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November 22, 2024 4:44 pm

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इस लोकसभा सीट पर दो बार से है बीजेपी का कब्जा, जानिए इस बार कैसा है माहौल

12 पाठकों ने अब तक पढा

सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट

देवरिया को महान संत देवरहा बाबा की धरती के नाम से भी जाना जाता है…देवरिया नाम की उत्पत्ति ‘देवारण्य’ या ‘देवपुरिया’ से हुई थी…इसी के नाम पर इसका नाम देवरिया पड़ा…. 

बिहार राज्य से सीमा साझा करने वाली देवरिया संसदीय सीट का इतिहास देश के पहले लोकसभा चुनाव 1952 से शुरू होता है। इस चुनाव में विश्वनाथ राय सांसद चुने गए थे। विश्वनाथ राय 4 बार देवरिया से सांसद बने। 1957 में हुए चुनाव में पीएसपी के रामजी वर्मा पर जनता ने भरोसा जताया और यहां से चुनकर संसद भेजा। लेकिन अगले चुनाव 1962 में विश्वनाथ राय दुबारा यहां से सांसद बने। 

फिर 1967 में तीसरी और 1971 में चौथी बार यहां से उन्होंने सांसद बनने का तमगा हासिल किया। इसके बाद 1977 में भारतीय लोकदल से उग्रसेन यहां से सांसद बने। जबकि 1981 के चुनाव में कांग्रेस रामायण राम यहां से सांसद चुने गए। वहीं 1984 के चुनाव में जनता ने फिर से कांग्रेस प्रत्याशी राजमंगल पांडेय पर भरोसा जताया और यहां से चुनकर संसद भेजा लेकिन अगले चुनाव 1989 में राजमंगल पांडेय जनता दल से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे। 1991 के चुनाव में जनता दल ने अपना उम्मीदवार मोहन सिंह को बनाया और मोहन सिंह चुनाव जीत गए। वहीं पहली बार देवरिया संसदीय सीट पर बीजेपी का खाता 1996 में खुला और श्री प्रकाश मणि सांसद बने।

1998 के चुनाव में मोहन सिंह सपा में शामिल हो गए और यहां से चुनाव जीता। 1999 के चुनाव में श्री प्रकाश मणि दुबारा जीते। 2004 के चुनाव में मोहन सिंह सपा के बैनर तले फिर चुनाव जीत गए। 2009 के चुनाव में यहां से बसपा का खाता खुला और गोरख प्रसाद जायसवाल सांसद बने। वहीं 2014 में मोदी लहर के चलते यहां से बीजेपी के दिग्गज नेता कलराज मिश्रा चुनाव जीते और संसद पहुंचे। जबकि 2019 में बीजेपी ने कलराज मिश्र का टिकट काटकर रमापति राम त्रिपाठी  पर भरोसा जताया और वह जीतकर संसद पहुंचे। 

इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा सीटें आती हैं….जिसमें देवरिया, तमकुहीराज, फाजिलनगर, पथरदेवा और रामपुर कारखाना शामिल है। जिसमें तमकुही राज और फाजिलनगर विधानसभा सीटें कुशीनगर जिले में आती है। 

2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सभी पार्टियों का सूपड़ा साफ करते हुए पांचों सीटों पर जीत दर्ज की थी। 

2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में देवरिया सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 17 लाख 54 हजार 195 है। जिसमें  पुरुष मतदाताओं की संख्या 7 लाख 96 हजार 646 है। जबकि महिला वोटरों की संख्या 9 लाख 57 हजार 453 है। वहीं ट्रांसजेंडर वोटरों की संख्या 96  है। 

अब एक नजर पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों पर डालें तो साल 2019 में इस सीट पर बीजेपी के रमापति राम त्रिपाठी  ने 5 लाख 80 हजार 644 वोटों के साथ जीत हासिल की थी वहीं बसपा के विनोद कुमार जयसवाल 3 लाख 30 हजार 713 वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे जबकि कांग्रेस के नियाज अहमद खान को 51 हजार 56 वोट मिले थे और उनको तीसरे स्थान पर रहना पड़ा था। 

अब एक नजर 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर डालें तो साल 2014 में बीजेपी के कलराज मिश्र ने यहां से चुनाव जीता था। इस चुनाव में कलराज मिश्र को कुल 4 लाख 96 हज़ार 500 वोट मिले थे..वहीं दूसरे नंबर पर बसपा के निय़ाज अहमद रहे जिन्हें कुल 2 लाख 31 हज़ार 114 वोट मिले जबकि तीसरे नंबर पर सपा से बलेश्वर यादव रहे। बलेश्वर यादव को कुल 1 लाख 50 हजार 852 वोट मिले। 

साल 2009 की बात करें तो बसपा के गोरख प्रसाद जायसवाल ने 2 लाख 19 हज़ार 889 वोट से जीत हासिल की थी। वहीं दूसरे नंबर पर बीजेपी के श्री प्रकाश मणि रहे मणि को कुल 1 लाख  78 हज़ार 110 वोट मिले जबकि तीसरे नंबर पर सपा के मोहन सिंह रहे मोहन सिंह को कुल 1 लाख 51 हज़ार 389 वोट मिले। 

अब अगर बात साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव की करें तो देवरिया संसदीय सीट पर सपा के मोहन सिंह ने जीत का परचम लहराया था। मोहन सिंह को कुल 2 लाख 37 हज़ार 664 वोट मिले थे वहीं बीजेपी के प्रकाश मणि दूसरे नंबर पर रहे। मणि को इस चुनाव में कुल 1 लाख 85 हज़ार 438 वोट मिले जबकि तीसरे नंबर पर बसपा के देवी प्रसाद रहे। देवी प्रसाद को कुल 1 लाख 32 हज़ार 497 वोट मिले। 

देवरिया लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश की सीट नंबर 66 है। बिहार से लगा पूर्वी यूपी का जिला देवरिया आजादी से पहले ही गोरखपुर से अलग हुआ था बाद में देवरिया से कुशीनगर अलग जिला बन गया। यह क्षेत्र ब्राह्मण बेल्ट माना जाता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार देवरिया लोकसभा सीट पर 27 फीसदी ब्राह्मण और 14 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग है जबकि 12 फीसदी मुस्लिम मतदाता भी है। वहीं कुर्मी-क्षत्रिय, कायस्थ और राजभर भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं। अब अगर बात 2024 के लोकसभा चुनावों की करें तो इस बार भी बाहरी और स्थानीयता का मुद्दा हावी होता नजर आ रहा है। बहरहाल कांग्रेस ने पूर्व विधायक एवं पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह को मैदान में उतारा है। वहीं भाजपा में प्रत्याशी को लेकर अब भी कशमकश वाली स्थिति है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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