(बसंत ऋतु का एक ऐसा मौसम है, जो नए सिरे से शुरुआत करने का प्रतीक है। इसलिए बसंत को ऋतुओं का राजा माना गया है। इन दिनों पूरी धरती एक अलग ही रंग में होती है। इस खास ऋतू में प्रकृति का सौंदर्य अच्छा देखने को मिलता है।
बसंत पंचमी के दिन पृथ्वी की अग्नि सृजनता की ओर अपनी दिशा करती है। यही वजह है कि ठंड में मुरझाए हुए पेड़-पौधे, फूल आंतरिक अग्नि को प्रज्ज्वलित कर नए सृजन की तरफ बढ़ते हैं। साथ ही खेतों में फसल वातावरण को खुशनुमा बना देती है। जानकारी के लिए बता दें कि बसंत ऋतू में पतझड़ की वजह से पेड़-पौधों पर नई कली खिलकर पुष्प बन जाती है। बसंत का मौसम सर्दियों के जाने का और गर्मियों के आने का संकेत देता है।
मादकता और उन्माद का प्रतीक माना जाता है बसंत को। कवियों के शब्द थिरकने लगते हैं तो विरह वेदना को झेल रही प्रियतमा की भावनाओं से ओतप्रोत साहित्य की भावनाओं को भी अंगड़ाई लेने का अवसर मिल जाता है।
अपनी भावनाओं को लेकर काफी संजीदा रहे कवि वल्लभ भाई लखेश्री के शब्दों का जादुई कमाल भी देखिए… पढिए… और गुनिए… . -संपादक)
वल्लभ लखेश्री
महकी फुलवारी की बगिया
भ्रमर गुनगुना रहा है ।
दामन में भर खुशबू सारी,
बसंत आ रहा है।
ले घटाओं की बारात ,
बदरा आ रहा है ।
करने लगी श्रृंगार धरा ,
बसंत आ रहा हैं ।
सागर से झांकी कमलिनी ,
सारस मचल रहा है।
चुमकर घटाओं का आंचल ,
बसंत आ रहा है ।
लताओं ने ली अंगड़ाई,
हर कलि में यौवन छा रहा है।
सजाई मांग गुलाबो ने ,
बसंत आ रहा है ।
कूक उठी कोकिला मतवाली,
पीऊ पीऊ पपैया गा रहा है ।
बावरा पंछी डोले बन बन,
बसंत आ रहा है।
देख धारा का स्नेह इजहार,
आकुलित अंबर आ रहा है ।
लगी रिमझिम की बौछार,
बसंत आ रहा है।
मिलन की सहनाइ संग,
विरह पीर ला रहा है।
मधुमास ऋतु राज,
बसंत आ रहा है।
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Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."