मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
जिस समय जम्मू-कश्मीर में लोकसभा के लिए मतदान हो रहा था, उसी दौरान बारामूला में आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ चल रही थी। उसमें सुरक्षाबलों ने दो आतंकियों को मार गिराया, हालांकि दो सैनिक भी जख्मी हो गए। यह मुठभेड़ दो दिनों तक चली। सुरक्षाबलों को उस इलाके में आतंकियों के छिपे होने की सूचना मिली थी। गनीमत है कि चुनाव के दौरान किसी बड़ी साजिश को अंजाम देने से पहले आतंकियों को मार गिराया गया। बारामूला नियंत्रण रेखा पर स्थित जिला है। वहां सीमा पार से घुसपैठ कर आतंकियों के आने में पाकिस्तानी सेना का भी सहयोग मिलता है।
घुसपैठियों के सहयोग में पाकिस्तानी सेना भी करती है गोलीबारी
अनेक मौकों पर देखा गया है कि घुसपैठ कर आए आतंकियों की भारतीय सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ होती है, तो उधर से पाकिस्तानी सेना भी गोलीबारी शुरू कर देती है, ताकि उन्हें लक्षित स्थान तक पहुंचाया या फिर वापस लौटने में मदद की जा सके। मगर भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना और आतंकियों की ऐसी रणनीतियों से वाकिफ है और उन पर लगातार नजर बनाए रखती है। इस समय भारत में लोकसभा के चुनाव चल रहे हैं, जाहिर है वे आतंकी इसमें खलल डालने के इरादे से ही इधर आए थे।
भारतीय सेना की सक्रियता और तत्परता का ही नतीजा है कि सीमा पार से प्रशिक्षण पाए आतंकियों की घुसपैठ में काफी कमी आई है। यह भी उल्लेखनीय है कि चुनाव के इस माहौल में घाटी में आतंकी घटनाएं नहीं होने पाई हैं। जबसे जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हुआ है, अलगाववादी ताकतें स्थानीय लोगों को भड़काने और वहां उग्रवाद को तेज करने का प्रयास करती रही हैं। पाकिस्तान लगातार इसे जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता पर हमला करार देता रहा है। मगर अब वह पहले की तरह स्थानीय लोगों को भड़काने और बरगलाने में कामयाब नहीं हो पा रहा है।
लगातार तलाशी अभियान और सीमा पर कड़ी नजर रखी जाने से घुसपैठ कराने की उसकी योजनाएं सफल नहीं हो पातीं। पहले वह सड़क मार्ग से तिजारती सामान में हथियार वगैरह छिपा कर इस तरफ पहुंचाने में कामयाब हो जाता था, मगर जबसे तिजारत के रास्ते बंद हैं, वह ऐसा नहीं कर पाता। पंजाब के कुछ इलाकों में ड्रोन के जरिए हथियार, गोला-बारूद और पैसे गिराने की कोशिश करता है, पर वहां भी अत्याधुनिक निगरानी प्रणाली स्थापित हो जाने से उसे मुंह की खानी पड़ रही है। हालांकि सरकार का दावा है कि घाटी में आतंकी गतिविधियों पर काफी हद तक नकेल कसी जा चुकी है, पर अब भी स्थानीय लोगों में भरोसा पैदा होने का दावा करना मुश्किल है।
घाटी में पाकिस्तान की तरफ से आतंकवाद को मिल रहे समर्थन पर जरूर अंकुश लगा नजर आ रहा है, मगर स्थानीय युवाओं को दहशतगर्दी के रास्ते से अलग कर मुख्यधारा में शामिल करना अब भी चुनौती है। पिछले कुछ महीनों में शैक्षणिक संस्थानों में आतंकी तैयार करने वालों की पहचान होने, बाहरी लोगों को निशाना बना कर मारने और कई मौकों पर सुरक्षाबलों के काफिले पर हमला करने की घटनाओं से जाहिर है कि घाटी में आतंक की जड़ें अभी बनी हुई हैं और मौका पाकर कल्ले फोड़नी शुरू कर देती हैं। ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि स्थानीय युवाओं में हथियार उठाने की दर बढ़ी है। इसलिए ऐसी रणनीति पर गंभीरता से काम करने की दरकार महसूस की जाती है कि जिससे स्थानीय लोगों में शासन पर भरोसा कायम किया जा सके।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."