मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
देश में आम चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं रह गए हैं। ऐसे में चुनाव आयोग को पूरी तरह तैयार करने की अनिवार्यता को समझा जा सकता है। मगर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति जिस तरह एक औपचारिक रिवायत की तरह पूरी भर कर ली जाती है, उसमें इस संस्था को लेकर कई बार नाहक एक भ्रम पैदा हो जाता है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित समिति ने दो नए चुनाव आयुक्तों के नाम तय कर दिए हैं। इसके तहत ज्ञानेश कुमार और बलविंदर संधू नए चुनाव आयुक्त होंगे। गौरतलब है कि एक चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे फरवरी में सेवानिवृत्त हो गए थे और दूसरे अरुण गोयल ने हाल ही में अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
नए कानून के तहत यह पहली नियुक्ति है, पहले सरकारें करती थीं सिफारिश
नियमों के मुताबिक चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त के अलावा दो चुनाव आयुक्त होते हैं। कहा जा सकता है कि नए कानून के तहत ये पहली नियुक्तियां होंगी। इससे पहले सरकार की सिफारिश के मुताबिक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति होती थी।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुचारु रूप से संचालित करने के लिहाज से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक जरूरी कदम है। मगर इस क्रम में पिछले कुछ समय से जिस तरह के विवाद उठते रहे हैं, उससे देश की इस सबसे भरोसेमंद मानी जाने वाली संस्था की कार्यप्रणाली को लेकर कुछ आशंकाएं उभरी हैं।
अधीर रंजन चौधरी का आरोप- एक रात पहले दी गई 212 नामों की सूची
इस बार भी दो चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने सवाल उठाए और आरोप लगाया कि सिर्फ एक रात पहले उन्हें दो सौ बारह नामों की सूची दी गई। फिर इससे संबंधित बैठक शुरू होने के महज दस मिनट पहले सरकार की ओर से उनके पास छह नाम भेजे गए; इतने कम समय में सूचीबद्ध किए गए लोगों की ईमानदारी और तजुर्बे की जांच करना असंभव है। उन्होंने इस प्रक्रिया का विरोध करते हुए समिति में प्रधान न्यायाधीश को भी रखने की बात कही।
अगर विपक्ष के नेता का आरोप सही है तो इसका मतलब यह है कि सरकार की ओर से शायद चुने गए नामों को लेकर आखिरी समय तक भ्रम की स्थिति बनाए रखने की कोशिश हुई। सवाल है कि देश में लोकतंत्र को जमीन पर उतारने का बड़ा दायित्व संभालने वाली जिस संस्था का गठन पूरी तरह पारदर्शी होना चाहिए, उसे लेकर किसी भी स्तर पर पर्दादारी क्यों बरती जाती है!
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर पहले भी सरकार की मंशा पर सवाल उठे हैं। जरूरत इस बात की है कि आयुक्तों के नामों को सूचीबद्ध करने, उनके चयन से लेकर नियुक्ति तक के मामले में समूची प्रक्रिया सरकार पारदर्शी तरीके से पूरी कराए।
अगर किसी भी पक्ष की ओर से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मसले पर वाजिब तर्कों के साथ सवाल उठाए जाते हैं, तो इससे आयोग की विश्वसनीयता कमजोर होगी।
यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि आम जनता और मतदाताओं के बीच आयोग के सदस्यों के कामकाज को लेकर कोई भ्रम न पैदा हो। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और उसकी कार्यपद्धति पर बहुत कुछ निर्भर करता है, जिससे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का जीवन कायम रह सके।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."