– वल्लभ लखेश्री
8 मार्च का दिन सारे विश्व की मातृशक्ति के लिए संघर्ष, हक और सम्मान का प्रतीक है।8 मार्च 1908 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत न्यूयॉर्क से हुई ।इसके पश्चात इसी दिन 1909 फिर 1913 को अमेरिका में प्रथम महिला सम्मेलन हुआ । इसी दिन 1910 और 1911 में जर्मन में महिला सम्मेलन मनाएं गए ।
यदि हम इतिहास के पन्ने उलट कर उस वक्त के झरोखों से देखें तो इसी दिन 1702 को एनीस्टुर्अट इंग्लैंड, स्कॉटलैंड एवं आयरलैंड की रानी बनी। इसी दिन 1857 में न्यूयॉर्क में महिला श्रमिकों ने सड़कों पर उतरकर क्रांति का बिगुल बजाकर विरोध प्रदर्शन किया ।
परिणाम स्वरूप 8 मार्च 1975 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया । साथ ही संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित किया।
अर्थात 8 मार्च को ही विश्व पटल पर महिलाओं के संघर्ष ,शौर्य ,हक और सम्मान को लेकर अनेक घटनाएं घटी जो हमेशा हमेशा के लिए मानव समाज के लिए प्रेरणा स्रोत एवं संदेशवाहक बन गयी ।महिलाओं को पुरुषों के बराबर सम्मान देने और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने उनका हौसला अफजाई करना ही इस दिन को मनाने का मुख्य लक्ष्य है।
इस प्रकार 8 मार्च की तारीख अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विश्व की महिलाओं के सामाजिक,आर्थिक सांस्कृतिक और राजनीतिक उपलब्धियां का जश्न मनाने वाला एक वैश्विक दिवस है।
आज दुनिया बदलने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मायने भी बदलने लगे हैं। अब संघर्ष का स्थान प्रतिस्पर्धा ने ले लिया है ।आज की जमाने में शैक्षणिक, सामाजिक ,राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र की बदलती तस्वीर दुनिया के सामने है ।
यदि भारतीय परिवेश में भी देखा जाए तो सैकड़ों ख्याति प्राप्त महिलाओं की कतार बहुत लंबी है। जो देश एवं दुनिया में कुशल प्रशासक, श्रेष्ठ कला धर्मी ,उत्कृष्ट लेखन, चिकित्सा, शिक्षा, खेल जगत , अन्तरिक्ष विज्ञान तथा राजनीतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में अपना बुलंद परचम लहरा रही है ।जो केवल साधुवाद की पात्र ही नहीं बल्कि गौरव, सम्मान और प्रतिष्ठा की प्रतीक भी है। इस बात में कहीं अतिशयोक्ति नहीं है कि आज की लड़कियां हर सोपानों पर लड़कों से बेहतर है । उनके बढ़ते कदम किसी भी प्रतिकूल परिस्थितियों के मोहताज नहीं है। यह सुकून भरा शुभ संकेत है जो महिला दिवस की सार्थकता को विशुद्ध रूप से सिद्ध करता है। इस अंतर्राष्ट्रीय महिला पर्व पर ये पंक्तियां इसकी प्रासंगिकता में और भी चार चांद लगा देती है –
नारी तुम प्रेम हो, आस्था हो, विश्वास हो।
टूटी हुई उम्मीद की एक मात्र आस हो।
हर जन का तुम ही तो आधार हो। नफरत की दुनिया में मात्र तुम ही प्यार हो।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."