Explore

Search
Close this search box.

Search

November 21, 2024 6:50 pm

लेटेस्ट न्यूज़

ना-ना करते बात तो बन गई मगर इससे बड़ा फायदा कौन उठाएगा? कांग्रेस – सपा या बीजेपी? 

13 पाठकों ने अब तक पढा

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

सपा के साथ गठबंधन का ऐलान करते समय कांग्रेस के यूपी प्रभारी अविनाश पांडे ने डेढ़ महीने की मंथन की प्रक्रिया और लंबी मशक्कत का उल्लेख किया। सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने इसे ‘बहुप्रतीक्षित’ कहा। नेताओं की यह ‘स्वीकारोक्ति’ बताती है कि गठबंधन की गाड़ी को पटरी पर आने के पहले कितने हिचकोले खाने पड़े। 

मंगलवार शाम तक गठबंधन बनने से पहले ही बिखरता नजर आ रहा था, लेकिन बुधवार सुबह इसकी तस्वीर ऐसी बदली की ना-ना करते बात बन गई।

सपा मुखिया अखिलेश यादव को मंगलवार को रायबरेली में राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल होना था। उसके एक दिन पहले उन्होंने सीटों का बंटवारा तय करने की शर्त रख दी। 

सपा की ओर से 17 सीटों का प्रस्ताव भेजा गया। इसमें कुछ सीटों पर कांग्रेस सहमत नहीं थी। सपा हाथरस की जगह सीतापुर चाहती थी। इसके अलावा खीरी और मुरादाबाद सीट पर भी उसका दावा था। मंगलवार को हल नहीं निकला तो अखिलेश ने रायबरेली और लखनऊ पहुंची राहुल की यात्रा से किनारा कर लिया। 

वाराणसी से उम्मीदवार और अमरोहा से प्रभारी भी घोषित कर दिया। ये दोनों सीटें कांग्रेस को भेजी गई सूची में शामिल थी। सूत्रों की मानें तो देर शाम कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में रायशुमारी हुई। दूसरे राज्यों के अनुभव को देखते हुए ‘समन्वय’ का रास्ता ही बेहतर माना गया। 

कांग्रेस ने मुरादाबाद, खीरी की जिद छोड़ी और सपा कांग्रेस को सीतापुर देने पर राजी हो गई। दोनों दलों के शीर्ष नेताओं में हुई बातचीत के बाद बुधवार को गठबंधन को अंतिम रूप दे दिया गया।

वोटों का बंटवारा रोकने की चिंता

कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने व उसके कोटे की सीटें बढ़ाने के पीछे दो अहम फैक्टर माने जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि रालोद के जाने के बाद सपा के पास उसके कोटे की 7 सीटें खाली थीं। 

कांग्रेस को पहले ही 11 सीट का वादा किया जा चुका था। इसमें रायबरेली-अमेठी शामिल नहीं थी। इनको मिला लें तो 13 सीटों पर सपा पहले ही तैयार थी। रालोद के जाने के बाद उदारता दिखाना आसान हो गया। अंदरखाने यह भी फीडबैक था कि अल्पसंख्यक वोटरों में कांग्रेस को लेकर रुझान बेहतर हुआ है। 

प्रदेश की 25 से अधिक लोकसभा सीटों पर अल्पसंख्यक वोटरों की भूमिका प्रभावी है। ऐसे में कांग्रेस के अलग लड़ने से इन वोटरों के बंटवारे का भी खतरा था, जिसका सीधा नुकसान सपा को हो सकता था। 

हाल में राज्यसभा के टिकट सहित अन्य मसलों को लेकर भी सपा में मुस्लिमों की भागीदारी को लेकर सवाल उठे थे। इसलिए भी सपा ने वोटरों में एका का संदेश देने का दांव खेला है। हालांकि, सीटों के बंटवारे में उसके कोर वोटरों को किसी और के पाले में खिसकने का खतरा न हो, इस पर सपा ने खास ध्यान दिया है। 

कांग्रेस को मिली सीटों में अमरोहा और सहारनपुर ही ऐसी है, जहां अल्पसंख्यक वोटर चुनाव का रुख बदलने की क्षमता रखते हैं।

कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा

यूपी के चुनावी मैदान में कांग्रेस भले 21% सीटों पर उतरेगी, लेकिन जानकारों का मानना है कि गठबंधन में वह अधिक फायदे में है। जो 17 सीटें उसे मिली हैं, उसमें रायबरेली ही उसके खाते में है। जबकि, अमेठी, कानपुर व फतेहपुर सीकरी में कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी। 

बांसगांव में पार्टी ने प्रत्याशी ही नहीं उतारा था। बाराबंकी, प्रयागराज, वाराणसी, झांसी, गाजियाबाद में सपा दूसरे नंबर पर थी। 2019 में कांग्रेस ने 1977 के बाद का सबसे खराब प्रदर्शन किया था और उसके एक सीट मिली थी। वोट 7% से भी नीचे आ गए थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में वह 2 सीट पर सिमट गई। इसके बाद भी 17 सीटें मिलना उसके लिए फायदे का सौदा है। 

सपा का साथ मिलने के चलते अधिकतर सीटों पर कांग्रेस लड़ाई में आ सकेगी। हालांकि, 2019 में सपा व और बसपा जैसे दो बड़े जातीय क्षत्रपों के साथ रहने के बाद भी भाजपा गठबंधन ने यूपी में 64 सीटें जीत ली थीं। 

अमेठी व कन्नौज में तो सपा, बसपा, कांग्रेस व रालोद सहित पूरा विपक्ष साथ लड़ा था, लेकिन जीत भाजपा को मिली थी। इसलिए, सपा-कांग्रेस को 24 में जीत के लिए जमीन पर और पसीना बहाना पड़ेगा।

आजाद समाज पार्टी का भी होगा समायोजन?

सूत्रों की मानें तो सपा नगीना सीट से आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद को टिकट दे सकती है। आजाद वहां काफी दिनों से मेहनत कर रहे हैं। दलित वोटरों को साधने के लिए सपा उनको अपने टिकट पर लड़ाने का प्रस्ताव रख सकती है।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़