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November 1, 2024 8:07 pm

ऊहापोह की स्थिति बनी है वरुण गाँधी की उम्मीदवारी को लेकर, आइए जानते हैं वर्तमान परिवेश का गणित

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश की पीलीभीत लोकसभा सीट पर बीजेपी किसे टिकट देगी, इसे लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म है। 

इस सीट से मौजूदा सांसद गांधी-नेहरू परिवार के वरुण गांधी हैं। कहा जा रहा है कि इस बार बीजेपी उन्हें टिकट देने के मूड में नहीं है। पूरे 10 साल तक वरुण गांधी को न तो मोदी सरकार में कोई ज़िम्मेदारी मिली और न ही संगठन में। 

वह अपने लोकसभा क्षेत्र से बाहर अदृश्य रहे। हालांकि इस दौरान वह अख़बारों में लेख लिखते रहे और मोदी सरकार की आलोचना से भी बाज नहीं आए। 

कई बार प्रदेश की योगी सरकार पर तंज़ किया तो कई बार मोदी सरकार पर चुटकी ली। 

ऐसे में पहले से ही कहा जा रहा था कि वरुण गांधी बीजेपी में अपना सियासी भविष्य नहीं देख रहे हैं और बीजेपी भी वरुण गांधी को लेकर बहुत सकारात्मक नहीं है। 

अब जब 2024 का आम चुनाव कुछ हफ़्ते में होने जा रहा है, ऐसे में वरुण को पीलीभीत से टिकट मिलेगा या नहीं, इसकी चर्चा गर्म है। 

पत्रकार हर्ष तिवारी ने ट्विटर पर वरुण गांधी को लेकर लिखा है, ”उत्तर प्रदेश बीजेपी के विरोध के कारण यह लगभग तय है कि वरुण गांधी को पार्टी टिकट नहीं देगी। वरुण गांधी ने चार नामांकन पत्र ख़रीदे हैं और उसके बाद से अटकलें तेज़ थीं कि वह समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ सकते हैं लेकिन समाजवादी पार्टी ने भी उम्मीदवार की घोषणा कर दी है।”

”ऐसे में वरुण गांधी का टिकट कटता है तो उनके पास निर्दलीय चुनाव लड़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उनके लिए चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। अगर वरुण कांग्रेस जॉइन करते हैं तो पीलीभीत सीट कांग्रेस के पास आएगी या फिर वह रायबरेली या अमेठी से उम्मीदवार बनाए जाएंगे? अंतिम फ़ैसला वरुण गांधी को ही लेना है।”

पीलीभीत से वरुण गांधी को लेकर कयास

उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होने हैं। यहां पहले चरण में 19 अप्रैल 2024 को आठ सीटों पर मतदान होना है। इनमें पीलीभीत एक है। 

लेकिन अब तक इस सीट पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है। 

बीजेपी ने अपनी पहली लिस्ट में यूपी की 51 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की थी। वहीं पार्टी की दूसरी लिस्ट में यूपी की एक भी सीट से उम्मीदवारों के नाम की घोषणा नहीं की गई थी। 

पहले चरण में आने वाली सीटों पर नामांकन शुरू हो चुका है और इसकी आख़िरी तारीख 27 मार्च है, ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी जल्द ही अपनी तीसरी लिस्ट जारी कर सकती है। 

हालांकि इस लिस्ट के बारे में कहा जा रहा है कि इसमें कई बड़े चेहरों का टिकट कट सकता है। 

यूपी की बाक़ी बची सीटों पर संभावित उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा करने के लिए सोमवार देर रात तक बीजेपी की कोर कमिटी की बैठक हुई थी। 

इंडिया टुडे के अनुसार, यूपी बीजेपी के नेता पीलीभीत से वरुण गांधी को टिकट देने का विरोध कर रहे हैं। 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पीलीभीत से वरुण गांधी की जगह पीडब्ल्यूडी मंत्री जितिन प्रसाद का नाम चर्चा में है। 

ऐसे में चर्चा गर्म थी कि अगर वरुण गांधी को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो वो या तो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर या फिर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ सकते हैं। 

सपा में जाने की अटकलों पर लगा विराम

इस बीच ये भी कहा जा रहा था कि वरुण गांधी समाजवादी पार्टी से हाथ मिला सकते हैं और सपा के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं। 

लेकिन सपा ने पीलीभीत से भगवत शरण गंगवार को टिकट देकर इन कयायों पर विराम लगा दिया है। 

गंगवार बरेली के नवाबगंज से पांच बार विधायक रह चुके हैं, वो 2019 के लोकसभा चुनावों में बरेली से समाजवादी पार्टी से टिकट पर उतरे थे। 

इन सब कयासों के बीच वरुण गांधी के प्रवक्ता मोहम्मद रिज़वान मलिक ने बुधवार को कहा है कि बीजेपी एक बार फिर वरुण गांधी पर दांव लगा सकती है। 

मीडिया में इस तरह के दावे भी किए जा रहे हैं कि वरुण गांधी के प्रतिनिधि ने बुधवार को पीलीभीत से चार नामांकन पत्र ख़रीदे हैं। 

इस मामले में उनके प्रवक्ता ने भी साफ़ किया है कि वरुण गांधी के कहने पर उन्होंने चार नामांकन पत्र ख़रीदे हैं, जिनमें दो हिंदी में और दो अंग्रेज़ी में हैं। 

उन्होंन इस सीट पर उम्मीदवारी को लेकर कयासों पर लगाम लगाने की कोशिश में कहा कि “इस सीट से गांधी ही उम्मीदवार होंगे।”

पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र और गांधी परिवार

1989 में पहली बार पीलीभीत लोकसभा चुनाव क्षेत्र से जनता दल के टिकट पर मेनका गांधी ने चुनाव जीता। इसके बाद के चुनाव में ये सीट बीजेपी के खाते में गई। 

1996 में मेनका गांधी ने एक बार फिर जनता दल के टिकट पर और फिर 1998 और 1999 के चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरी थीं। 1999 में उन्हें बड़े अंतर से जीत मिली। 

2004 में वो बीजेपी के टिकट पर यहां से खड़ी हुईं। उन्हें एक बार फिर जीत मिली लेकिन समाजवादी पार्टी के संतोष गंगवार ने उन्हें कड़ी चुनौती दी। 

जहां 1999 में मेनका गांधी को 57.94 फीसदी वोट मिला, वहीं 2004 में ये मत प्रतिशत कम होकर 37.75 तक आ गया। वहीं सपा ने 1999 के चुनावों में 7.8 मत प्रतिशत से बढ़कर 2004 में 22.58 फीसदी वोट अपने नाम किया। 

2009 में यहां वरुण गांधी बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर उतरे और बीजेपी के हिस्से में आने वाले मत प्रतिशत को बढ़ाकर वो 50 फीसदी तक लेकर गए। 

2014 में एक बार फिर मेनका गांधी ने यहां से चुनाव जीता (वरुण गांधी ने सुल्तानपुर से चुनाव लड़ा)। इस बार भी बीजेपी के वोट शेयर में मामूली बढ़त दर्ज की गई। 

इसके बाद 2019 में बड़ी बढ़त (59 फीलदी मत प्रतिशत) के साथ वरुण गांधी ने बीजेपी के टिकट पर यहां से चुनाव जीता, वहीं मेनका ने सुल्तानपुर से चुनाव जीता। 

मोदी-शाह की बीजेपी में अलग-थलग पड़े वरुण?

जब बीजेपी में नरेंद्र मोदी को पीएम प्रत्याशी बनाने के लिए उठापटक जारी थी तब वरुण ने राजनाथ की तुलना अटल से करते हुए पीएम उम्मीदवार बनाने की वकालत की थी। 

वरुण ने एक मई, 2013 को कहा था, ”वाजपेयी की सोच बहुत अच्छी थी। उनका शासनकाल देश के हर बच्चे को याद है। मैं पूरे भरोसे के साथ कह सकता हूं कि आज की तारीख़ में देश में कोई व्यक्ति जाति और मजहब की दीवार तोड़कर लोगों को साथ ला सकता है तो वह आदरणीय राजनाथ सिंह हैं।”

यह बात वरुण ने राजनाथ सिंह की मौजूदगी में बरेली के पास एक जनसभा में कही थी। बीजेपी की कमान जब अमित शाह के हाथ में आई तो उन्होंने वरुण गांधी को पार्टी महासचिव से हटा दिया। उनसे बंगाल की भी जिम्मेदारी वापस ले ली गई। 

कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में छह फरवरी, 2014 को मोदी ने रैली की थी। मोदी की रैली के बाद इस बात की चर्चा हो रही थी कि भारी संख्या में लोग मोदी को सुनने पहुंचे थे। 

लेकिन उस वक्त वरुण ने मीडिया से बातचीत में कहा था, ”मीडिया के पास ग़लत आंकड़ा है। यह सच नहीं है कि रैली में दो लाख से ज़्यादा लोग आए थे। रैली में 45 से 50 हज़ार के बीच लोग आए थे।”

अगस्त, 2014 में अमित शाह ने अपनी नई टीम की घोषणा की और वरुण गांधी को पार्टी महासचिव पद से हटा दिया गया। आज की तारीख़ में वरुण गांधी 37 साल के हैं लेकिन पार्टी में उनकी हैसियत गुमनाम सी हो गई है। 

बीते कुछ वक्त से वरुण गांधी बीजेपी के ख़िलाफ़ बयान देते रहे हैं। 

बीजेपी से उनकी नाराज़गी और पार्टी और उनकी बीच बढ़ी दूरी का संकेत बीते साल उस वक्त मिला जब अमेठी के संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया। 

अस्पताल में इलाज के लिए पहुंची एक महिला की मौत के लिए परिवार ने ग़लत इलाज को वजह बताया था जिसके बाद यूपी सरकार ने अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया। 

सरकार के इस फ़ैसले की आलोचना करने वालों में वरुण गांधी भी शामिल थे। उन्होंने तंज कसते हुए लिखा, “कहीं ‘नाम’ के प्रति नाराज़गी लाखों का काम न बिगाड़ दे।”

इससे पहले बीते साल उनका एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ था जिसमें एक कार्यक्रम में वरुण गांधी कार्यकर्ताओं के एक साधु को टोकने पर उनसे कहते हैं, “अरे, उन्हें टोको मत, क्या पता कब महाराज सीएम बन जाएँ।”

इसके बाद वो कार्यकर्ताओं से कहते हैं, “आप बिल्कुल इनके साथ ऐसा मत करो, कल को मुख्यमंत्री बन जाएँगे तो हमारा क्या होगा। समय की गति को समझा करो।”

उनके इस बयान को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर तंज के तौर पर देखा गया। 

बीते साल यूपी सरकार की आबकारी नीति में 50 हज़ार करोड़ से अधिक राजस्व हासिल करने के लक्ष्य को लेकर सवाल खड़े किए थे। 

उन्होंने पूछा था, “करोड़ों परिवार उजाड़ने वाली शराब का ‘राजस्व वृद्धि’ के लिए प्रचार किया जाना दुखद है। क्या ‘रामराज्य’ में सरकार के पास राजस्व बढ़ाने के लिए इससे बेहतर विकल्प नहीं है?”

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."