बल्लभ लखेश्री की खास रिपोर्ट
देश में ऐसे अनगिनत पुरोधा हुए जिन्होंने बाह्य एवं आंतरिक दोनों मोर्चों पर अपनी हूंकार भरने और अपने सामाजिक सरोकार में अग्रणी रहे। एक मोर्चा जिस पर आजादी को हासिल करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर रहे थे, तो दूसरी तरफ सामाजिक कुरीतियों में जकड़े समाज में समानता का मंत्र फूंक कर अपने मानवीय सरोकारों को सिद्ध करने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता की अवधारणा को भी फलीभूत करते थे ।
फलोदी पुष्करणा समाज के पुरोधा स्वर्गीय श्री मानक लाल आचार्य जी के जिंदगी का सफर भी ठीक ऐसी ही महान गाथा से रूबरू रहा है । स्व. श्री आचार्य जी का जन्म जैसलमेर (राजस्थान )में सम्वत 1967 (सन् 1910) में हुआ था 14 वर्ष की आयु में भी बलूचिस्तान चले गए ।वहां से वे ईरान की सीमाओं का भ्रमण करते-करते खामगांव पहुंचे और वहां किराणे का व्यवसाय करने लगे। लेकिन उस धन्धें में मन नहीं लगा, लगे भी तो कैसे क्योंकि इनकी कर्म साधना के कदम राष्ट्रीय आजादी के पथ पर चलने को आतुर थे।
श्री आचार्य जी ने अब स्वदेशी व्रत धारण कर लिया और 1930 के आन्दोलन में पूर्णतया सक्रिय भूमिका में आ गये। इस दौरान आपको सत्याग्रहियों की भर्ती, प्रोत्साहन और प्रचार का महत्वपूर्ण काम सोपा गया। परिणाम स्वरूप इन्हें समय-समय पर सुविधा विहीन , लुकाछिपी एवं पुलिस प्रताड़ना से भी रूबरू होना पड़ा।
अगले पड़ाव के रूप में स्वर्गीय मानक लाल जी ने खामगांव से फलोदी में आकर कपड़े का व्यवसाय प्रारंभ किया। लेकिन फलोदी में भी अपने स्वदेशी व्रत के संकल्प को बखूबी जारी रखते हुए आर्य समाज का पूर्ण गठन किया ।तथा 1942 में मारवाड़ लोक परिषद के उत्तरदाही शासन आंदोलन में सक्रिय रहे।
इसके बाद भी संयोग वश आपकी गिरफ्तारी नहीं हुई ।1947 में आप लोक परिषद फलोदी शाखा के प्रधान चुने गए ।इस दौरान राष्ट्र वाद एवं गांधीवादी धारा अपने चरम बिन्दु पर थी।
अपने पद दायित्व का निर्वाह करते हुए गांधी विचारधारा से ओतप्रोत होकर फलौदी क्षेत्र की दलित बस्तियों में रात्रि पाठशाला ,सामाजिक , राजनीतिक चेतना ,सामाजिक समानता एवं समरसता के कार्यों में एक सच्चे मिशनरी के रूप में लग गए ।
परिणाम स्वरूप उनके तत्कालीन मानवतावादी श्रम साधना की बदौलत मेहतर (वाल्मीकि) समाज से शिक्षक ,समाज सुधारक, एवं स्वतंत्रता आंदोलन में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहभागिता निभाने वाली प्रतिभाएं अस्तित्व में आई। जिनका श्रेय सिर्फ और सिर्फ स्वर्गीय माणक लाल जी आचार्य जैसे समाज सुधारकों को जाता है । समाज सुधार के साथ-साथ अपने स्वदेशी एवं आजादी के आंदोलन को भी कभी विराम नहीं होने दिया ।
मान्य आचार्य जी ने जगह-जगह घूम घूम कर प्रजा मंडलों की स्थापना , सत्याग्रहियों का मार्ग दर्शन , एवं पुलिस प्रशासन की प्रताड़ना के विरुद्ध मुखर रहे कहीं जगह पर कहीं बार विरोध स्वरूप आप राज्य निषेधाज्ञा का उलंघन भी करते रहे। अपने जैसलमेर जेल में बंद श्री सागर मल गोपा की रिहाई के लिए जबरदस्त आंदोलन को अंजाम दिया।
मैं अपनी जीवन यात्रा के शुरुआती हिस्से का हिसाब करूं तो वह मूफलिसी का दौर था उस कालखंड में पठन-पाठन की सामग्री मुहैया करना मेरे परिजनों के दायरे के बाहर की चीज थी ।
मैं हर रोज अखबार पढ़ने की अपनी लत को आत्मसात करने के लिए फलोदी के सदर बाजार की एक छोटी सी चौकी पर जाया करता था। जो मेरे सेकेंडरी /हायर सेकेंडरी के जमाने की बात है, (1981- 82 -83 )वहां जो चौकी (बैठने की जगह )थी उस पर पुरानी दरी बिछी हुई रहती थी। उस दरी पर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के मुख्य मुख्य समाचार पत्र पड़े रहते थे ।उस चौकी नुमा वाचनालय के संरक्षक के रूप में जो बहुत ही धीर -गंभीर -शांत- स्वभाव के परंतु विराट व्यक्तित्व के धनी श्री मानक लाल जी आचार्य बैठे रहते थे। जिनके रोम रोम की अनंत झुर्रियां अनंत अनुभव की साक्षी थी ।उनकी आंखों पर चश्मा और खादी वस्त्र (टोपी,चोला एवं धोती )सत्य, अहिंसा एवं सादगी की बेजोड़ कहानी सुनाते हुए दृष्टिगोचर होते थे ।
बहुत ही उस अल्प भाषी शख्स ने एक दिन मुझे पास बुलाया, मेरा परिचय लिया और मुझे अपने पास बिठाकर मेरे दादा स्वर्गीय करणी दान जी के किस्से (जिनका स्वर्गवास हुए उस समय 10/11 वर्ष हुए थे) सुनाते हुए बताया कि तेरे दादा हमारी टीम के हिस्सेदार थे। वे मंडल कांग्रेस के पदाधिकारी थे। तत्कालीन नवगठित नगर पालिका के पार्षद रहे थे और जब पहली बार मैंने (श्री आचार्य जी) उनके साथ (श्री करणी दान) बैठकर उनके हाथों की पैडें ( मावे की मिठाई) खाए तब उस समय फलोदी के गलियारों में काफी हलचल हुई ।
लेकिन स्व. माणक लाल जी आचार्य, यथो नाम तथो गुण की कहावत को चरितार्थ करते हुए अपनी अन्तिम सांस तलक अपने कर्त्तव्य पथ से कभी विचलित नहीं हुए।आज भी उनका कृतित्व और व्यक्तित्व प्रांसगिक प्रेरणा का प्रतीक हैं।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."