दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
हाथरस के बागला अस्पताल के मुर्दाघर के पास लालाराम बदहवास बैठे हैं। वे बार-बार अपने मोबाइल में अपनी पत्नी कमलेश की तस्वीर देखते हैं, आंसू पोंछते हैं और फिर शांत हो जाते हैं। पेशे से मज़दूर लालाराम को नारायण साकार विश्व हरि उर्फ़ भोले बाबा के सत्संग में कोई आस्था नहीं थी, लेकिन पत्नी की ज़िद के कारण उन्होंने मंगलवार को छुट्टी ली और सत्संग चले गए।
ऐसी थी बैठने की व्यवस्था
सत्संग के पंडाल में महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग बैठाया गया था। सत्संग समाप्त होने के बाद जब नारायण सरकार पंडाल से जा रहे थे, तब मची भगदड़ में लालाराम की 22 वर्षीय पत्नी कमलेश की मौत हो गई।
लालाराम को कमलेश का शव सिकन्द्राराऊ स्वास्थ्य केंद्र में मिला था, जिसे वे अपने घर ले गए थे।
प्रशासनिक अधिकारियों के कहने पर लालाराम बुधवार को कमलेश का शव पोस्टमार्टम कराने के लिए वापस लाए हैं।
सत्संग में मची भगदड़ में कम से कम 121 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है, जबकि 31 लोग घायल हैं। अधिकतर शवों को बुधवार दोपहर तक पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया, लेकिन कुछ अज्ञात शव रह गए हैं। बुधवार दोपहर तक हाथरस के मुर्दाघर में रखे एक बच्चे के शव की पहचान नहीं हो सकी थी।
मैं नहीं मानता बाबा को
लालाराम, जो इस हादसे में अपनी पत्नी को खो चुके हैं, सत्संग में जाने के सवाल पर उदास होकर कहते हैं, “मैं बाबा को नहीं मानता हूं, अपने काम से काम रखता हूं। पत्नी महिलाओं के ज़रिए सत्संग के संपर्क में आई और मंगलवार को ज़िद करके मुझे भी ले गई। मैंने उसके साथ जाने के लिए काम से छुट्टी ली थी।”
लालाराम को इस बात की खीज है कि चमत्कार करने का दावा करने वाले नारायण साकार ने इस हादसे को रोकने के लिए कोई चमत्कार नहीं किया। वे गुस्से में कहते हैं, “बाबा ही ज़िम्मेदार हैं। उनकी इतनी प्रार्थना होती है। इतने लोग मर रहे थे, बाबा कोई चमत्कार करते, कुछ ऑक्सीजन बनाते, मौसम को ठंडा करते, बाबा ने कुछ नहीं किया। इतनी दूर-दूर से लोग बाबा के चरणों में आए थे, अब उनकी मिट्टी जा रही है। बाबा ने कोई चमत्कार नहीं किया।”
सब कुछ गंवा दिया आस्था नही
वीरपाल सिंह, जिनकी आस्था अटूट थी, सावित्री देवी के शव का इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन वे बिलकुल ख़ामोश हैं और पूछने पर भी कुछ नहीं बोलते। बार-बार वे अपना सिर पकड़ते हैं। उनके बेटे अजय भी सत्संग से जुड़े हुए हैं, लेकिन उन्होंने इस हादसे के लिए नारायण साकार को ज़िम्मेदार नहीं माना। अजय कहते हैं, “इसमें परमात्मा की कोई ग़लती नहीं है। उनको दोषी क्यों माना जाए, जो हुआ है उनके जाने के बाद हुआ है। लोगों ने नियम तोड़ा तब ऐसा हुआ, उन्होंने लोगों से कहा था कि अब घर लौट जाओ, इतनी भीड़ बढ़ाने क्यों आए हो।”
उनका परिवार लंबे समय से सत्संग से जुड़ा है और वे बताते हैं, “सत्संग में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती, न कोई दानपात्र लगाया जाता है, न ही कोई चढ़ावा दिया जाता है। अगर कोई दान देना भी चाहता है तो लिया नहीं जाता है। बाबा सिर्फ प्रवचन करते हैं और मानवता और जीवन के लिए दिशा बताते हैं।”
अब न जाऊँ सतसंग
अस्पताल में भर्ती घायल महिलाओं में कुछ ऐसी भी मिलीं, जिन्होंने अब सत्संग जाने से तौबा कर ली है। माया देवी को संतोष है कि उनकी जान बच गई, लेकिन उनके साथ गईं दो और महिलाओं ने भगदड़ में दम तोड़ दिया। माया देवी कहती हैं, “मेरे आगे पीछे आदमी ही आदमी थे, मैं गिरी तो फिर उठ नहीं पाई, वहीं बेहोश हो गई। मुझे नहीं पता किसने उठाया और किसने अस्पताल पहुंचाया।”
उनकी बहू उनकी सेवा में लगी हैं और जब भगवान देवी दर्द से तड़पती हैं, तो उनकी बहू हाथ थाम लेती हैं। भगवान देवी कहती हैं, “न जाने कितने लोग मेरे ऊपर से गुज़र गए, मेरी सारी पसलियां चरमरा गई हैं।” उनकी बहू कहती हैं, “अब हम इन्हें कभी सत्संग में नहीं जाने देंगे। पहले भी मना किया था, अब तो बिलकुल नहीं जाने देंगे।”
एक घायल महिला अस्पताल में सत्संग जाने से तौबा करते हुए कहती हैं, “हम घर से ही वचन कर लेंगे, कभी सत्संग नहीं जाएंगे। बहुत मुश्किल से जान बची है।”
हरि ने पूरी दुनिया हर ली
हाथरस के दलित बहुल इलाके नबीपुर खुर्द में नारायण साकार हरि का प्रभाव दिखाई देता है। यहां से सत्संग में गईं दो महिलाएं ज़िंदा नहीं लौट सकीं और अब उनके परिवार बिखर गए हैं।
आशा देवी का परिवार उनका अंतिम संस्कार करके लौट आया है। उनके दो कमरों वाले छोटे घर में बाहर बैठने के लिए जगह नहीं है। दरवाज़े पर एक बेटा सिर मुंडाए बैठा है, जबकि उनके दूसरे बेटे हरिकांत दीवार से सटे खड़े हैं। हरिकांत कहते हैं, “मेरी मां कई साल से सत्संग से जुड़ीं थीं, हम उन्हें जाने से रोकते थे लेकिन उन्होंने मानी नहीं। कल सुबह बिना बताए चली गईं।”
आशा देवी के घर की दो कमरों में एक में हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की तस्वीरें हैं, जबकि दूसरे कमरे में सिर्फ धर्मगुरू नारायण साकार विश्व हरी की उनकी पत्नी के साथ तस्वीर है। एक आरती भी लटकी है, जो धर्मगुरू का गुणगान करती है।
कौन है इस हादसे का जिम्मेदार
आशा देवी की नातिन मृत्युंजा भारती नानी की मौत के बाद बेहद ग़ुस्से में हैं। वे कहती हैं, “मैं ऐसे बाबा में विश्वास नहीं करती। कोई कैसे अपने आप को भगवान बोल सकता है।” भारती बोलती हैं, “कितने लोगों ने अपने परिजनों को खो दिया है, इस हादसे की ज़िम्मेदारी अब कौन लेगा? क्या बाबा अब इन परिवारों का दुख ख़त्म कर सकते हैं?”
आशा देवी की बेटी मोहिनी के आंसू नहीं रुक रहे हैं। वे दरवाज़े से टिककर कहती हैं, “मां ने कई बार मुझसे सत्संग में चलने के लिए कहा, लेकिन मैंने कभी नहीं गई। हमें बस यहीं पता है कि हमारी मां अब वहां नहीं हैं, हमेशा के लिए। अब वे कभी लौट कर नहीं आएंगी।”
जुगनू कुमार कहते हैं, “मैंने जब अस्पताल पहुंचा तो मेरी मां बहुत ख़राब हालत में बाहर पड़ी थीं। लोगों ने उनको इस तरह पटक रखा था मानो वो इंसान ही नहीं थीं।” उन्होंने जोर से कहा, “मैं किसी बाबा को नहीं मानता। हादसे की ज़िम्मेदारी प्रशासन की है। उन्होंने सिर्फ 80 हज़ार लोगों की अनुमति दी थी, और जब इतने लोग पहुंच गए तो उन्होंने इसके लिए व्यवस्था क्यों नहीं की?”
जुगनू कुमार ने बहुत दुखी होकर कहा, “हमारी मां महिलाओं की संगत में सत्संग के संपर्क में आ गईं थीं, और अब हमारा परिवार बिखर गया है। अब कौन हमारे परिवार का ध्यान रखेगा?”
भगदड़ की यह घटना अत्यंत दुखद है और इसे समझने के लिए विभिन्न पहलुओं को समझना जरूरी है। इस हादसे के पीछे कुछ मुख्य कारक थे जो इसे एक भयानक घटना में बदल दिया:
इंतजामों की कमी
सत्संग समाप्त होने पर बाहर निकलने के लिए अलग रास्ता होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं था। इसके कारण भीड़ ने खुद रास्ता बनाकर बाहर निकलने की कोशिश की, जिससे भगदड़ मच गई।
प्रशासनिक असमर्थता
अस्पताल और सुरक्षा इंतजाम इस भीड़ को संभालने में सक्षम नहीं थे। घटनास्थल पर पुलिसकर्मी भी घायल हो गए, जिससे मदद की देरी हुई।
मानसिक तनाव
समुदाय के लोगों में आकांक्षा की भावना, देवी-देवताओं के संग प्राप्ति की इच्छा, जिससे भगदड़ तेजी से फैल गई।
आपातकालीन प्रतिक्रिया
जब हादसा हुआ, तो अस्पताल और प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे, लेकिन यह दिखता है कि इससे पहले की समझ और तत्परता होती तो शायद इस हादसे का परिणाम भी अलग हो सकता था।
बहुत बड़ी सीख
इस भयानक घटना ने समाज की संरचना में भी एक बड़ी खाई का दर्दनाक अनुभव प्रदान किया है। इससे सीख यह है कि सुरक्षा और प्रबंधन में सख्ती से उत्तरदायित्व निभाना अत्यंत जरूरी है, विशेषकर ऐसे समाजिक समर्थन संगठनों या आयोजनों के लिए जो बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करते हैं।
इस घटना के पीछे के प्रमुख पहलुओं की समझ बनाने के लिए पुलिस की एफ़आईआर और उससे प्रकट होने वाली जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है। एफ़आईआर के अनुसार, सत्संग के आयोजकों ने 80,000 लोगों के आने की सूचना दी थी, लेकिन असल में ढाई लाख से अधिक लोग जुटे थे। इस बड़ी भीड़ का प्रबंधन संभावनाओं से बाहर था, जिससे हादसे का सबसे मुख्य कारण बना।
विपक्ष हुआ हमलावर
हादसे के बाद, राज्य सरकार पर विपक्ष और सामाजिक संगठनों का संकट बढ़ा है। घायलों की हालत अस्पताल में भर्ती होने के बाद भी संवेदना और समर्थन की कमी दिखाई दी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटनास्थल का दौरा किया और इसे एक साज़िश का इशारा मानकर न्यायिक जांच की घोषणा की है। उन्होंने सामाजिक तत्वों द्वारा साजिश का आरोप भी लगाया है।
नारायण साकार ने इस घटना को दुर्भावनापूर्ण तत्वों की साजिश मानते हुए उसे न्यायिक जांच के लिए रेटायर्ड जज की अध्यक्षता में सौंपा है।
इस भयानक हादसे ने समाज को एक और मुश्किल दौर से गुज़रने के लिए मजबूर किया है। यह एक सख़्त सच्चाई को प्रस्तुत करता है कि सुरक्षा और प्रबंधन में सख्ती से उत्तरदायित्व निभाना कितना आवश्यक है, ख़ासकर बड़ी भीड़ वाले सामाजिक आयोजनों में।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."