मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो गया। ऐसे में उत्तर प्रदेश की सियासत की बात करें तो गंगा-जमुनी की तहजीब की जमीं पर कई ऐसे नेता हुए हैं, जो अपने दम पर हवा का रुख मोड़ने की ताकत रखते थे।
यह ऐसे नेता थे, जिनकी अपनी जाति में तो पकड़ थी ही, बल्कि इनके एक इशारे पर यूपी की जनता का मूड चेंज हो जाता था।लेकिन यह अफसोस की बात है कि उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन से निकले और आसमां तक पहुंचने वाले कई चेहरे इस लोकसभा चुनाव में नहीं हैं। इनके नाम और काम पर वोट की फसल भले काटी जा रही है, लेकिन मतदाताओं को इनकी कमी खल रही।
यह चेहरे ऐसे थे जिन्हें देखने और सुनने के बाद मतदाता अपना इरादा तक बदल देते थे। ये नेता अब भले न हों, लेकिन इनके नाम से वोट का ग्राफ बदलता रहा है। जिनमें प्रमुख रूप से सपा संस्थापक मुलायम सिंह, भाजपा के दिग्गज नेता कल्याण सिंह, लालजी टंडन, रालोद के दिग्गज नेता अजित सिंह जैसे तमाम नेता।
यह दिग्गज सियासी हवा का रुख मोड़ने का माद्दा रखते थे। यही वजह है कि चुनाव मैदान में उतरने वाले उम्मीदवार इनके नाम, काम और अरमान के जरिए सियासी फसल लहलहाने की कोशिश दिख रहे हैं। हालांकि उनकी अनुपस्थिति में यह सब कितना कारगर होगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इन नेताओं के चाहने वाले आज भी हैं। इनके चाहने वाले बैनर, पोस्टर और सोशल मीडिया पर इनकी तस्वीरों के साथ आपको नजर आ जाएंगे।
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव
सियासी अखाड़े के बड़े खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश की सियासत में करीब पांच दशक तक अपनी छाप छोड़ी। मरणोपरांत पद्म विभूषण सम्मान दिया गया। उन्होंने अपने पहले चुनाव में आप मुझे एक वोट और एक नोट दें, अगर विधायक बना तो सूद समेत लौटाऊंगा का नारा दिया। मुख्यमंत्री से लेकर रक्षामंत्री तक बने। सपा ही नहीं सत्तासीन भाजपा के नेता भी उनकी सियासी दांवपेच के मुरीद रहे।
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह
भाजपा के लिए पिछड़ी जातियों की गोलबंदी की। सोशल इंजीनियरिंग के माहिर खिलाड़ी कल्याण सिंह ने मंडल बनाम कमंडल के दौर में तीन फीसदी लोध जाति को गोलबंद कर नए तरीके का माहौल तैयार किया। इसके बाद अन्य पिछड़ी जातियों को जोड़ने का अभियान चला। वह राम मंदिर आंदोलन के नायक के रूप में उभरे। भाजपा के साथ पिछड़ी जातियों को गोलबंद कर सियासत की ठोस बुनियाद तैयार की।
चौधरी अजीत सिंह
अजित सिंह सीएम की कुर्सी से चंद कदम दूर रह गए थे। वो बीपी सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर मनमोहन सरकार तक में केंद्रीय मंत्री रहे। वर्ष 1989 के चुनाव के बाद वीपी सिंह ने अजित सिंह को सीएम बनाने का ऐलान किया तो मुलायम सिंह ने भी दावेदारी कर दी। विधायक दल की बैठक में महज पांच वोट से अजित सिंह हार गए और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने।
अमर सिंह
इस नेता का यूपी की सियासत में बड़ा दखल रहा। 90 के दशक में सियासत में सक्रिय हुए अमर सिंह सपा के महासचिव बने और फिर 1996 में राज्यसभा सदस्य बन गए। उनका यूपी की सियासत में अच्छा दखल रहा। छह जनवरी 2010 को अमर सिंह ने सपा से इस्तीफा दे दिया। साल 2011 में कुछ समय न्यायिक हिरासत में रहे और राजनीति से संन्यास ले लिया।
केशरीनाथ त्रिपाठी
अधिवक्ता से विधानसभा अध्यक्ष और फिर राज्यपाल की भूमिका निभाते हुए तमाम कड़े फैसलों के लिए पहचाने जाने वाले केशरीनाथ त्रिपाठी भी इस चुनाव में नहीं दिखे। करीब 88 साल की उम्र में आठ जनवरी 2023 को उनका निधन हो गया।
सुखदेव राजभर
सुखदेव राजभर कांशीराम के साथ बसपा की नींव रखने वालों में शामिल रहे। मुलायम सरकार में सहकारिता राज्य मंत्री की जिम्मेदारी निभाई। वहीं मायावती सरकार में संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका निभाई।
लालजी टंडन
लालजी टंडन ने वर्ष 1960 में पार्षद से सियासी सफर की शुरुआत की और राज्यपाल तक पहुंचे। विधान परिषद सदस्य, विधायक, मंत्री, सांसद, राज्यपाल तक उन्होंने काफी लंबी सियासी पारी खेली। लखनऊ की रग-रग से वाकिफ थे।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."