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November 22, 2024 9:10 am

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“बाइक वाली दीदी” की ये कहानी पढ़कर आप भी उन्हें सलाम करना चाहेंगे

14 पाठकों ने अब तक पढा

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

अगर हालात मुश्किल हों, तो अबला कही जाने वाली महिला भी सबला बन सकती है। कुछ ऐसा ही कर रही हैं गाजियाबाद में बाइक दीदी के नाम से मशहूर पूनम कश्यप। पूनम के पति बोन टीबी के चलते बिस्तर पर आ गए, तो उन्होंने अपने पांवों पर खड़े होने की ठानी।

पति की मदद से उन्होंने हाथों में औजार उठा लिए और बाइक, स्कूटी ठीक करने लगी। आज शायद ही किसी कंपनी की बाइक होगी, जिसे पूनम ठीक करके सड़क पर दौड़ने लायक ना बना देती हों। ऐसा करके वह ना सिर्फ अपनी बेटियों को पढ़ा रही हैं, बल्कि पति के इलाज के लिए मुश्किल दिनों में लिए गए कर्ज को भी उतार रही हैं।

पूनम कहती है कि अगर हिम्मत, लगन और परिवार का साथ मिले, तो महिलाएं भी मुश्किलों का सामना कर सकती हैं।

कम पढ़ाई के चलते नहीं मिली नौकरी

पूनम बताती हैं कि उनकी शादी 2010 में एक बाइक शोरूम में मैकेनिकल विभाग में काम करने वाले राजेश से हुई थी। 2018 में उनके पति के हाथों में दर्द रहने लगा। डॉक्टर ने उन्हें लंबे समय तक काम करने से परहेज बता दिया। पूनम के पति की नौकरी चली गई।

करीब एक साल तक पूनम जमा पूंजी से घर चलाती रहीं, लेकिन फिर उन्होंने खुद कुछ करने की ठानी। इंटरमीडिएट तक पढ़ी पूनम ने नौकरी की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। उन्होंने पति से पूछा कि क्या मैं कुछ ऐसा काम कर सकती हूं, जिससे घर चल सके।

उन्होंने पति से कहा कि क्यों ना हम बाइक ठीक करने का काम शुरू करें। आप मुझे बताते रहना और मैं बाइक को ठीक करूंगी। पहले पति तैयार नहीं हुए, लेकिन कुछ दिन बाद उन्होंने हामी भर दी। उनके पास पैसा नहीं था, इसलिए कुछ लोगों की आर्थिक मदद से पूनम एक ठेले पर औजार लेकर बौंझा कट जीटी रोड किनारे बैठ गई।

धीरे-धीरे आसपास के लोग बाइक ठीक कराने आने लगे, तो उनका काम चल निकला। पहले पति की मदद से बाइक सुधारने वाली पूनम अब खुद एक्सपर्ट हैं। अब लोगों ने नाम भी बाइक दीदी ही रख दिया।

रिक्शा जला तो डीएम ने की मदद

पूनम बताती हैं कि मार्च 2023 में एक रात को अपना रिक्शा रोड पर खड़ी करके आई थी। लेकिन रात में किसी ने उसमें आग लगा दी। इसके चलते उनका सारा सामान चल गया। अब एक बार फिर से उनके सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा हो गया।

यह खबर मीडिया में आने के बाद डीएम गाजियाबाद ने पूनम की आर्थिक मदद की और नगर निगम से उनको खोखा दिलवा दिया। उसके बाद से वह फिर से अपनी दुकान चलाने लगीं। हालांकि अभी उनका ब्याज पर लिया गया कर्ज बाकी है, लेकिन उन्हें पूरा विश्वास है की दुख के बादल पूरी तरह से हटेंगे।

उनका कहना है कि मेरी बस एक ही इच्छा है कि मैं अपनी दोनों बेटियों बड़ी खुशी (10)और छोटी प्रीति(4) को पढ़ा सकूं। खुशी जहां डॉक्टर बनना चाहती है, वहीं प्रीति फौजी बनकर देश की सेवा करना चाहती है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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