चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
दुनियाभर में आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। कोरोना महामारी के दौरान भी बहुतेरे लोगों ने दावा किया कि योग के कुछ खास तरीकों की मदद से वे बीमारी को हरा सके। भारत से शुरू हुआ योग आज पूरी दुनिया में पहुंच चुका है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके जनक कौन थे? महर्षि पतंजलि को दुनिया का पहला योग गुरु माना जाता है, जिन्होंने योग के 196 सूत्रों को जमाकर इसे आम लोगों के लिए सहज बनाया।
योग एक ऐसी विधा है, जिसका आज पूरी दुनिया में प्रसार हो चुका है। आज सभी जाति और धर्म के लोग इसका हिस्सा बन चुके हैं। योग के जनक महर्षि पतंजलि का जन्म उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के वजीरगंज कस्बे से थोड़ी दूर स्थित कोडर झील के पास हुआ था। महर्षि पतंजलि को नाग से बालक के रूप में प्रकट होने पर शेषनाग का अवतार भी माना जाता है।
उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के वजीरगंज कस्बे के पास स्थित कोडर झील के पास महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, योग के जनक महर्षि पतंजलि पर्दे के पीछे से अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे। ऋषि पतंजलि की माता का नाम गोणिका था। इनके पिता के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
पतंजलि के जन्म के विषय में ऐसा कहा जाता है कि वह स्वयं अपनी माता के अंजुली के जल के सहारे धरती पर नाग से बालक के रूप में प्रकट हुए थे। माता गोणिका के अंजुली से पतन होने के कारण उनका नाम पतंजलि रखा गया। ऋषि को नाग से बालक होने के कारण शेषनाग का अवतार माना जाता है।
गोंडा के कोडर गांव में जन्मे थे योग के जनक महर्षि पतंजलि, जो सिर्फ सनातन धर्म ही नहीं, आज हर धर्म के लोगों के लिए पूज्य हैं। उनके बताए योग के सूत्र से आज कई लोगों ने असाध्य रोगों से मुक्ति पाई है।
जिस अमृत को देवताओं ने अपने पास सुरक्षित रखा, उस अमृत स्वरूपी योग को पूरी दुनिया में बांटने वाले महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली जनपद के वजीरगंज विकासखंड के कोडर गांव में स्थित है। महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली का प्रमाण धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है।
पाणिनि की अष्टाध्यायी महाभाष्य में पतंजलि को गोनर्दीय कहा गया है, जिसका अर्थ है गोनर्द का रहने वाला। गोंडा जिला गोनर्द का ही अपभ्रंश है। महर्षि पतंजलि का जन्मकाल शुंगवंश के शासनकाल का माना जाता है, जो ईसा से 200 वर्ष पूर्व था। महर्षि पतंजलि योगसूत्र के रचनाकार हैं, और इसी रचना से विश्व को योग के महत्व की जानकारी प्राप्त हुई। ये महर्षि पाणिनि के शिष्य थे।
कहा जाता है कि महर्षि पतंजलि अपने आश्रम पर अपने शिष्यों को पर्दे के पीछे से शिक्षा दे रहे थे। किसी ने ऋषि का मुख नहीं देखा था, लेकिन एक शिष्य ने पर्दा हटा कर उन्हें देखना चाहा तो वह सर्पाकार रूप में गायब हो गए।
लोगों का मानना है कि वह कोडर झील के रास्ते विलुप्त हो गए। यही कारण है कि आज भी झील का आकार सर्पाकार है।
महर्षि पतंजलि अपने तीन प्रमुख कार्यों के लिए आज भी विख्यात हैं
महाभाष्य : यह पाणिनि की अष्टाध्यायी पर एक विस्तृत व्याकरणिक टीका है। महाभाष्य में न केवल व्याकरण, बल्कि साहित्य, धर्म, भूगोल, और समाज से संबंधित तथ्य भी मिलते हैं। कहा जाता है कि महर्षि पतंजलि ने इस ग्रंथ की रचना काशी में नागकुआँ नामक स्थान पर की थी। आज भी नागपंचमी के दिन इस कुएं के पास अनेक विद्वान और विद्यार्थी एकत्र होकर संस्कृत व्याकरण के संबंध में शास्त्रार्थ करते हैं।
पाणिनि अष्टाध्यायी : महर्षि पतंजलि ने पाणिनि की अष्टाध्यायी पर महाभाष्य लिखा था, जो अष्टाध्यायी की व्याकरणिक व्याख्या और विश्लेषण प्रदान करता है। यह कार्य व्याकरण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
योगशास्त्र (योगसूत्र) : महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र की रचना की, जो योग का प्रमुख ग्रंथ है। योगसूत्र में योग के विभिन्न अंगों और साधनों का वर्णन किया गया है। यह ग्रंथ आज भी योग के अध्ययन और अभ्यास में मार्गदर्शन के लिए उपयोग किया जाता है।
महाभाष्य की रचना स्थल पर आज भी नागपंचमी के दिन संस्कृत व्याकरण के विद्वान और विद्यार्थी एकत्र होकर शास्त्रार्थ करते हैं। इस स्थान पर एक मंदिर भी है, जिसकी देखभाल पुजारी रमेश दास द्वारा की जाती है।
महर्षि पतंजलि ने अपने अद्वितीय योगदानों से विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम अमर कर दिया है। उनके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
महाभाष्य : पतंजलि ने पाणिनी के अष्टाध्यायी पर एक विस्तृत टीका लिखी, जिसे महाभाष्य कहा जाता है। यह कार्य लगभग 200 ईसा पूर्व का माना जाता है। महाभाष्य ने पाणिनी के व्याकरण की प्रामाणिकता पर अंतिम मोहर लगा दी थी और यह न केवल व्याकरण का ग्रंथ है, बल्कि तत्कालीन समाज का विश्वकोश भी है।
चरक संहिता : पतंजलि एक महान चिकित्सक भी थे और कुछ विद्वान उन्हें ‘चरक संहिता’ का प्रणेता भी मानते हैं। इस ग्रंथ में चिकित्सा शास्त्र के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन है, जो आयुर्वेद के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है।
रसायन विद्या : पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे। अभ्रक, विंदास, धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन हैं। इन क्षेत्रों में उनके योगदान ने उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाया है।
पतंजलि संभवतः पुष्यमित्र शुंग (195-142 ईसा पूर्व) के शासनकाल में थे। राजा भोज ने उन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है, जो उनके व्यापक ज्ञान और कौशल का प्रमाण है।
महर्षि पतंजलि के योग की बात करें तो उन्होंने केवल शरीर की शुद्धि पर जोर नहीं दिया, बल्कि अष्टांग योग के माध्यम से सम्पूर्ण जीवन की शुद्धि और संतुलन पर ध्यान केंद्रित किया। अष्टांग योग के आठ अंग निम्नलिखित हैं:
यम : नैतिक अनुशासन (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह)
नियम : व्यक्तिगत अनुशासन (शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान)
आसन : शारीरिक मुद्राएं और स्थितियां
प्राणायाम: श्वास नियंत्रण
प्रत्याहार : इंद्रियों का नियंत्रण
धारणा : एकाग्रता
ध्यान : ध्यान
समाधि : आत्म-साक्षात्कार और मुक्ति की स्थिति
महर्षि पतंजलि ने योग को टुकड़ों में बांटकर इसे आम लोगों तक पहुंचाया और इसके लाभों को स्पष्ट किया।
आज 7वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। पहली बार यह दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 21 जून 2015 को मनाया गया था। इससे एक साल पहले मोदी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में योग दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे 193 देशों में से 175 देशों ने तुरंत मान लिया था। यह इस बात का प्रमाण है कि योग न केवल हमारे देश में, बल्कि विदेशों में भी अत्यंत लोकप्रिय है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."