दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले के सिकन्द्राराऊ क़स्बे के नज़दीक सत्संग कार्यक्रम में हुई भगदड़ का दृश्य बेहद दर्दनाक था। एंबुलेंसों की क़तारें, एसडीआरएफ़ के जवानों की भीड़ जो तेजी से बसों से उतर रहे थे, और हर तरफ़ बिखरे हुए जूते-चप्पल इस हादसे की गंभीरता को बयां कर रहे थे। टीवी मीडिया के पत्रकार लाइव रिपोर्टिंग कर रहे थे, और लोग अपने लापता परिजनों को खोज रहे थे।
यह त्रासदी दो जुलाई की देर शाम घटी, जब उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव मनोज कुमार ने इस हादसे में कम से कम 116 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि इस घटना के संबंध में एफ़आईआर दर्ज की जाएगी और पूरी जांच की जाएगी।
इस हादसे में मारे गए लोगों में अधिकतर महिलाएं थीं।
सत्संग के इस आयोजन की तैयारियां कई दिनों से चल रही थीं। टेंट लगाने का काम आठ दिन में पूरा हुआ था, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में लोगों के जुटने से भगदड़ मच गई। आयोजकों ने शायद भीड़ को संभालने के लिए पर्याप्त प्रबंध नहीं किए थे, जिसके कारण यह दुर्घटना घटी।
इस हृदयविदारक घटना ने सुरक्षा इंतजामों की कमी और बड़े आयोजनों में भीड़ नियंत्रण के महत्व को उजागर किया है।
अब, घटना की पूरी जांच होने के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा कि इस त्रासदी का असल कारण क्या था और इससे भविष्य में कैसे बचा जा सकता है।
सत्संग कार्यक्रम के आयोजनकर्ताओं ने प्रशासन से अनुमति मांगते समय बताया था कि क़रीब 80 हज़ार लोग इस सत्संग में हिस्सा लेंगे। लेकिन वास्तविकता में यहां पहुंचने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक हो गई।
चश्मदीदों और भक्तों के अनुसार, सत्संग समाप्त होने के बाद यहां आए श्रद्धालुओं में बाबा के चरणों की धूल इकट्ठा करने की होड़ मच गई। यही होड़ बाद में भगदड़ का कारण बनी। श्रद्धालु इतनी बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए कि भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया और भगदड़ मच गई।
इस स्थिति ने यह स्पष्ट किया कि आयोजनकर्ताओं ने भीड़ प्रबंधन की उचित व्यवस्था नहीं की थी। प्रशासन को दी गई अनुमानित संख्या और वास्तविक संख्या में बड़ा अंतर होने के कारण व्यवस्थाएं पूरी तरह से विफल हो गईं। बाबा के चरणों की धूल इकट्ठा करने के प्रयास में मची भगदड़ ने इस त्रासदी को और गंभीर बना दिया।
इस हादसे ने बड़े आयोजनों में भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा इंतजामों की महत्ता को एक बार फिर उजागर किया है। आयोजकों और प्रशासन को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसे हादसों से बचने के लिए उचित प्रबंध किए जाएं।
आयोजन स्थल अलीगढ़ से एटा को जोड़ने वाले नेशनल हाइवे 34 पर, सिकन्द्राराऊ क़स्बे से लगभग चार किलोमीटर दूर फुलराई गांव में स्थित था। यहां कई बीघा ज़मीन पर टेंट लगाया गया था, जिसे अब जल्दबाज़ी में उखाड़ा जा रहा है।
अधिकतर लोगों की मौत आयोजन स्थल के उस पार हाइवे किनारे हुई है। बारिश होने के कारण हाइवे के इस ढलान पर फिसलन थी, जो इस भगदड़ का एक मुख्य कारण बनी। चश्मदीदों के अनुसार, जो इस भगदड़ में गिरा, वह उठ नहीं सका। दिन में हुई बारिश के कारण मिट्टी गीली थी और फिसलन भरी थी, जिससे हालात और भी मुश्किल हो गए।
नारायण साकार विश्व हरि उर्फ़ ‘भोले बाबा’ के निकलने के लिए एक अलग रास्ता बनाया गया था। बहुत सी महिलाएं बाबा के क़रीब से दर्शन पाने के लिए उस रास्ते पर खड़ी थीं। जैसे ही सत्संग समाप्त हुआ, हाइवे पर भीड़ बढ़ गई। जब नारायण साकार अपने वाहन की ओर जा रहे थे, उसी वक्त भगदड़ मच गई।
इस भगदड़ के दौरान नारायण साकार के भक्त फंसे हुए थे, लेकिन बाबा वहां रुके बिना आगे बढ़ गए। इस घटना के बाद से बाबा या उनके सत्संग से जुड़े किसी भी व्यक्ति की तरफ़ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
इस त्रासदी ने सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण के महत्व को एक बार फिर उजागर किया है। आयोजकों की ओर से भीड़ की सही अनुमानित संख्या न बताने और प्रशासन की ओर से पर्याप्त व्यवस्थाएं न होने के कारण यह हादसा हुआ। भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए उचित प्रबंध और सावधानी बरतनी होगी।
बहराइच ज़िले से आई गोमती देवी के गले में नारायण साकार की तस्वीर का लॉकेट झूल रहा है, जिसे उन्होंने पूरी आस्था के साथ पहन रखा है। जिस बस में वह आई थीं, उसकी दो सवारियां लापता हैं। इस हादसे के बाद भी गोमती देवी के मन में नारायण साकार के प्रति श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई है।
कुछ घंटे तलाशने और लापता लोगों को खोजने में नाकाम रहने के बाद, बहराइच से आई बस बाकी बचे श्रद्धालुओं को लेकर वापस लौट गई। इस भीषण हादसे के बाद भी इस समूह के श्रद्धालुओं का विश्वास नारायण साकार में अडिग रहा।
गोमती देवी क़रीब चार साल पहले बाबा के सत्संगियों के संपर्क में आई थीं। गले में लटकी नारायण साकार की तस्वीर की माला दिखाते हुए उन्होंने दावा किया, “इसे गले में लटकाने से लाभ मिलता है, सुकून मिलता है, मर्ज़ ठीक हो जाते हैं, घर का क्लेश कट जाता है, रोज़गार मिलता है।”
बहराइच से ही आए दिनेश यादव कहते हैं, “हमारी तरफ़ के लोग बाबा की छवि रखकर पूजा करते थे, उन्हें देखकर हम भी पूजा करने लगे। हम एक साल से इस संगत में हैं। अभी हमें कोई अनुभव नहीं हुआ लेकिन परमात्मा (बाबा) पर हमें विश्वास है, जो मन्नत मांगते हैं वह पूरी होती है।”
दिनेश इस हादसे के लिए नारायण साकार को ज़िम्मेदार नहीं मानते थे। उनके अनुसार, बाबा के प्रति उनका विश्वास और श्रद्धा बरकरार है। उनके लिए यह घटना एक दुखद दुर्घटना थी, लेकिन इससे उनकी आस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनके अनुसार, बाबा की कृपा से उनकी सभी समस्याएं हल हो जाती हैं और वह उनकी भक्ति में अडिग रहते हैं।
भगदड़ के बाद का हाल
भगदड़ दोपहर करीब ढाई बजे मची। घायलों को जल्दी से जल्दी सिकन्द्राराऊ के सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) ले जाया गया। वहां पहुंचने वाले पत्रकारों ने बताया कि सीएचसी के ट्रामा सेंटर के आंगन में लाशों का ढेर लग गया था।
हाथरस में एक दशक से अधिक समय से पत्रकारिता कर रहे बीएन शर्मा ने बताया, “मैं चार बजे यहां पहुंचा। हर जगह लाशें पड़ी हुई थीं। एक लड़की की सांस चल रही थी। उसे इलाज नहीं मिल सका और मेरे सामने ही उसने दम तोड़ दिया।”
सिकन्द्राराऊ का यह अस्पताल क्षेत्र का सबसे बड़ा अस्पताल है, लेकिन इसकी क्षमता इतनी बड़ी संख्या में हताहतों को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं थी।
इस हादसे के बारे में शुरुआती जानकारी थी कि 10-15 लोग हताहत हुए हैं। प्रशासन के अधिकारी भी लगभग चार बजे अस्पताल पहुंच पाए। शाम करीब छह बजे बीबीसी से बात करते हुए हाथरस के पुलिस अधीक्षक निपुण अग्रवाल ने 60 लोगों के शव गिने जाने की पुष्टि की। हर बीतते घंटे के साथ मरने वालों की संख्या बढ़ती गई।
प्रशासन ने शवों को आसपास के जिलों एटा, कासगंज, आगरा और अलीगढ़ भिजवा दिया। यह उन लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया जिनके अपने लापता हो गए थे।
अपनों को खोजते लोग
मथुरा के रहने वाले और गुरुग्राम में प्लंबर का काम करने वाले विपुल अपनी मां को खोजने के लिए कुछ दोस्तों के साथ किराए की टैक्सी करके रात करीब 11 बजे सिकन्द्राराऊ पहुंचे। उन्होंने हेल्पलाइन नंबरों, कंट्रोल सेंटर और अस्पतालों में फोन किया लेकिन मां के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
विपुल हाथरस के जिला अस्पताल पहुंचे जहां करीब 30 शव लाए गए थे। उन्हें अपनी मां नहीं मिलीं। रात करीब दो बजे वे अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज पहुंचे। वहां भी उनकी तलाश जारी थी।
विपुल बताते हैं, “मेरी मां सोमवती करीब एक दशक से बाबा के सत्संग से जुड़ी थीं। उनकी बाबा में गहरी आस्था थी। उनके साथ आई महिलाओं ने बताया कि वह लापता हो गईं हैं तो मैं तुरंत गुरुग्राम से भागकर यहां आया।”
अलग-अलग जिलों से आए कई और लोग परिजनों को तलाशने की मशक्कत कर रहे थे। कासगंज से आए शिवम कुमार की मां भी लापता थीं। जब वह सीएचसी पहुंचे तो वहां से सभी शवों को दूसरे अस्पतालों में भेजा जा चुका था। वह अपनी मां का आधार कार्ड लेकर इधर-उधर भटक रहे थे।
अलीगढ़ से आए बंटी के पास सीएचसी के बाहर की एक तस्वीर थी, जिसमें उनकी मां मौहरी देवी कई महिलाओं के साथ सीएचसी के बाहर पड़ी थीं। उन्होंने मीडिया में प्रसारित हुए वीडियो से अपनी मां को पहचाना था। बंटी जानते थे कि उनकी बुजुर्ग मां अब इस दुनिया में नहीं हैं। वह बस जल्द से जल्द अपनी मां के शव को खोज लेना चाहते थे।
बंटी कहते हैं, ”सीधे यहां पहुंचा हूं। समझ नहीं आ रहा कि कासगंज जाऊं, एटा जाऊं, अलीगढ़ जाऊं या फिर हाथरस।” बंटी कंट्रोल सेंटर के कई नंबरों पर कॉल करते हैं, लेकिन कहीं से कोई पुख़्ता जानकारी नहीं मिलती। एक ऑपरेटर उन्हें सभी अस्पतालों में जाकर देख लेने की सलाह देता है।
इस हादसे ने न सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर किया, बल्कि पीड़ित परिवारों की दर्दनाक स्थिति को भी सामने लाया, जो अपनों को खोजने के लिए दर-दर भटकने पर मजबूर हो गए थे।
पहचान कैसे की जाए
घटना में मारे गए कई लोगों की पहचान रात 12 बजे तक भी नहीं हो सकी थी। जिन लोगों की पहचान हो चुकी है, प्रशासन ने उनकी सूची जारी की है। लेकिन लावारिस शवों के परिजनों के सामने उन्हें खोजने की चुनौती है।
नारायण साकार के सत्संग में आने वाले अधिकतर लोग कमजोर आर्थिक वर्ग और पिछड़ी जातियों से हैं। ये लोग एक दूसरे के संपर्क में आने से अपने आप को बाकी सत्संगियों के करीब पाते हैं और जीवन में आ रही चुनौतियों के समाधान के लिए नारायण साकार का सहारा लेते हैं।
स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक, नारायण साकार हाथरस में पिछले कुछ सालों में कई बार सत्संग कर चुके हैं और हर बार पिछली बार से अधिक भीड़ होती है, जो इस बात का इशारा है कि सत्संग से जुड़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
पत्रकार बीएन शर्मा बताते हैं, “बाबा के सत्संग में मीडिया की एंट्री नहीं होती है, वीडियो बनाने पर रोक रहती है। बाबा मीडिया में भी अधिक प्रचार नहीं करते हैं।”
बीएन शर्मा कई बार बाबा के सत्संग को ‘बाहर से’ देख चुके हैं। उनके मुताबिक सत्संगी बेहद अनुशासित होते हैं। सत्संग स्थल की साफ-सफाई खुद करते हैं और बाकी जिम्मेदारियां भी स्वयं ही संभालते हैं। भीड़ के प्रबंधन से लेकर ट्रैफिक के प्रबंधन तक का काम सत्संगियों के ही जिम्मे होता है।
नारायण साकार की सुरक्षा में सत्संगियों का भारी दस्ता रहता है जो उनके इर्द-गिर्द चलता है, जिसकी वजह से नारायण साकार के करीब तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है।
सत्संग के दौरान बाबा के पैरों और शरीर को धोने वाले जल, जिसे चरणामृत भी कहा जाता है, इसे लेने की होड़ भी भक्तों में मची रहती है।
बीएन शर्मा कहते हैं, “भक्त बाबा के चरणों की धूल को आशीर्वाद समझते हैं और बाबा जहां से गुजरते हैं वहां की मिट्टी को उठाकर ले जाते हैं।
मंगलवार को जब भगदड़ मची, बहुत सी महिलाएं इसी धूल को उठाने के लिए नीचे झुकी हुई थीं। यही वजह है कि जब भगदड़ मची, बहुत से लोगों को उठने का मौका ही नहीं मिल पाया।”
इस प्रकार, यह हादसा न केवल सत्संग में भीड़ प्रबंधन की असफलता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि अपनों की पहचान और उन्हें खोजने की प्रक्रिया कितनी कठिन हो सकती है।
इस दर्दनाक घटना ने कई परिवारों को न केवल अपने प्रियजनों को खोने का दुख दिया, बल्कि उन्हें खोजने की जद्दोजहद में भी डाल दिया।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."