी प्रयास किए गए हैं और आज महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। फिर भी, ऐसी घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाना अभी भी एक चुनौती है। सरकार द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता कार्यक्रमों और नीतियों के बावजूद, पितृसत्तात्मक सोच और लैंगिक भेदभाव अभी भी गहरे पैठे हुए हैं।

यह घटना समाज और व्यवस्था की नाकामी को भी उजागर करती है। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे नारों के बावजूद, अगर बेटियों को जीवन का अधिकार नहीं मिल रहा है, तो यह हमारी व्यवस्था की गंभीर खामी को दर्शाता है। हमें अपने समाज में बेटियों के प्रति सम्मान और समानता का भाव विकसित करने के लिए गंभीर और ठोस कदम उठाने की जरूरत है। 

समाज में शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से लैंगिक भेदभाव को खत्म करना अत्यावश्यक है। हर व्यक्ति को यह समझना होगा कि बेटियां किसी भी दृष्टि से बेटों से कम नहीं होतीं। हमें एक ऐसी समाज व्यवस्था का निर्माण करना होगा जहां बेटियां सुरक्षित और सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें और अपनी क्षमताओं को पूरी तरह से विकसित कर सकें।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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