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19 January 2025 7:45 am

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में भूचाल: 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में कड़ा मुकाबला

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में 4 जून के बाद से राजनीति में अप्रत्याशित बदलाव देखा गया है। 80 में से 80 सीटों पर जीत का दावा करते हुए चुनावी मैदान में उतरी भाजपा को समाजवादी पार्टी ने ऐसा झटका दिया है कि लखनऊ से लेकर दिल्ली तक टेंशन बढ़ गई है।

हालांकि, यह टेंशन अभी खत्म नहीं हुई है बल्कि और बढ़ने वाली है क्योंकि उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। ऐसे में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा।

पहले यह जान लेते हैं कि किन 10 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं। ये सीटें हैं करहल, कुरंदकी, मझवा, मिल्कीपुर, गाजियाबाद, कटेहरी, सीसामऊ, फूलपुर, खैर और मीरापुर। यहां 9 विधायकों के सांसद बनने के कारण उपचुनाव होने हैं। इन 10 सीटों पर किसका पलड़ा भारी होगा, यह बड़ा सवाल है। आइए, जानते हैं राजनीतिक विश्लेषकों का इस पर क्या कहना है।

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार राकेश शुक्ला का कहना है कि यह समय एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों के लिए परीक्षा की घड़ी है। इंडिया गठबंधन के लिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि अगर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ती हैं, तो क्या समाजवादी पार्टी कांग्रेस को जो दो विधानसभा सीटें मांगी गई हैं, उसे देने के लिए तैयार होगी? अगर तैयार होती है, तो 2027 के विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन मजबूती से आगे बढ़ेगा। वहीं, अगर इंडिया गठबंधन कांग्रेस को सीट देने से आनाकानी करता है, तो मतभेद बढ़ सकते हैं और 2027 के विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने का जो दावा किया जा रहा है, वह कमजोर हो सकता है।

कांग्रेस को भी लोकसभा चुनाव से बूस्टर मिला है, इसलिए मुमकिन है कि कांग्रेस इन 10 सीटों में से किसी पर दावा ठोंक दे या इंडिया गठबंधन से किसी कांग्रेस कैंडिडेट को टिकट मिले। इसी तरह बीजेपी की सहयोगी आरएलडी और निषाद पार्टी को भी इन 10 सीटों में से कम से कम 2 टिकट पाने की उम्मीद है।

एक अन्य विश्लेषक योगेश मिश्रा ने कहा कि लोगों की नाराजगी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है क्योंकि उनकी नाराजगी केंद्र सरकार से ही नहीं बल्कि राज्य सरकार से भी थी। इसलिए अगर उपचुनाव जल्द होते हैं, तो अखिलेश यादव को फायदा हो सकता है।

राजनीतिक विश्लेषक परवेज अहमद का कहना है कि पब्लिक और राजनीतिक पार्टियों का अपना एक टेंपो बना हुआ है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के परिणामों को रोकने का कोई प्रयास सरकार की ओर से दिखाई नहीं दे रहा है। वहीं, नीट और नेट परीक्षाओं के पेपर लीक होने के बाद गांव-कस्बों में लोगों के अंदर गुस्सा भरा हुआ है, जिसका असर आगामी चुनावों में दिखाई दे सकता है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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