टिक्कू आपचे की रिपोर्ट
सुनील दत्त, जिन्हें हिंदी सिनेमा के एक महान अभिनेता और आदर्शवादी नेता के रूप में जाना जाता है, ने 1950 और 1960 के दशकों में एक सुपरस्टार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उनकी फिल्में न केवल बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं, बल्कि उन्होंने अपनी अभिनय की गहराई और गंभीरता से दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी।
सुनील दत्त की प्रमुख फिल्मों में “मदर इंडिया,” “साधना,” “इंसान जाग उठा,” “सुजाता,” “मुझे जीने दो,” और “पड़ोसन” शामिल हैं। हर फिल्म में उन्होंने अलग-अलग किरदारों को जीवंत किया, जिससे उनकी अभिनय की बहुमुखी प्रतिभा स्पष्ट हुई। वह अपनी हर फिल्म में सामाजिक और संवेदनशील मुद्दों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते थे।
उनका अभिनय करियर बहुत सफल रहा, लेकिन एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने फिल्म निर्माण में हाथ आजमाने का निर्णय लिया। इस दिशा में उनकी प्रमुख फिल्म “रेशमा और शेरा” थी, जिसमें वे स्वयं मुख्य भूमिका निभा रहे थे और इस फिल्म के निर्माता भी थे। प्रारंभ में सुखदेव इस फिल्म का निर्देशन कर रहे थे, लेकिन उनके निर्देशन से असंतुष्ट होकर सुनील दत्त ने खुद इस फिल्म का निर्देशन करने का निर्णय लिया।
यह निर्णय उनके लिए महंगा साबित हुआ। फिल्म की शूटिंग दुबारा शुरू करने और बड़े पैमाने पर किए गए खर्चों के कारण उन्होंने भारी कर्ज ले लिया। इस आर्थिक संकट के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और अपने कर्तव्यनिष्ठा और संघर्षशीलता से उभर कर वापस आए।
सुनील दत्त न केवल अपने अभिनय और निर्माण कार्यों में, बल्कि राजनीति में भी सक्रिय रहे। उन्होंने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपने आदर्शों पर कायम रहते हुए राजनीति में प्रवेश किया। उनकी बेटी प्रिया दत्त आज उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं, जो उनके आदर्शों और उसूलों का प्रतीक है।
सुनील दत्त की जीवन यात्रा उनके संघर्ष, समर्पण और कड़ी मेहनत की कहानी है। उनकी 95वीं जयंती पर उन्हें याद करते हुए हमें उनके द्वारा दी गई प्रेरणा और उनके कामों को सलाम करना चाहिए।
सुनील को लगा था बड़ा झटका
एक ओर सुनील दत्त पर कर्ज था, वहीं दूसरी ओर फिल्म फ्लॉप हो गई। ऐसे में उन्हें बड़ा झटका लगा। फिल्म के पिटते ही लोग उनसे पैसे वापस मांगने लगे। इस बारे में बात करते हुए सुनील दत्त ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था, ‘मैं उस वक्त दिवालिया हो गया था। मुझे अपनी कारें बेचनी पड़ी और मैं बस में सफर करने लगा था। मैंने बस अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए एक कार रखी थी। मेरा घर तक गिरवी था।’ कई मेहनत के बाद सुनील दत्त इस मुश्किल वक्त से निकल गए और उनकी आर्थिक स्थिति दोबारा बेहतर हुई। इस वक्त उन्हें पत्नी नरगिस और बच्चों का साथ मिला।
कई फिल्म में आजमाए हाथ
बता दें कि सुनील दत्त का जीवन बचपन में भी आसान नहीं था। उन्होंने बचपन के दिनों से ही कई उतार-चढ़ाव देखे। 5 साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया था। जैसे-तैसे ही उनकी पढ़ाई पूरी हो सकी। जय हिंद कॉलेज, मुंबई में उन्होंने हायर एजुकेशन के लिए एडमिशन लिया। पढ़ाई के साथ ही पेट पालने के लिए उन्होंने काम की तलाश शुरू कर दी। इस तलाश में उन्हें बस कंडक्टर की नौकरी मिली और वो इसे करने लगे। कुछ दिनों तक इसे करने के बाद उन्होंने रेडियो जॉकी के तौर पर काम किया। कई सालों तक इसे करने के बाद उन्हें पहली फिल्म हाथ लगी। साल 1955 में उन्हें उनकी पहली फिल्म ‘रेलवे प्लेटफॉर्म’ में काम किया था। बस इसी शुरुआत के साथ उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."