इरफान अली लारी की रिपोर्ट
ग्रीष्मकाल उपमहाद्वीप में आम का मौसम होता है, और भारत दुनिया के आधे से अधिक आमों का उत्पादन करता है। उर्दू शायरी में आम की सबसे ज्यादा तारीफ की गई है, और हास्य कवि सागर खय्यामी ने इस पर दिलचस्प शायरी भी की है।
आइए, पहले जानते हैं कि एक खास आम का नाम चौसा क्यों पड़ा।
चौसा आम का इतिहास
चौसा आम बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की खास पैदावार रही है। अब यह पाकिस्तान के रहीम यार खान और मुल्तान शहरों में भी व्यापक रूप से उगाया जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश से इसके विशेष संबंध के आधार पर पहले इसे गाजीपुरिया कहा जाता था। जैसे कि एक विशेष किस्म के आम को बम्बइया और कलकतिया कहा जाता है।
बम्बइया आम की फसल मौसम की शुरुआत में आती है, जबकि कलकतिया बड़ा और गूदेदार होता है और बरसात के मौसम में देर से आता है। इसका स्वाद कुछ खास नहीं होता। यह मीठा और पेट भरने वाला होता है। शायद मिर्जा गालिब को यह ज्यादा पसंद आया होगा जिन्होंने आमों के बारे में कहा था कि ये बड़े और मीठे होते हैं।
जून में पीले रंग में आने वाले इस गाजीपुरिया आम को अफगान राजा शेरशाह सूरी ने चौसा नाम दिया था। दरअसल, जब उन्होंने 1539 की लड़ाई में हुमायूं को बिहार के चौसा में हराया, तो उन्होंने अपने पसंदीदा आम के साथ जीत का जश्न मनाया और इस आम का नाम चौसा रख दिया। इसलिए आज भी इसे चौसा के नाम से ही जाना जाता है।
कहते हैं कि शेरशाह सूरी ने ये आम अपनी जीत के उपहार के तौर पर अन्य इलाकाई सरदारों को भी भेंट स्वरूप भेजे थे। चौसा युद्ध ने जहां शेरशाह सूरी के साम्राज्य को मजबूत किया, वहीं इस आम का महत्व भी वक्त के साथ बढ़ता चला गया।
औरंगजेब और आम
जब मुगल बादशाह शाहजहां दक्कन में बुरहानपुर के गवर्नर थे, तब उन्होंने आम के बाग लगवाए, जिनमें से दो किस्में उन्हें बहुत पसंद आईं। जब वह राजा बने तो दक्कन की जिम्मेदारी उनके बेटे औरंगजेब पर आ गई।
औरंगजेब को सख्त निर्देश थे कि इन आमों की विशेष निगरानी की जाए और फल आगरा या दिल्ली, जहां भी शाहजहां हों, भिजवाया जाए। राजा के निर्देश पर, आम के मौसम के दौरान इसकी निगरानी के लिए विशेष गार्ड नियुक्त किए गए और अन्य दिनों में, इन पेड़ों की विशेष देखभाल की गई ताकि वे अच्छे फल दें।
एक बार जब इन पेड़ों के फल शाहजहां के पास भेजे गए तो वे मात्रा और संख्या में कम थे। थोड़े खराब भी हो गए थे। इसपर शाहजहां ने अपने बेटे को जबरदस्ती फटकार लगाई। अदब आलमगिरी के मुताबिक, औरंगजेब ने जवाब में पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा, “इसमें उनका कोई दोष नहीं। फल खराब मौसम, हवा और ओले के कारण खराब हो गए हैं।”
संस्कृत नामकरण
शाहजहां की तरह औरंगजेब को भी आम बहुत पसंद थे। उन्हें तोहफे में आम भेजे जाते थे। एक बार उनके बेटे ने औरंगजेब को आम की दो नई किस्में भेजीं और उनसे उनका नाम रखने का अनुरोध किया।
हालांकि औरंगजेब को भारत में एक हिंदू द्वेषी के रूप में चित्रित किया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं था। उनके दरबार में अधिकांश हिंदू सामंती प्रभु थे। अपने बेटे के अनुरोध पर, उन्होंने इन दोनों आमों का नाम संस्कृत भाषा में रखा।
एक आम का नाम सुधा रस और दूसरे का नाम रसना विलास रखा। संस्कृत शब्द सुधा का अर्थ है अमृत और दूसरे शब्द रस का अर्थ है रस। इस प्रकार यह आम का रस अमृत बन गया। अमृत को उर्दू में जीवन का जल समझा जा सकता है।
संस्कृत शब्द रस्ना का हिंदी में अर्थ है जीभ जो आपको स्वाद का एहसास कराती है जबकि विलास का अर्थ है आनंद। गौरतलब है कि औरंगजेब संस्कृत से बहुत अच्छी तरह से परिचित थे। कभी-कभी अपनी पसंद के शब्दों का इस्तेमाल भी किया करते थे। सागर खय्यामी ने इस पर भी एक कविता लिखी है।
औरंगजेब को अक्सर कट्टरपंथी मुगल बादशाह के रूप में देखा जाता है, लेकिन ‘चौसा’ आम और ‘सुधा रस’, ‘रसना विलास’ जैसे नामों का चुनाव उनकी रुचि और संस्कृत ज्ञान को दर्शाता है। यह कहानी मुगल दरबार में आम के महत्व और भारत में इस फल की समृद्ध विरासत को उजागर करती है।
Author: samachar
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