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November 22, 2024 9:42 am

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प्यार, पैसा, कामयाबी सबकुछ तो था, फिर भी जिंदगी इतनी बेचैन क्यों रही नायाब फनकार गुरुदत्त की? 

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टिक्कू आपचे की रिपोर्ट

हिंदी फिल्म जगत में कुछ नायाब कलाकार ऐसे हुए हैं जिन्हें सिनेमा का आधार माना जाता है। इन दिग्गज कलाकारों में गुरु दत्त का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। गुरु दत्त को सिनेमा मेकिंग स्कूल की तरह देखा जाता है, और उनकी फिल्में आज भी कलाकारों और सिनेमा के छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। वे न केवल एक प्रतिभाशाली लेखक, निर्देशक, अभिनेता, और फिल्म निर्माता थे, बल्कि उनकी कला और योगदान से सिनेमा की दुनिया को एक नई दिशा मिली। उनकी कुछ प्रसिद्ध फिल्मों में ‘कागज के फूल’, ‘प्यासा’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’, ‘बाज’, ‘जाल’, और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ शामिल हैं।

50 से 60  के दशक में बेहतरीन फिल्मों के जरिए भारतीय सिनेमा को गुलजार करने वाले फिल्ममेकर गुरुदत्त ने जिंदगी के हर रंग देखे। गुरुदत्त ने करियर में शानदार फिल्मों के निर्माण के साथ ही अपने अभिनय का भी लोहा मनवाया। हालांकि,  रंगमंच के इस दिग्गज खिलाड़ी ने महज 39 की उम्र में दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। एक काबिल-ए-तारीफ फिल्ममेकर, अभिनेता, प्रोड्यूसर और राइटर होने के बावजूद गुरुदत्त ने दो दफा अपनी जीवन लीला समाप्त करने की कोशिश की थी। गुरुदत्त सब कुछ होने के बावजूद भी ताउम्र बेचैन रहे थे। आखिर क्या था जो गुरुदत्त को जीवन में सबकुछ रहते हुए भी शांति नहीं थी, चलिए जान लेते हैं-

गुरु दत्त का जीवन जितना प्रेरणादायक था, उनकी मृत्यु उतनी ही रहस्यमय और दुखदाई रही। 39 वर्ष की उम्र में, 10 अक्तूबर 1964 को उनका निधन हो गया। माना जाता है कि उनकी मौत आत्महत्या थी, और इस घटना ने फिल्म इंडस्ट्री में गहरा सदमा पहुंचाया। उनकी मौत से एक रात पहले की कहानी का जिक्र उनके करीबी मित्र और उनकी अधिकतर फिल्मों के लेखक अबरार अल्वी ने अपनी किताब “टेन ईयर्स विद गुरु दत्त” में किया था।

9 अक्तूबर 1964 की शाम को गुरु दत्त और उनकी टीम फिल्म ‘बहारे फिर भी आएंगी’ की नायिका के मरने की कहानी लिखने के काम में जुटी थी। अबरार अल्वी के अनुसार, जब वे शाम को सात बजे के करीब गुरु दत्त के बंगले आर्क रॉयल पहुंचे, तो माहौल बिल्कुल अलग था। गुरु दत्त शराब में डूबे हुए थे और उनके चेहरे पर तनाव और अवसाद साफ झलक रहे थे। अबरार ने गुरु दत्त के सहायक रतन से पूछा कि क्या बात है। उन दिनों गुरु दत्त और उनकी पत्नी गीता दत्त के बीच काफी अनबन चल रही थी। उनकी निजी जिंदगी में तनाव बढ़ता जा रहा था, और हर फोन कॉल के बाद गुरु दत्त का गुस्सा और अवसाद और गहरा हो जाता था। गीता ने गुरु दत्त को बेटी से मिलने पर रोक लगा दी थी, जिससे उनका तनाव और बढ़ गया था। एक फोन कॉल पर गुरु दत्त ने गीता से कहा था, “अगर मैंने बेटी का मुंह नहीं देखा तो तुम मेरा पार्थिव शरीर देखोगी।”

अबरार ने अपनी किताब में लिखा है कि गुरु दत्त कितना भी नशा कर लें, लेकिन वे नियंत्रण नहीं खोते थे। उस रात, उन्होंने एक और पेग पीने की इच्छा जताई लेकिन खाना नहीं खाया। रात एक बजे के करीब अबरार ने उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन गुरु दत्त ने कहा कि वे सोना चाहते हैं। अबरार ने पूछा कि वे उनका लेखन और सीन नहीं देखेंगे, क्योंकि वे हमेशा लेखन खत्म होने के बाद विवरण लेते थे, लेकिन उस दिन उन्होंने मना कर दिया और अपने कमरे में चले गए।

वो रात गुरु दत्त के जीवन की आखिरी रात साबित हुई। उनके बंगले आर्क रॉयल में उस दिन क्या हुआ, इसका विवरण बहुत कम लोगों को ही पता है। अबरार ने बताया कि रतन से उन्हें गुरु दत्त की दुखद खबर मिली थी। रात के तीन बजे के करीब गुरु दत्त ने रतन से पूछा था, “अबरार कहां हैं?” रतन ने जवाब दिया, “मुझे लेखन सौंप के चले गए। बुलाऊं क्या?” गुरु दत्त ने कहा, “रहने दो, मुझे व्हिस्की दो।” रतन ने कहा, “व्हिस्की नहीं है,” लेकिन गुरु दत्त माने नहीं। उन्होंने बोतल उठाई और अपने कमरे में चले गए। 

इस तरह, गुरु दत्त की आखिरी रात उनकी ज़िंदगी की सबसे दुखद और रहस्यमयी रात बन गई। उनके निधन ने भारतीय सिनेमा को एक अपूरणीय क्षति पहुंचाई।

अभिनेत्री नरगिस दत्त ने बताया था कि सुबह साढ़े आठ बजे जब उनके डॉक्टर घर पहुंचे तो उन्हें सोता समझ कर लौट गए थे। इस दौरान गीता दत्त उन्हें लगातार फोन करती रहीं। रतन को लगा कि वो देर से सोए थे इसलिए अब तक सो रहे हैं लेकिन गीता को कुछ आसामान्यता का आभास हो गया था। उन्होंने 11 बजे रतन से कहा कि वो दरवाजा तोड़ दें। दरवाजा टूटने पर रतन ने देखा की गुरु दत्त बिस्तर पर लेटे हुए हैं।

भारतीय सिनेमा में मिसाल बन चुके गुरुदत्त एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने अपने जीवन को सिनेमा का पर्दा समझा और उसमें ही अपना सब कुछ झोंक दिया। उनके अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी। पर्दे पर कुछ अद्भुत और अद्वितीय रचने की बेचैनी। गुरुदत्त अपने आप में सिनेमा का महाविद्यालय थे। उनकी तीन क्लासिक फिल्में ‘साहिब बीवी और गुलाम’, ‘प्यासा’ और ‘कागज के फूल’ को टेक्स्ट बुक का दर्जा प्राप्त है।

गुरुदत्त ने साल 1946 में प्रभात स्टूडियो की एक फिल्म ‘हम एक हैं’ से बतौर कोरियोग्राफर अपना फिल्मी करियर शुरू किया। इसके बाद अभिनेता को फिल्म में एक्टिंग करने का मौका भी मिला था। अभिनेता का करियर आगे बढ़ ही रहा था कि साल 1951 में देवानंद की फिल्म ‘बाजी’ की सक्सेस के बाद गुरु दत्त की मुलाकात गीता दत्त से हुई। इस फिल्म के दौरान दोनों करीब आए और साल 1953 में उन्होंने शादी कर ली।

गुरुदत्त अपनी शादी शुदा जिंदगी से काफी खुश थे और करियर में आगे बढ़ रहे हैं। इसी दौरान उनकी मुलाकात वहीदा रहमान से हुई। ऐसा कहा जाता है कि वहीदा रहमान और गुरुदत्त एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, लेकिन गुरु दत्त पहले से ही शादीशुदा थे। वहीदा रहमान को लेकर गुरुदत्त और गीता दत्त में आए दिन झगड़े होते रहते थे। साल 1957 में दोनों की शादीशुदा जिंदगी में दरार आ गई और दोनों अलग-अलग रहने लगे।

इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक हिट फिल्में देने वाले गुरुदत्त उस वक्त दिवालिया हो गए, जब उनकी फिल्म ‘कागज के फूल’ फ्लॉप हो गई। एक तरफ निजी जिंदगी की परेशानियां। वहीं, दूसरी ओर प्रोफेशनल लाइफ में नुकसान की वजह से गुरुदत्त बिल्कुल टूट चुके थे। उन्होंने दो बार आत्महत्या करने की कोशिश की थी। 39 साल की उम्र में गुरु दत्त अपने बेडरूम में मृत पाए गए।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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