दुर्गा प्रसाद शुक्ला की प्रस्तुति
बिहार और उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसे बलिया को बागी बलिया के नाम से भी जाना जाता है। इसे भृगु की धरती भी कहा जाता है।
बलिया, पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक भदेस जिला, जिसे अक्सर लोग बागी बलिया कहकर पुकारते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में पहली गोली चलाने वाले मंगल पांडेय से लेकर भारतीय राजनीति के युवा तुर्क चंद्रशेखर तक का नाम इसी बलिया जिले से जुड़ा है।
मगर आजादी की लड़ाई में बलिया ने वो कारनामा कर दिखाया है, जिसे सिर्फ भारतीय इतिहास में ही नहीं बल्कि ब्रिटिश हिस्ट्री में भी सुनहरे लफ्जों में दर्ज किया गया है। 1947 में भारत की आजादी से 5 साल पहले ही बलिया के लोगों ने खुद को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद करवा लिया था और वो भी बाकायदा सत्ता हस्तांतरण के जरिए।
बलिया जिले का अपना शानदार इतिहास रहा है। इस जिले का जब जिक्र होता है तो मंगल पांडे, चित्तु पांडे और चंद्रशेखर का नाम बरबस याद आता है।
इस जिले को दो बड़ी नदियां गंगा और घाघरा सिंचिंत करती हैं। यूं कहें तो भौगोलिक तौर पर यह इलाका खेती बाड़ी के लिए मशहूर रहा है। लेकिन उससे इतर यह जिला गंगा नदी की तरह शालीन तो घाघरा की प्रलयकारी लहरों की तरह सत्ता व्यवस्था के खिलाफ हिलोरे भी मारता है।
भारत की राजनीति में बलिया और चंद्रशेखर (Chandrasekhar) एक दूसरे का पर्याय थे। उन्होंने करीब तीन दशक तक संसद में बलिया ( Ballia Lok Sabha Constituency) का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन एक समय ऐसा भी रहा, जब बलिया ने चंद्रशेखर की बात नहीं मानी और उनकी अपील को अनसुना कर दिया। यह बात है साल 1991 की। वो उस समय भारत के प्रधानमंत्री पद पर विराजमान थे।
मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का विरोध
दरअसल बलिया के विकास का खांका खींचने के लिए चंद्रशेखर एक रैली में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और दो केंद्रीय मंत्रियों के साथ एक रैली में आए थे। इस रैली को संबोधित करने के लिए चंद्रशेखर ने मुलायम सिंह यादव को आवाज दी। यादव जैसे ही डाइस पर आए लोगों ने उन पर जूते-चप्पल और पत्थर फेंकने शुरू कर दिए और उन्हें काले झंडे दिखाए।
रैली में आए लोगों का यह व्यवहार देखकर मुलायम सिंह यादव हतप्रभ रह गए। वो इससे नाराज होकर मंच छोड़कर चले गए। चंद्रशेखर ने उन्हें मनाने की बहुत कोशिशें की, लेकिन मुलायम नहीं माने। वो रैली छोड़कर चले गए। इसके बाद चंद्रशेखर ने लोगों से यहां तक कह दी कि आपको लोगों के व्यवहार करना सीखना होगा।
इस घटना का जिक्र ‘इंडिया टु़डे’ पत्रिका के संवाददाता रहे फरजंद अहमद ने अपनी एक रिपोर्ट में किया है।
मुलायम सिंह यादव से क्यों नाराज थे लोग?
दरअसल रैली में आए लोग पिछड़ी जाति (ओबीसी) के लोगों को आरक्षण देने के लिए लागू की गई मंडल आयोग की सिफारिशों पर मुलामय सिंह यादव के स्टैंड से नाराज थे। सवर्ण जातियों की बहुलता वाले इस जिले में इस तरह का व्यहार कोई नई बात नहीं थी। मुलायम सिंह यादव से पहले खुद चंद्रशेखर भी इस राजनीति के शिकार हो चुके थे। इस घटना से कुछ महीने पहले ही एक यात्रा के दौरान आरक्षण विरोधी सवर्ण युवाओं ने चंद्रशेखर के साथ धक्का-मुक्की की थी और उनकी गाड़ी पर पथराव किया था।
यह वहीं चंद्रशेखर थे, जिनके प्रधानमंत्री बनने पर बलिया के लोगों ने दीवाली मनाई थी और सड़कों पर मिठाइयां बांटी थीं। लोगों को उम्मीद थी कि चंद्रशेखर के प्रधानमंत्री बनने के बाद बलिया का भी वैसे ही विकास होगा जैसा कि राजीव गांधी ने अमेठी में किया था। चंद्रशेखर विकास का खाका खींचने के लिए ही मुलायम सिंह यादव को बलिया लेकर आए थे।लेकिन उसके बाद जो हुआ वो इतिहास है।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."