दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट
नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तीसरी बार जीत का भारत के वैश्विक मंच पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की संभावना है। हालांकि, सीटों की संख्या में कमी आई है, लेकिन इस जीत से मोदी की विदेश नीति पर उनके प्रभाव और दृष्टिकोण में बदलाव की संभावना नहीं है।
1.विदेश नीति और निवेश: नरेंद्र मोदी का प्रमुख ध्यान भारत को एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनाने पर है। चाहे जनादेश मजबूत हो या कमजोर, इस लक्ष्य की ओर उनका प्रयास जारी रहेगा। वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए नीतिगत सुधार और व्यापार अनुकूल वातावरण बनाने पर जोर दिया जाएगा।
2.ग्लोबल मैन्युफेक्चरिंग हब : बीजेपी का घोषणापत्र भारत को ग्लोबल मैन्युफेक्चरिंग हब बनाने पर केंद्रित है। अगले पांच वर्षों में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयास किए जाएंगे। इसमें बुनियादी ढांचे में सुधार, व्यापार बाधाओं को कम करना और प्रौद्योगिकी में निवेश शामिल होगा।
3.पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया : बीजेपी की तीसरी जीत से पश्चिमी देशों में मिश्रित प्रतिक्रिया हो सकती है। जहां एक ओर मोदी सरकार की स्थिरता और निरंतरता को सकारात्मक रूप में देखा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर मानवाधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मानदंडों पर चिंताएं भी बनी रह सकती हैं। पश्चिमी देश आशा और सावधानी के साथ भारत के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ाएंगे।
4.अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में निरंतरता : मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में भी भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में निरंतरता देखने को मिलेगी। विशेषकर, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के प्रयास जारी रहेंगे।
इस प्रकार, मोदी की तीसरी जीत से भारत की वैश्विक स्थिति और भी मजबूत हो सकती है, हालांकि चुनौतियां और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सावधानी भी बनी रहेगी।
नरेंद्र मोदी की तीसरी जीत के साथ, उनकी विदेश नीति और अधिक मजबूत और केंद्रित हो सकती है। कुछ जानकारों का मानना है कि यह नीति हिंदुत्व की उनकी मूल विचारधारा के इर्द-गिर्द घूम सकती है। यह दृष्टिकोण भारत की विदेश नीति में निम्नलिखित प्रभाव डाल सकता है:
1.सांस्कृतिक कूटनीति : मोदी सरकार भारतीय संस्कृति, योग, आयुर्वेद, और प्राचीन भारतीय विज्ञानों को बढ़ावा देने पर जोर दे सकती है। इससे भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ावा मिलेगा और विश्व मंच पर भारत की सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा।
2.पड़ोसी देशों के साथ संबंध : हिंदुत्व की विचारधारा के प्रभाव के तहत, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर अधिक जोर दिया जा सकता है। इससे इन देशों के साथ संवाद में जटिलताएँ भी आ सकती हैं, खासकर धार्मिक अल्पसंख्यकों के मुद्दों पर।
3.मुस्लिम देशों के साथ संबंध : हिंदुत्व की विचारधारा के प्रभाव के बावजूद, मोदी सरकार ने मुस्लिम देशों, विशेषकर खाड़ी देशों के साथ आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को बनाए रखने और मजबूत करने की कोशिश की है। यह नीति जारी रह सकती है, क्योंकि खाड़ी देशों में बड़ी संख्या में भारतीय काम करते हैं और ये देश भारत के लिए महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता हैं।
4.अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रभाव : हिंदुत्व की विचारधारा से प्रेरित विदेश नीति भारत को एक सशक्त, स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत कर सकती है। इससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावी बनाया जा सकता है।
5.आंतरिक राजनीति और विदेश नीति का समन्वय : हिंदुत्व की विचारधारा भारत की आंतरिक राजनीति और विदेश नीति के बीच एक समन्वय स्थापित कर सकती है। इससे राष्ट्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर विदेश नीति में स्पष्टता और मजबूती आ सकती है।
इस प्रकार, नरेंद्र मोदी की तीसरी जीत से भारत की विदेश नीति और अधिक सशक्त, स्पष्ट और हिंदुत्व की विचारधारा से प्रभावित हो सकती है। इससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को बल मिलेगा, लेकिन साथ ही चुनौतियों और संवेदनशीलता के मामलों पर भी ध्यान देना आवश्यक होगा।
मिलन वैष्णव का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है और विदेश नीति के संदर्भ में एक अलग परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है। उनके अनुसार, मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में भारत की विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा, और इसका कारण वैश्विक भू-राजनीतिक संरचनात्मक बदलाव हैं। यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु हैं जो वैष्णव की सोच को स्पष्ट करते हैं:
1.संरचनात्मक भू-राजनीतिक बदलाव : वैष्णव का मानना है कि वर्तमान में हो रहे भू-राजनीतिक बदलाव संरचनात्मक हैं, न कि केवल सरकार की नीति का परिणाम। इन परिवर्तनों में अमेरिका का कमजोर होना, चीन का विस्तारवादी रवैया और रूस का ‘विद्रोही’ स्वरूप शामिल हैं। ये बदलाव भारत को एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने का अवसर प्रदान कर रहे हैं।
2.भारत की केंद्रीय भूमिका : इन संरचनात्मक परिवर्तनों के चलते, भारत की वैश्विक मंच पर केंद्रीय भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत को अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए इन परिवर्तनों का लाभ उठाने का अवसर मिल रहा है, जिससे वह एक भू-राजनीतिक और आर्थिक खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है।
3.अमेरिका के साथ साझेदारी : विश्लेषकों के अनुसार, चीन के खिलाफ सुरक्षा कवच के रूप में अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी और भी मजबूत होने की संभावना है। यह साझेदारी न केवल सैन्य और सुरक्षा के क्षेत्र में, बल्कि आर्थिक और तकनीकी सहयोग में भी महत्वपूर्ण होगी। अमेरिका और भारत के बीच बढ़ती निकटता चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ एक रणनीतिक कदम के रूप में देखी जा रही है।
4.निरंतरता और स्थिरता : वैष्णव का मानना है कि मोदी सरकार की विदेश नीति में निरंतरता और स्थिरता बनी रहेगी। पिछले दो कार्यकालों में जिस तरह की नीतियाँ अपनाई गईं, वे तीसरे कार्यकाल में भी जारी रहेंगी, जिससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की स्थिति मजबूत बनी रहेगी।
इस प्रकार, मिलन वैष्णव के अनुसार, मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा। बल्कि, वैश्विक भू-राजनीतिक संरचनात्मक बदलावों के कारण भारत की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाएगी, और अमेरिका के साथ उसकी साझेदारी और भी मजबूत होगी।
विश्लेषकों का कहना समझने में महत्वपूर्ण है कि वैश्विक मंच पर भारत की लोकतांत्रिक साख का महत्व कितना है। मोदी की विदेश नीति और भारत की वैश्विक महत्वाकांक्षाएं इस बारे में बेहद महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
एक उदाहरण के रूप में, बाइडन के सांसदों द्वारा भारतीय राजनीति में लोकतंत्र की गिरावट के बारे में आपत्ति जाहिर करने का मतलब यह हो सकता है कि उन्हें भारत की लोकतांत्रिक साख के महत्व का आंकलन है और वे इसे वैश्विक मंच पर उजागर करना चाहते हैं।
दूसरी ओर, मोदी के स्वागत में एक नायक जैसा होना भी महत्वपूर्ण है। इससे उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा में सुधार हो सकता है और उसे अपनी विदेश नीति को सफलता के साथ आगे बढ़ाने का मौका मिलता है।
मोदी ने भारत को “लोकतंत्र की जननी” कहने के माध्यम से उसके लोकतांत्रिक संस्कृति और संविधानिक मूल्यों को उजागर किया है, जिससे उसकी वैश्विक लोकप्रियता में वृद्धि हो सकती है।
इन सभी तत्वों का मिश्रण, अपने वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए मोदी को अपनी लोकतांत्रिक साख को भी मजबूती से बनाए रखने की आवश्यकता है।
मिलन वैष्णव के द्वारा उजागर किए गए तत्व दिखाते हैं कि भारतीय लोकतंत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है। चुनावी प्रक्रिया में सामान्य मानवीयता के नियमों का पालन, चुनौतियों के बावजूद, लोकतंत्र की मजबूती का संकेत हो सकता है।
हालांकि, पिछले चुनाव में हुए आरोपों और घटनाओं से यह भी स्पष्ट होता है कि भारत के लोकतंत्र में चुनौतियां हैं। निर्दिष्ट दलों या नेताओं के पक्षपात, विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारी, और राजनीतिक दलों के बैंक खातों का फ्रीज़ होना ऐसी चुनौतियों को दिखाते हैं जिनका सामना किया जाना चाहिए।
पश्चिमी देशों में इस पर ध्यान जाना उचित है, क्योंकि भारत एक महत्वपूर्ण विकासशील लोकतंत्रिक राष्ट्र है और उसके राजनीतिक प्रक्रियाओं की स्थिरता और न्यायिकता पर निर्भरता वैश्विक स्तर पर संतुलन और न्याय के प्रति ध्यान केंद्रित करती है।
इन सभी मामलों में, सत्यप्रिय और स्वतंत्र न्याय प्रक्रिया की प्रतिष्ठा बनाए रखना और लोकतंत्र के मूल्यों की प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है। यह भारत के लोकतंत्र के स्वास्थ्य और सामाजिक सामर्थ्य के लिए आवश्यक है, और विश्व समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण स्थापित करता है।
वैष्णव के विचारों से स्पष्ट होता है कि चुनावी प्रक्रिया में विवाद और असमान व्यवहार के बावजूद, विपक्ष ने अच्छा प्रदर्शन किया है। यह दिखाता है कि भारतीय लोकतंत्र की स्थिरता और समर्थन मानवाधिकारों की समर्थन के लिए तैयार है।
बाजपेयी भी यह स्वीकार करते हैं कि चुनाव में विवाद शामिल हैं, लेकिन वे इसे लोकतंत्र के स्वास्थ्य का एक हिस्सा मानते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय लोकतंत्र प्रक्रियात्मक स्तर पर स्थायित्व और समर्थन प्राप्त कर रहा है।
चुनावी प्रक्रिया में विवाद और आलोचना होना अभिन्न हिस्सा है, लेकिन इससे यह साबित नहीं होता कि लोकतंत्र कमजोर है। इसके बजाय, यह दिखाता है कि लोकतंत्र के मूल्यों का बखूबी समर्थन हो रहा है और राजनीतिक प्रक्रिया में सुधार की दिशा में प्रयास किया जा रहा है।
पश्चिमी देशों के चिंता व्यक्त करने और मोदी सरकार के कार्यकाल को समायोजित करने के बारे में वैष्णव और हैंकी के मतों के साथ सहमति दिखाता है कि भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के संदर्भ में सावधानी बरती जा रही है।
मोदी सरकार के चुनावी अभियान के दौरान इस्लामोफोबिक बयानबाज़ी के मामले में उच्चारित तथ्य और सामाजिक स्वाधीनता के मूल्यों को बनाए रखने की जरूरत है। इसके साथ ही, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के ध्यान में भारतीय लोकतंत्र के लोकतंत्रिक मूल्यों और संस्थानों की स्थिति पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। यह न केवल भारत के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि एक स्थिर और सुदृढ़ लोकतंत्र द्वारा भारत की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्थिति को भी मजबूत किया जा सकता है।
मोदी के नेतृत्व में भारत की आर्थिक और भू-राजनीतिक महाशक्ति के तौर पर उभरने की चर्चाओं में विश्वास करने वाले कई विश्लेषकों की यह धारणा है कि भारत की संपत्ति और विकास की गति अगले वर्षों में भी तेजी से बढ़ेगी। भारत की व्यापारिक संपत्ति, उसकी आबादी, और युवा जनसंख्या की सक्रियता भारत को विश्व की नजरों में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना रही हैं।
हालांकि, भारत को चीन के सामर्थ्य और संपत्ति के साथ तुलना करना अधिक उचित नहीं है, क्योंकि दोनों देशों के सामर्थ्य और आर्थिक संदर्भ अलग-अलग हैं। हालांकि, भारत के विकास में दिखाई जा रही मेहनत और उसकी सक्रिय युवा जनसंख्या ने विश्व की ध्यानाकर्षणीय धाराओं में ध्यान आकर्षित किया है। भारत को उसके आर्थिक और राजनीतिक विकास के पथ पर मजबूती से आगे बढ़ने के लिए उपयुक्त कदम उठाने की आवश्यकता है।
भारत के विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता के मामले में विचारशीलता और दिलचस्पी का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे देश की नीतियों में सुधार होता है और उसकी अपनी पहचान बनती है। पीएम मोदी की नेतृत्व में भारत की विदेश नीति को मजबूती से आगे बढ़ाने की उम्मीद है। इसके साथ ही, उन्हें अपने अंतर्राष्ट्रीय साथियों के साथ निरंतर संवाद और सहयोग के माध्यम से भारत के अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए काम करना होगा। यह संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थाई सीट के लिए भारत के प्रयासों के लिए आगे की चुनौती को देखते हुए मुश्किल हो सकता है, लेकिन इससे निराश नहीं होना चाहिए। भारत की मजबूत और आत्मनिर्भर विदेश नीति से, वह अंततः अपनी स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता को बढ़ा सकता है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."